निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए-
1. हीरे के प्रेमी उस किस रूप में पसंद करते हैं?
2. लेखक ने संसार में किस प्रकार के सुख को दुर्लभ माना है?
3. मिट्टी की आभा क्या है? उसकी पहचान किससे होती है?
1. हीरे के प्रेमी उसे शुद्ध खरे रूप में, साफ़ सुथरा और आँखों में चकाचौंध पैदा करते हुए पसंद करते हैं|
2. लेखक ने अखाड़े की मिटृटी को तन में लगाने को संसार का एक दुर्लभ सुख माना है।
3. मिट्टी की आभा इसकी चमक है। इसकी पहचान मिट्टी पर उङने वाले धूल से होती है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए-
धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती?
शिशु अपनी मां की गोद से उतरने के बाद धरती पर खेलता है। यहां वह मिट्टी पर पङी धूल में लोटता है। धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना ही नहीं की जा सकती है क्योंकि किसी शिशु के बचपन की कल्पना माँ और मातृभूमि के बिना नहीं की जा सकती|
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए-
हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है?
हमारी शहरी सभ्यता धूल के संपर्क में आने से बचना चाहती है। ऐसा लोगों में दिखावे की बढती संस्कृति के कारण आए बनावटीपन के कारण हो रहा है। उन्हें ऐसा लगता है कि धूल के कारण वे अस्वच्छ दिखेंगे और उनकी शोभा कम हो जायेगी|
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए-
अखाड़े की मिट्टी की क्या विशेषता होती है?
अखाङे की मिट्टी इसमें मट्ठा और तेल मिलाये जाने के कारण विशेष होती है। इस पवित्र मिट्टी को देवता पर चढाये जाने से इसकी विशेषता में और वृद्धि हो जाती है। इस मिट्टी में सनना किसी भी व्यक्ति के लिए परम सुख होता है| इस मिट्टी में सनने से मांसपेशियां फूल उठती हैं| शरीर और व्यक्तित्व मजबूत व प्रभावशाली हो जाता है|
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए-
श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना के लिए धूल सर्वोत्तम साधन किस प्रकार है?
हम अपनी मां की गोद से उतरकर धरती मां की गोद में खेलते हैं। अपनी मां के प्रति हमारा अगाध प्रेम होता है। वही श्रद्धा, भक्ति, स्नेह हमें धरती मां की धूल भरी गोद में बैठकर मिलता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए-
इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यंग्य किया है?
लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने प्रस्तुत पाठ में नगरीय सभ्यता पर करारा व्यंग्य किया है। उनकी दृष्टि में शहर के लोग धूल मिटृटी में खेलने से वंचित होकर कांच के समान बनावटी गुणों वाले हैं। वे मातृभूमि के असली महत्त्व व गुणों साथ ही उसके प्रेम से अपरचित रह जाते हैं|
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए-
लेखक ‘बालकृष्ण’ के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ क्यों मानता है?
लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना प्रस्तुत पाठ के एक पात्र बालकृष्ण के मुख पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ मानते है। ऐसा वे बालकृष्ण के मुख पर घिर आई गोधूलि की छटा की तुलना ग्रामीण क्षेत्रों में गोधूलि की बेला में अपने घरों की ओर लौटती गायों के पैर से उङी पवित्र धूल से कर कहते है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए-
लेखक ने धूल और मिट्टी मे क्या अंतर बताया है?
लेखक ने धूल और मिटृटी में अन्तर को एक स्रोत और दूसरा उसके प्रभाव के रूप में बताया है। लेखक ने धूल और मिट्टी में वही अंतर बताया है जो शब्द और रस में, देह और जान में, चाँद और चाँदनी में होता है| संक्षेप में कहें तो धूल और मिट्टी में बहुत ही सूक्ष्म अंतर होता है|
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए-
ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन-कौन से सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है?
ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के तरह-तरह की सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है। यह धूल दिन के समय में हमारे वातावरण में शरद ऋतु मे घिर आये श्वेत बादलों की तरह उङती है। यही धूल गोधूलि बेला में गायों के पैरों से उङकर हमें एक बङा ही पवित्र अहसास दिलाती है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए-
‘हीरा वही घन चोट न टूटे’- का संदर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
‘हीरा वही घन चोट न टूटे’ पंक्ति प्रस्तुत पाठ में लेखक द्वारा ग्रामीणों के संदर्भ में प्रयोग किया गया है। यहां पर ग्रामीणों की धूल में खेल कर बङे होने की तुलना उस हीरे से की गई है जो ग्रामीण की तरह ही तराश कर बनाया जाता है और उनकी तरह ही मजबूत होने पर हथौड़े रूपी परिस्थितियों से जल्दी टूटता नहीं है। अर्थात हीरे पर हथोड़े की चोट पड़ने पर भी वह नहीं टूटता उसी प्रकार ग्रामीण भी कठोर परिस्थितियों में टूटते नहीं हैं बल्कि उनका डटकर सामना करते हैं|
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए-
धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाओं को स्पष्ट कीजिए।
लेखक द्वारा यहां पर ‘धूल’ की व्यंजना या तुलना मिटृटी की चमक के रूप में की गई है। इसी प्रकार ‘धूलि’ शब्द की व्यंजना माला रुपी कविता में पिरोये जा सकने लायक एक फूल के रुप में की गई है। वहीं ‘धूली’ शब्द हमारे सामने छायावादी दर्शन के एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत होता है। ‘धूरी’ की व्यंजना लोकगीतों में प्रयुक्त एक शब्द के रुप में और ‘गोधूलि’ की व्यंजना ग्रामीण बच्चों के मुख पर छाई आभा से है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए-
‘धूल’ पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
धूल पाठ का मूल भाव ग्रामीण वातावरण के वर्णन में निहित है। लेखक ने आम शहरी द्वारा ग्रामीण जीवन को तिरस्कार की दृष्टि से देखने एवं ग्रामीण एवं शहरी व्यक्ति के जीवन के अंतर को धूल पाठ के माध्यम से बताने की कोशिश लेखक ने की है| उन्होंने प्रस्तुत पाठ में शहरवासियों की ग्रामीण जनजीवन के तिरस्कार की भावना पर कुठाराघात करते हुए उन शहरवासियों को ग्रामीण वातावरण में ना रह पाने पर किसी बहुमूल्य चीज के खो जाने जैसा अहसास दिलाया है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए-
कविता को विडंबना मानते हुए लेखक ने क्या कहा है?
लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने कविता को बिडम्बना मानते हुए अबतक धूल पर कोई सार्थक कविता कवियों द्वारा ना लिख पाने पर अफसोस जताया है। उनका इस बारे में मानना है कि चूंकि प्रायः सभी कवि शहरी पृष्ठभूमि से आये प्रतीत होते हैं। इसीलिये इन कवियों के मुख पर कभी धूल की आभा नहीं पङी और इस प्रकार से ग्रामीण वातावरण की वास्तविकताओं से वंचित रहने से उनकी ऐसी कविताएं भी विडंबना से भरी रही हैं या कहें वास्तविकता से दूर रही हैं।
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है।
लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ‘धूल’ पाठ की प्रस्तुत पंक्ति में धूल की महिमा पर बल देते हैं। वे शिशु खासकर ग्रामीण परिवेश में पले-बढे शिशु के मुख पर स्वाभाविक रुप से छा गये धूल की तुलना किसी फूल के उपर छा गये धूल से करते हैं। उनका इस प्रकार से कहना वास्तव में हमारे सामने शिशु के उपर छाये धूल को उसकी सुंदरता बढाने वाले किसी सौंदर्य प्रसाधन के समान माना गया है। यह धूल फूल के उपर छाकर वास्तव में उस फूल का श्रृंगार बनती है और ग्रामीण शिशु के मुख पर यह धूल छाकर उसका सहज पार्थिव या कहिये मिट्टी का आवरण बनकर उसका श्रृंगार करती है।
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
‘धन्य-धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की‘-लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है?
