निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति क्यों नहीं हो पाता?
आपसी लगाव और भरोसा प्रेम को मजबूत बनाते हैं। जिस तरह धागे के टूट जाने पर उसे जोड़ने पर उसमें गांठ आ जाती है, ठीक उसी तरह रिश्ता एक बार टूटने पर पहले जैसा नहीं रहता। रिश्ते बेहद नाजुक होते हैं। यह विश्वास और अपनेपन की बुनियाद पर टिके होते हैं। एक बार अगर किसी रिश्ते में खटास पड़ गई तो उसमें पहले जैसी बात नहीं रह जाती। भले ही वो दुनिया का कोई भी रिश्ता क्यों न हो। कवि इस दोहे में यही समझाने का प्रयास कर रहा है कि रिश्तों में एक बार दरार आने पर वह कभी पहले जैसे नहीं रहते।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
हमें अपना दुःख दूसरों पर क्यों नहीं प्रकट करना चाहिए? अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार कैसा हो जाता है?
हमें हमेशा अपना दुख अपने मन में ही रखना चाहिए। दूसरों के सामने अपना दुख प्रकट करने से हमारा मन भले ही उस समय के लिए थोड़ा हल्का महसूस करे, लेकिन ऐसा करने से दूसरा आपके मन की बात नहीं समझेगा। ऐसा करके आप स्वयं अपना मजाक बनवा लेते हैं और अपनी कमजोरी दूसरों को बता देते हैं। कवि ने इसमें यही सझाने की कोशिश की है कि अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार आपके प्रति पहले जैसा नहीं रहता। ऐसा करके आप खुद ही उनके सामने हंसी का पात्र बनकर रह जाते हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है?
रहीम ने इस पंक्ति में पंक जल यानी कीचड़ के पानी को समुद्र के पानी से ज्यादा बेहतर बताया है। कवि का मानना है कि समुद्र का खारा पानी कभी किसी की प्यास नहीं बुझा सकता, लेकिन कीचड़ के पानी से तमाम छोटे जीव अपने गले की प्यास बुझाते हैं। इस मायने में कीचड़ का पानी गंदा होने के बावजूद समुद्र के पानी से श्रेष्ठ है, जो कम से कम जीवों की प्यास बुझाकर अपने खास होने का बोध कराता है। विशाल समुद्र का पानी दिखने में भले ही कितना उदार हो, लेकन वो कभी किसी की प्यास नहीं बुझा सकता।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
एक को साधने से सब कैसे सध जाता है?
कवि रहीम के मुताबिक एक ईश्वर पर भरोसा रखने से इंसान के सभी काम पूरे हो जाते हैं। जिस तरह पौधों की जड़ सींचने से हमें फल और फूल की प्राप्ति होती है। ठीक उसी प्रकार ईश्वर की सच्ची साधना हमें अपने लक्ष्य से भटकने नहीं देती और हमारे सभी कार्य बिना किसी रुकावट के पूरे हो जाते हैं। कामयाबी के रास्ते में एक बार सफलता मिलने के बाद आगे की कठिनाइयों की कड़ियों अपने आप खुल जाती हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी क्यों नहीं कर पाता?
सूर्य की किरणों से कमल पूरी तरह खिलता तो है, लेकिन पानी ही न हो तो कमल खिलेगा कहां। बिना पानी के कमल का कोई अस्तित्व नहीं है। पानी के न होने पर कमल सूखकर मुरझा जाएगा। कमल की संपत्ति जल है। अगर पानी ही न हो तो सूर्य की गर्माहट से कमल का नष्ट होना तय है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
अवध नरेश को चित्रकुट क्यों जाना पड़ा?
माता-पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए अवध नरेश श्रीरामचंद्र को 14 साल का बनवास काटने के लिए जाना पड़ा था। वरना दुनिया में कोई ऐसा नहीं जो रहने के लिए अपनी इच्छा से चित्रकूट जैसे वीरान जंगल की तरफ रुख करे। ऐसे में कवि संकट के समय प्रभु की शरण में जाने की बात कह रहा है क्योंकि मुश्किल की घड़ियों में वन भी राजमहल से ज्यादा सुरक्षित स्थान नजर आते हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
‘नट’ किस कला में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है?
