लेखक का परिचय हामिद खां से किन परिस्थियों से हुआ?
भारत में रहने वाले लेखक गरमियों में अपने पाकिस्तानी दोस्तों के साथ तक्षशिला के खंडहर देखने गए थे। लेखक हामिद खां से तक्षशिला के पास एक गांव में मिले थे जब वह भूख प्यास से जूझ रहे थे। लेखक ने गांव के छोटे से बजार के चारों ओर चक्कर लगाए लेकिन उन्हें कोई होटल दिखाई नहीं दिया तभी उन्हें एक दुकान से रोटियाँ सेकने की सुखमय महक आई। उस दुकान में दुकान के मालिक हामिद खां खाना पका रहे थे तभी लेखक की हामिद खां जी से मुलाकात हुई।
‘काश में अपने मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता’- हामिद ने ऐसा क्यों कहाँ?
जब हामिद खां जी को पता चला कि लेखक हिंदू है, परंतु हमिद खां जी मुसलमान थे। इसलिए हमिद खां ने लेखक से पुछा कि क्या वे मुसलिम होटल में खाएंगे। लेखक ने हामिद खां को बताया कि हमारे देश में हिंदू मुसलमान में कोई भेदभाव नहीं होता है। बिना किसी रोक-टोक के मुसलमान होटल में खाया करते हैं एवं सभी लोग मिल जुल कर रहते हैं। भारत में मुसलमानों की पहली मस्जिद का निर्माण लेखक के ही राज्य में हुआ था। वहाँ हिंदू मुसलमानों के बीच दंगे नहीं होते एवं मिल जुल कर रहते हैं। यह सब सुनकर हामिद खां यह कहते है कि ‘काश, मैं आपके मुल्क में आकर यह सब देख सकता।’ जबकि उनके देश में यह सब कुछ नहीं होता है।
हामिद को लेखक कि किन बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था?
लेखक हामिदखां से कहते हैं कि वे बढ़िया एवं लजीज खाना खाने के लिए भारत में अकसर मुसलमानी होटल में जाते रहते हैं और उन्हें इस बात पर भी विश्वास नहीं हो रहा था कि एक हिंदू मुसलमान की दुकान पर खाना खाने जाते हैं। तक्षशिला में कोई हिंदू इतने अभिमान तथा विश्वास से हिंदू मुसलमानों के आपसी संबंधों की बात ही नहीं करता था जबकि लेखक के अनुसार भारत में सब मिल जुलकर, प्यार और भाईचारे से रहते हैं। सभी लोग प्रेम एवं सद्भाव से रहते हैं ऐसा लेखक ने हामिद खां को बताया| जब लेखक हामिद खां को अपने यहां के हिंदू मुसलमान संबंधों के विषय में बताता है तब हामिद खां को लेखक की इन बातों पर विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उनके देश में इस तरह की धार्मिक एकता और सद्भाव नहीं है|
हामिद खाँ ने खाने का पैसा लेने से इंकार क्यों किया?
लेखक हिंदू होकर भी एक मुसलमान के होटल में खाना खाया था। इस बात पर हामिद खां को गर्व हो रहा था। वे लेखक को अपना अतिथि मान रहे थे किंतु लेखक दुकानदार होने के कारण हामिद खां को पैसे देना चाहते थे। हामिद खां ने संकोच करते हुए पैसे लिए और फिर वापस कर दिए और तब हामिद खां बोले ये पैसे आप अपने पास ही रखिए और जब वापस अपने वतन जाएँ और किसी मुस्लिम व्यक्ति के होटल पर पुलाव खाएं खायेंगे तो आपको यहाँ की मेहमाननवाजी याद आ जायेगी| हामिद खां एक हिन्दू के सम्मानपूर्वक एक मुस्लिम के होटल में खाने से बहुत प्रभावित थे और इसीलिये उन्होंने उनके पैसे वापस कर दिए|
मालाबार में हिन्दु मुसलमानों के परस्पर संबंधों को अपने शब्दों में लिखिए।
जब लेखक तक्षशिला में हिंदू होकर भी मुसलमान के यहां खाना खा रहे थे तब हामिद खां को समझाते हुए वे अभिमान और भरोसे के साथ लेखक कहते हैं कि उनके यहां यदि किसी को बढ़िया चाय पीनी हो या फिर उत्तम स्वादिष्ट पुलाव खाना हो तो वे बिना संकोच किए मुसलमानी होटल में जाया करते हैं। यहाँ सभी धर्म एक समान है। न कोई जाति भेद, न ही धर्म के नाम पर दंगे होते हैं। मुसलमानों द्वारा भारत में स्थापित पहली मस्जिद केरल के ‘कोडुंगल्लूर’ नामक स्थान पर बनाई गई है। इस प्रकार हिन्दू मुसलमान दोनों यहाँ भाईचारे एवं प्रेम से रहते हैं।
तक्षशिला में आगजनी की खबर को पढ़कर लेखक के मन में कौन सा विचार कौंधा? इससे लेखक के स्वभाव की किस विशेषताओं का परिचय मिलता है?
जब तक्षशिला में राजनीतिक दंगों में गैरकानूनी तरीके से किसी के मकान, संस्थान तथा खेत आदि में आग लगाने का समाचार पढ़ा तो लेखक को हामिद खां की याद आती है। हामिद खां जी द्वारा दिया गया स्नेह, प्रेम एवं उनकी मेहमाननवाजी मानवता की याद दिलाता हैं। लेखक ईश्वर से दया की प्रार्थना करते हुए ईश्वर से कहते हैं कि हामिद खां और उनकी दुकान आगजनी से बच जाए क्योंकि उन्होंने तेज गरमी के मौसम में लेखक की मदद करते हुए उन्हें छाया एवं भूख-प्यास मिटाने में मदद की थी। इससे यह पता चलता है कि लेखक का ह्रदय अत्यंत मानवीय संवेदना से भरा हुआ है। इससे लेखक की धार्मिक सहिष्णुता एवं हमदर्दी जैसे भावों का परिचय होता हैं।