लेखक ‘धूल’ पाठ की प्रस्तुत पंक्तियों में ग्रामीण वयस्कों के द्वारा धूल में सने बच्चों को स्नेह वश अपनी गोद में उठा लेने को लेकर हमें उनके द्वारा अपने स्नेह के आगे धूल को तरजीह ना देने की बात बताता है। लेखक बल्कि ऐसे लोगों को गांव की पवित्र मिट्टी के स्पर्श होने पर उन्हें धन्य मानता है। वह बच्चों के शरीर में लगी धूल को मिट्टी की आभा मानता है। वह मिट्टी से बने शरीर की आभा धूल को बच्चों के शरीर में छाने पर बच्चों की देह का पवित्र हो जाना मानता है। वह नरों को इन छोटे-छोटे बच्चों को अपनी गोद में उठाने पर उन्हें परम सौभाग्यशाली मानता है क्योंकि वे नर इन बच्चों के माध्यम से पवित्र धूल का स्पर्श कर स्वयं भी पवित्र हो गये हैं।
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में।
लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने प्रस्तुत पंक्तियों में मिट्टी और धूल में अंतर को बङे ही तुलनात्मक अंदाज में हमें बताया है। यह अंतर हम वास्तव में मिट्टी और इसकी आभा धूल के रुप में पाते हैं। धूल वास्तव में मिट्टी की ही चमक है। लेखक इसकी तुलना शब्द में बसे रस से करता है। वस इसकी तुलना देह में बसे प्राण से भी करता है। यहां तक कि लेखक मिट्टी और इसमें बसे धूल की तुलना चांद में बसी चांदनी से भी करता है। इस प्रकार लेखक हमें मिट्टी और धूल में अंतर को बङे ही रोचक अंदाज में बताता है।
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे।
लेखक यहां हमें धूल की महत्ता को ना समझ पाने पर हमें उलाहना देता है। उनकी शिकायत सामान्य जन के ग्रामीण परिवेश से दूर भागने को लेकर है। उनका इस बारे में हममें से अधिकांश लोगों से शहरी माहौल को ग्रामीण वातावरण की तुलना में श्रेष्ठ मानने को लेकर ऐसा कहना है। वे लोगों में शहरीकरण की इस बढती प्रवृत्ति से काफी निराश दिखते हैं और उन्हें इनलोगों के वापस गांव की ओर लौटने की कोई संभावना भी नहीं देखते हैं। इस प्रकार वे हतास होकर इन लोगों से देशभक्ति की दुहाई देते हुए धूल को माथे से ना लगाने की स्थिति में उसपर पैर ही रख देने की अपील करते हैं।
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।
लेखक यहां हमें हीरे समान गांव के लोगों के गुणों की बखान हीरे की तर्ज पर ही करते हैं। उनका इस बारे में गांव के लोगों का हीरे के समान अंदर से ठोस होना मानना है। ये लोग हीरे के समान कुछ क्षणों तक लोगों की नजर में अपने क्रूड होने के कारण नहीं आ पाते हैं। पर इसमें इसको तराशे जाने पर ये अपनी स्वाभाविक चमक को ग्रहण कर लेते हैं। और तब फिर ये लोगों के बीच अपने स्थायित्व का बोध जगा जाते हैं। लेखक की दृष्टि में तब कांच के समान बनावटी सुंदरता वाले क्षणभंगुर शहर के लोग और उन हीरों की स्थायित्व वाले गुणों से लैस ग्रामीणों के बीच अंतर साफ पता चलने लगता है।
निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग छाँटिए-
उदाहरण-विज्ञापित- वि(उपसर्ग) ज्ञापित
संसर्ग, उपमान, संस्कृति, दुर्लभ, निर्दव्न्द, प्रवास, दुर्भाग्य, अभिजात, संचालन
1. सम्+सर्ग= सर्ग
2. उप+मान= उपमान
3. सम्+कृति= संस्कृति
4. दुर्+लभ= दुर्लभ
5. निर्+द्वन्द्व= निर्दव्न्द
6. प्र+वास= प्रवास
7. दुर्+भाग्य= दुर्भाग्य
8. अभि+जात=अभिजात
9. सम्+चालन= संचालन
लेखक ने इस पाठ में धूल चूमना, धूल माथे पर लगाना, धूल होना जैसे प्रयोग किए हैं।
धूल से संबंधित अन्य पाँच प्रयोग और बताइए तथा उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
1. धूल में मिलाना- हमारी सेना ने शत्रुओं को धूल में मिला दिया।
2. धूल का फूल होना- समाज में विरले ही धूल के फूल होते हैं।
3. धूल चाटना- उसके एक ही प्रहार से विरोधी धूल चाटने लगा।
4. धूल-धूसरित करना- अरे यार! महेश ने तो उसके सारे इरादे धूल-धूसरित कर दिये।
5. धूल फांकना- नौकरी छिन जाने पर वह धूल फांकने लगा।