नट कुंडली मारने में काफी माहिर होता है। उसमें अपने शरीर को किसी भी तरह मोड़ने की कला होती है। इस वजह से वह अपने शरीर की आकृति को बदलकर आसानी से पेड़ पर चढ़ सकता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
‘मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ मे पानी के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
मोती, मनुष्य और चून में पानी के महत्व को कवि ने बेहद बारीकी से समझाने का प्रयास किया है। कवि के अनुसार मोती का पानी उतर जाने से उसकी चमक फीकी पड़ जाती है और वह अपना मूल्य खो बैठता है। ठीक उसी तरह समाज में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति का मान-सम्मान चला जाए तो उसकी नजरें हमेशा के लिए नीची हो जाती हैं। इसी तरह चून यानी आटे में पानी मिलाए बिनी रोटी बनाने की कल्पना नहीं की जा सकती।
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
टूट से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।
इन पंक्तियों से आशय है कि जिस तरह धागे के एक बार टूटने पर उसे जोड़ने पर गांठ आ जाती है, उसी प्रकार प्रेम संबंध में अगर एक बार दरार आ जाए तो वह पहले के समान कभी नहीं हो सकता। रिश्ते में अगर एक बार खटास आ जाए तो उसमें पहले जैसी मधुरता, मिठास और विश्वास नहीं रहते।
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
सुनि अठिलैहें लोग सब, बाँटि न लैहें कोय।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि हमें बता रहे हैं कि कभी भी अपने दुख के बारे में दूसरों को न बताएं। कोई भी आपके मन की बात को नहीं समझेगा। ऐसा करके आप दूसरों के हाथ में अपनी कमजोरी दे देते हैं। सामने वाला भले ही आपकी बात को सुनेगा, लेकिन वह बाद में इसका मजाक बनाएगा। इसलिए हमेशा अपने मन की परेशानियों को खुद तक ही सीमित रखें।
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
रहिमन मूलहिं सीचिबों, फूलै फलै अघाय।
इस पंक्ति का अर्थ है जिस तरह पौधे की जड़ को सींचने से हमें फूल और फल प्राप्त होते हैं, उसी तरह एक ईश्वर की साधना करने से हम संसारिक सुख की प्राप्त कर सकते हैं। हमें अनेक देवी-देवताओं में आस्था रखने की बजाये एक ईश्वर के प्रति सच्चे मन से आस्था रखनी चाहिए। इससे निश्चित ही हमें लक्ष्य की प्राप्ति होगी और हम कर्तव्य के मार्ग से भी नहीं भटकेंगे।
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
इस पंक्ति का भाव यह है कि भले ही दोहे में कम अक्षर होते हैं, लेकिन उसमें अर्थ बहुत गहरा छिपा होता है। यह ठीक वैसा ही होता है जैसे नट अपनी कुंडली में सिमट कर तरह-तरह के करतब कर अपने बड़े शरीर को सिमटाकर रस्सी पर चढ़ जाता है।
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
हिरण संगीत से खुश होकर अपना जीवन तक शिकारियों को सौंप देता है। ठीक उसी तरह मनुष्य भी दूसरों से खुश होकर उन्हें धन की पेशकश करता है। दोनों ही प्रसन्नता के भाव में कुछ न कुछ देने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन जो पशु दूसरों से प्रसन्न होकर भी किसी को कुछ नहीं दे सकता वो तुल्य है।
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।
इन पंक्तियों से कवि हमें समझा रहे हैं कि हर किसी को समान नजरों से देखना चाहिए। हर किसी चीज की उपयोगिता तय है। फिर चाहे वो छोटी वस्तु हो या बड़ी। ऐसा नहीं कि बड़ी चीज के आगे छोटी का कोई महत्व नहीं। कवि ने इस बात को सूई और तलवार का उदाहरण देकर समझाया है। सूई जो काम कर सकती है वो काम तलवार नहीं कर सकती। ठीक इसी तरह जो काम तलवार से लिया जा सकता है, वो सूई कभी नहीं कर सकती।
