‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है?
मानसरोवर से कवि का आशय है- मन रूपी पवित्र सरोवर या सरल शब्दों में कहें तो ह्रदय रुपी तालाब से है, जो हमारे मन में स्थित है|
कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई हैं?
कवि ने सच्चे प्रेमी की निम्न कसौटियाँ बताई हैं| कवि कहता है कि-
1. सच्चा प्रेमी अपने प्रेम अर्थात ईश्वर को भक्ति करते हुए पाना चाहता है|
2. इस प्रक्रिया में वह ईश्वर के प्रति सम्पूर्ण निष्ठा दिखाते हुए ईश्वर भक्ति में लोभ, मोह, माया आदि से ऊपर उठ जाता है|
3. साथ ही वह इस प्रक्रिया में उसके मन के भीतर उपस्थित सारी गलत भावनाओं से भी मुक्त हो जाता है|
4. ईश्वर प्राप्ति के रास्ते में सांसारिक मोह, माया, बंधन आदि बाधक नहीं बन पाते|
तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्व दिया है?
तीसरे दोहे में कवि सांसारिकता और मोह माया की बात करते हुए कहता है कि पृथ्वी पर मनुष्य वेफिजूल की सुविधाओं और संसाधनों का संग्रह करता रहता है और ऐसा करते हुए वह अपनी जिंदगी गुजार देता है| कवि कहता है कि मनुष्य को सांसारिकता और भेदभाव रहित सच्चे ज्ञान की प्राप्ति को ही अपना मूल उद्देश्य बनाना चाहिए| यही सच्चा ज्ञान उसके जीवन को सार्थक बना सकता है|
इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता हैं?
इस संसार में सच्चा संत वही है जो-
(1) लोभ, मोह, माया आदि भावनाओं से मुक्त रहता है|
(2) सांसारिकता से दूर रहकर प्रभु भक्ति में लीन रहता है|
(3) वह उसके जीवन में घटने वाली सभी घटनाओं जैसे कि-सुख-दुःख, प्रेम-वियोग, लाभ-हानि आदि को एक समान रूप से स्वीकार करता है
(4) वह प्रभु की भक्ति दिखावे के लिए नहीं करता बल्कि सच्चे मन से करता है|
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने निम्नलिखित संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है-
(1) मुसलमान अपना पवित्र तीर्थस्थल काबा को मानते हैं जबकि हिंदू काशी को अपना पावन स्थल मानते हैं और फिर भी हमेशा धार्मिक मुद्दों पर एक दूसरे से झगड़ते रहते हैं जबकि ईश्वर एक ही है|
(2) किसी भी मनुष्य के मात्र उच्च कुल में जन्म ले लेने से वह महान नहीं बना जाता, महान तो वह अपने कर्मों एवं गुणों से बनता है| मनुष्य के गुण उसकी महानता एवं विशिष्टता का निर्धारण करते हैं| अगर मनुष्य अच्छे कर्म करता है, उसका चाल-चलन ठीक है तो महान और समाज में सम्मानीय स्थान ग्रहण करता है लेकिन मात्र ऊँचे कुल में जन्म लेने से कोई महान अथवा सम्माननीय नहीं बन सकता|
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मो से ? तर्क सहित उत्तर दीजिये
कुछ लोगों का मानना है कि अगर किसी व्यक्ति का जन्म अच्छे कुल में होता है तो वह व्यक्ति महान बन जाता है| जबकि यह सत्य नहीं है किसी भी व्यक्ति को महान बनने के लिए अच्छे कुल में जन्म लेना आवश्यक नहीं है बल्कि अच्छे कर्म करना आवश्यक है| यदि व्यक्ति अच्छे कर्म करता है तो वह महान होता है चाहे उसने अच्छे कुल में जन्म लिया हो अथवा नहीं|
काव्य सौंदर्य-
हस्ती चढि़ए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।
काव्य सौंदर्य
भाव सौंदर्य- दी गयी पंक्तियों में कबीर ने ज्ञान की तुलना हाथी से की है| यहाँ कवि कह रहा है मनुष्य को इस ज्ञान रुपी हाथी की सवारी गलीचा डाल कर करनी चाहिए| ऐसा करते वक्त अगर यह समाज अथवा संसार उसकी आलोचना करता है तो मनुष्य को उस आलोचना की परवाह नहीं करनी चाहिए| मनुष्य का मूल उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति का होना चाहिए|
शिल्प सौंदर्य
(1) इन पंक्तियों में कवि ने तत्सम शब्दों का प्रयोग किया है| जैसे कि- ‘हस्ती’, ‘स्वान’, ‘ज्ञान’ आदि तत्सम शब्दों का प्रयोग है।
(2) इस रचना में भक्ति रस की प्रधानता है।
मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरता है?
