भाई के बुलाने पर घर लौटते समय लेखक के मन में किस बात का डर था?
कई साथियों के साथ लेखक अपने गाँव में झरबेरी के बेर तोड़ - तोड़कर खा रहा था। तभी गांव का एक आदमी आकर लेखक से बोला कि उसके बड़े भाई उसको बुला रहे हैं, शीघ्र चले जाओ। इसलिए वे यह सुनकर लेकर तुरंत घर की तरफ चल पड़े। लेखक को समझ में नहीं आ रहा था कि उन्होंने ऐसा क्या कसूर किया है जिसके लिए उनके बड़े भाई ने उनको शीघ्र बुलाया है। लेखक को आशंका थी कि कहीं बेर तोड़कर खाने के अपराध में तो पेशी नहीं हो रही है। इसलिए उनके मन में डर था कि इसके लिए कहीं उनको अपने बड़े भाई से मार न पड़े।
मक्खनपुर पढ़ने वाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में ढेला क्यों फेंकती थी?
लेखक के साथ मक्खनपुर में पढ़ने वाली बच्चों की टोली पूरी वानर टोली थी। एक दिन जब वे लोग स्कूल से लौट रहे थे तो उनको रास्ते में एक कुआँ दिखाई दिया। सभी बच्चों के मन में कुँए में ढेला फेकने की सूझी। बच्चों ने कुए में ढेला फेंका और जैसे ही ढेला कुँए में गिरा वैसे ही सभी को एक फुसकार सुनाई पड़ी। वह फुफकार एक सांप की थी जो उसमे गिर गया था। उसके बाद सभी बच्चे उछल - उछल कर एक - एक करके उसमें ढेला फेंकने लगे और उससे आने वाली सांप की क्रोधपूर्ण ध्वनि का मजा लेने लगे। ऐसा करना सभी बच्चों की आदत सी हो गयी थी। इसलिए गाँव से मक्खनपुर जाते समय और मक्खनपुर से लौटते समय सभी बच्चे कुँए में प्रतिदिन ढेला फेंकते थे ।
‘साँप ने फुसकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं, यह बात अब तक स्मरण नहीं’-यह कथन लेखक की किस मनोदशा को स्पष्ट करता है?
जब लेखक और उसका छोटा भाई अपने बड़े भाई की दी हुई चिट्ठियों को लेकर मक्खनपुर डाकखाने में डालने जा रहे थे तब उनको वही कुआँ दिखाई दिया जिसमे वे प्रतिदिन ढेला फेंकते थे। उस कुँए को देखकर उनके मन में साँप की फुफकार सुनने की प्रवृत्ति जाग्रत हुई। इसलिए लेखक ने ढेला उठाया और अपनी टोपी उतारते हुए उसे सांप पर फेंका लेकिन जैसे ही लेखक ने टोपी उतारी उसके अंदर रखी हुई साड़ी चिट्ठियां कुँए में गिर गयी। ऐसा होने से मानो लेखक पर बिजली सी गिर गयी हो। दोनों भाई बहुत डर गए और रोने लगे। इसलिए यह कथन ‘सांप ने फुंसकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं, अब तक यह बात उनको स्मरण नहीं है’ लेखक की निराशा और पिटने के डर को व्यक्त करता है।
किन कारणों से लेखक ने चिट्ठयों को कुंएँ से निकालने का निर्णय लिया ?
लेखक अपने बड़े भाई से बहुत डरते थे। लेखक को पता था कि अगर वह चिट्ठियों को कुँए में गिरने की बात को अपने बड़े भाई को बताएँगे तो उन्हें बहुत डांट और मार पड़ेगी और अगर वह झूठ बोलेंगे तो वह झूठ उनको जिंदगी भर जीने नहीं देगा। ऐसे समय में उन्हें अपनी माँ की गोद याद आ रही थी और वह चाहते थे की ये बात वो अपनी माँ को बता दें और माँ लाड- प्यार में ये बोल दे कि कोई बात नहीं, चिट्ठियां दोबारा लिख ली जाएंगी। ऐसे समय में उन्हें कहीं भाग जाने का भी मन हो रहा था। इसी सोच - विचार में पंद्रह मिनट हो गए थे। शाम भी हो रही थी और लेखक को घर भी समय पर पहुंचना था। इसलिए अपनी इन सभी दुविधाओं को दूर करने के लिए लेखक ने चिट्ठियों को कुँए से निकालने का निर्णय लिया।
साँप का ध्यान बटाने के लिए लेखक ने क्या-क्या युक्तियाँ अपनाई ?