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
पानी गए ने ऊबरै, मोती, मानुष, चून।
अगर मोती अपनी चमक खो दे तो वो निरर्थक है। ठीक इसी तरह प्रतिष्ठित मनुष्य का मान-सम्मान ही सब कुछ होता है। एक बार अगर वो खो जाए तो उसे हासिल करना नामुमकिन हो जाता है। इसी तरह आटे में अगर पानी न मिलाया जाए तो उससे रोटी नहीं बनाई जा सकती। मोती, मनुष्य और चून के लिए पानी का अपना महत्व है।
निम्नलिखित भाव को पाठ में किन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है-
क) जिस पर विपदा पड़ती है वही इस देश में आता है।
ख) कोई लाख कोशिश करे पर बिगड़ी बात फिर बन नहीं सकती।
ग) पानी के बिना सब सूना है अतः पानी अवश्य रखना चाहे।।
क) जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस
ख) बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
ग) रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए।
‘सुई की जगह तलवार काम नहीं आती’ तथा ‘बिन पानी सब सून’ इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
सुई की जगह तलवार काम नहीं आती इसका अभिप्राय यह है कि सुई का कार्य हम तलवार से नहीं कर सकते| जो काम सुई से किया जाता है वह किसी भी परिस्थिति में तलवार से संपन्न नहीं किया जा सकता| जैसे कि कपडे सिलने का कार्य तलवार से नहीं किया जा सकता|
दूसरे कथन बिन पानी सब सून से अभिप्राय यह ही कि पृथ्वी पर मानव एवं अन्य जीवन जंतुओं के अस्तित्व के लिए जल अति आवश्यक है बिना पानी के मानव जाति का इस गृह पर अस्तित्व संभव नहीं है| इसलिए हमें जल का संरक्षण करना चाहिए ताकि भविष्य की पीढ़ियों के इस महत्वपूर्ण संसाधन को बचाया का सके|
‘चित्रकूट’ किस राज्य में स्थित है, जानकारी प्राप्त कीजिए।
चित्रकूट भारत के दो बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के बीच बंटा हुआ है। यह उन्हीं 17 स्थानों में से एक है जहां से प्रभु श्रीराम 14 साल का बनवास काटते हुए गुजरे थे। आयोध्या नरेश दशरथ के देहांत के बाद छोटे भाई भरत इसी स्थान पर प्रभु श्रीराम को मनाने के लिए पहुंचे थे। यहां भरत-मिलाप नाम से लोकप्रिय मंदिर भी मौजूद है। यह मंदाकिनी नदी के पास बसे भारत के सबसे प्राचीन तीर्थ स्थलों में गिना जाता है। लगभग 38.2 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले इस क्षेत्र को प्राकृतिक सौंदर्य और प्रभु श्रीराम की आस्था का केंद्र माना जाता है।
निति संबंधी अन्य कवियों के दोहे/ कविता एकत्र कीजिए और उन दोहो/कविताओं चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
(कबीरदास के नीति दोहे)
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय।
जाति ना पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, नर्मल करे सुभाय।
(रहीम के नीति दोहे)
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहिं सुजान।
रहिमन निजमन की व्यथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इटलेहैं लोग सब, बांट ले लेहैं कोय।
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।
(तुलसीदास के नीति दोहे)
मुखिया मुख सौं चाहिए, खान-पान को एक।
पालै-पोसै सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।
आवत ही हर्ष नहीं, नैनन नहीं स्नेह।
तुलसी तहां न जाइए, कंचन बरसे मेह।
तुलसी मीठे बचन से, सुख उपजत चहुं ओर।
बसीकरन एक मंत्र है, तच दे बचन कठोर।