सबसे पहले लेखक ने पांच धोतियों को बांधकर एक मजबूत रस्सी बनायी। लेखक ने उस रस्सी के द्वारा एक डंडा कुँए में डाला और उसके बाद रस्सी के एक छोर को डंडे से बांधकर उसकी गाँठ को अपने छोटे भाई को पकड़ा दिया और कुँए में उतरने लगा । लेखक ने सांप का पहले भी सामना किया था। इसलिए उसे सांप का कोई डर नहीं था। कुँए के धरातल के समीप आ जाने पर लेखक ने देखा की सांप अपना फन फैलाकर उसका इन्तजार कर रहा था। कच्चे कुँए की परिधि बहुत कम होती है। इसलिए सांप को डंडे के द्वारा मारा नहीं जा सकता था। अब लेखक के पास एक ही मार्ग था की सांप को बिना छेड़े चिट्ठियां ली जाए। धीरे - धीरे लेखक ने डंडे के द्वारा सांप का ध्यान भटकाया और सारी चिट्ठियां अपनी तरफ करी और उसे धोती की रस्सी के एक छोर में बांध दिया, जिसे उसके छोटे भाई ने कुँए से ऊपर खींच लिया ।
कुँए में उतरकर चिट्ठियों को निकालने संबंधी साहसिक वर्णन को अपने शब्दों में लिखिए?
लेखक के द्वारा कुँए में उतरकर चिट्ठियों को निकाल लाना एक बहुत सराहनीय और साहस का कार्य था। जबकि उस कुँए में एक काला सांप फन फैलाकर बैठा हुआ था, जो कभी भी हमला कर सकता था। लेखक ने अपने बड़े भाई का कार्य पूर्ण करने के लिए अपनी जान भी जोखिम में डाल दी थी। लेखक ने डंडे को लेकर ज्यों ही सांप के दायीं तरफ पड़ी चिट्ठिं पर बढ़ाया , त्यों ही सांप ने फुंकार करके डंडे पर प्रहार किया। सांप के इस प्रहार से लेखक काँप गया और बहुत तेजी से ऊपर की तरफ उछला। ऐसा बार - बार करने से लेखक और सांप की जगह बदल गयी और लेखक चिट्ठियों को पाने में कामयाब हो सका। फिर धीरे - धीरे हाथों की सहायता से कुँए की दीवार के सहारे लेखक कुँए से बाहर निकल गया।
इस पाठ को पढ़ने के बाद किन-किन बाल-सुलभ शरारतों के विषय में पता चलता है?
इस पाठ को पढ़ने के बाद निम्नलिखित बाल-सुलभ शरारतों के बारे में पता चलता है :
• बच्चों को चोरी से फल तोड़कर खाने में बहुत मज़ा आता है।
• बच्चे वो सारे काम करते हैं जिसमें उनको मजा आता है, चाहे वह काम कितना भी जोखिमपूर्ण क्यों न हो।
• बच्चों को पशुओं को परेशान करने में भी बहुत मजा आता है।
• कुँए और तालाब आदि में कंकण और पत्थर मारना बच्चों की प्रवृत्ति होती है।
• बच्चों को कभी-कभी अपनी शरारतों के कारण बहुत परेशानी झेलनी पड़ती है।
• बच्चे अक्सर छोटे में अपनी शरारतों से आने वाली परेशानियों को मार के डर के कारण अपने परिवार से छुपा ले जाते हैं लेकिन जब वे बड़े हो जाते हैं और उन्हें सही और गलत का फर्क पता चल जाता है तब वे अपने माता-पिता को सब कुछ सच-सच बता देते हैं।
• बच्चे स्कूल जाते समय रास्ते में बहुत शरारतें करते हैं।
‘मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उलटी निकलती है’- का आशय स्पष्ट कीजिए?
मनुष्य अपने जीवन में भविष्य के लिए बहुत सारी योजनाएं बनाता है और उन योजनाओं के अनुसार अपने जीवन में आगे बढ़ता है। लेकिन कभी-कभी मनुष्य को इतनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है कि सभी योजनाएं धरी की धरी रह जाती है और मनुष्य को उन मुश्किलों से निपटने के लिए समय के अनुसार कार्य करने पड़ते हैं। जैसे लेखक ने कुँए में जाने से पहले सोचा था कि कुँए के अंदर जाकर वह सांप को डंडे से मार देगा क्योंकि सांप को मारना लेखक के बाएं हाथ का खेल था, उसने पहले भी डंडे से बहुत सांप मारे थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ, कुआँ कच्चा होने के कारण उसका व्यास बहुत छोटा था जिसमे डंडा चलाना असंभव था। अतः कभी-कभी मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ मिथ्या और उलटी निकलती हैं जबकि असल में उसे परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेना पड़ता है|
‘फल तो किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर है’- पाठ के संदर्भ में इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए?
यह सत्य है कि हमें बिना फल की इच्छा किये अपने कर्म करने चाहिए क्योंकि फल देने वाला भगवान् है और जैसे हम कर्म करेंगे वैसा भगवान् हमें फल देगा। इसलिए अच्छे कर्म करने चाहिए जिससे हमें अच्छा फल मिले। किसी भी कार्य को मुश्किल समझकर उसे छोड़ना नहीं चाहिए क्योंकि हो सकता है कि आपके भरसक प्रयास के कारण वह काम सफल हो जाए। जैसे लेखक ने हार न मानते हुए अपने निरंतर प्रयत्न के कारण कुँए से चिट्ठियां निकाल ली और खुद भी कुँए से सही सलामत बाहर आ गया जबकि कुँए में सांप था और कुँए के अंदर सांप को मार पाना असंभव था। अतः मनुष्य को सिर्फ अपना कर्म करना चाहिए और फल की इच्छा छोड़ देनी चाहिए|