मनुष्य ईश्वर को निम्नलिखित स्थानों पर ढूँढ़ता फिरता है-
(1) हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग अपने ईश्वर को मंदिर एवं उनके पवित्र तीर्थ स्थलों जैसे कैलाश पर्वत, वैष्णो देवी आदि स्थानों पर पर ढूंढते हैं|
(2) मुसलमान अपने ईश्वर को मस्जिद एवं अन्य धार्मिक स्थानों के साथ काबा में ढूंढता है|
इसके साथ ही मनुष्य अनेक अन्य साधनों जैसे-योग, वैराग्य, साधना, प्रार्थना आदि के माध्यम से ईश्वर को ढूँढने अथवा पाने की कोशिश जारी रखता है|
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
कबीर ने ईश्वर की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है-
(1) कबीर कहते हैं कि मनुष्य मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में पूजा-अर्चना करके सोचता है कि वह इस प्रकार से ईश्वर को प्राप्त कर सकता है लेकिन इस विधि से ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है|
(2) मनुष्य धार्मिक उद्देश्यों से अनेक धार्मिक स्थानों पर तीर्थ यात्रा के लिए जाता रहता है लेकिन इस तरीके से भी ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है|
(3) मनुष्य अंध विश्वास, दिखावटी भक्ति एवं अन्य आडंबर करता है लेकिन इस प्रकार से भी ईश्वर को प्राप्त करना संभव नहीं है|
इस प्रकार कबीर ने यहाँ बताने की कोशिश की है कि मनुष्य को अंध-विश्वास एवं आडंबरों से बेहतर सच्चाई से अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए|
कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में’ क्यों कहा है?
सभी प्राणियों, मनुष्यों एवं इस सम्पूर्ण संसार एवं समाज की रचना ईश्वर ने की है और ईश्वर प्रत्येक प्राणी की साँसों में समाया हुआ है| पृथ्वी पर प्रत्येक प्राणी का अस्तित्व ईश्वर से ही है| इसी कारण से कवि ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस’ में कहा है।
कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आंधी से क्यों की?
कबीर दास ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न करके आंधी से इसलिए की है क्योंकि सामान्य हवा जब चलती है तो वह अपने चलने के पथ में आने वाली वस्तुओं की स्थिति पर ज्यादा प्रभाव नहीं डालती जबकि आंधी जब चलती है तो वह अपने पथ में आने वाली प्रत्येक बस्तु जैसे-कूड़ा-करकट, पत्तियाँ, घास-फूंस आदि को उड़ाकर दूर ले जाती है| इसी प्रकार से जब किसी व्यक्ति को ज्ञान की प्राप्ति होती है उसके पश्चात वह व्यक्ति संसारिकता, मोह, माया आदि से मुक्त हो जाता है|
ज्ञान की आंधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
ज्ञान की आंधी अर्थात भक्त को ज्ञान प्राप्ति होने के पश्चात उसके मन पर पड़ा भ्रम और अज्ञान का पर्दा हट जाता है और वह संसारिकता, मोह, माया आदि से मुक्त हो जाता है| उसके मन में व्याप्त अन्धकार हट जाता है और वह ईश्वर एवं स्वयं के महत्त्व को ठीक से समझने में सक्षम हो पाता है| ज्ञान प्राप्ति के पश्चात वह जान पाता है कि इस संसारिकता में कुछ नहीं रखा और फिर वह इस सच्चाई को समझकर प्रभु भक्ति में लीन हो जाता है|
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
(ख) आँधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
(क) यहाँ ज्ञान की आँधी या सरल भाषा में कहें तो मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात मनुष्य के स्वार्थ रुपी दोनों खंभे टूट गए हैं तथा सांसारिक मोह रुपी बल्ली टूट गयी है| इस ज्ञान रुपी आंधी के फलस्वरूप कामना रुपी छप्पर टूट गया है और उसके मन में व्याप्त सभी बुराइयाँ नष्ट हो गयी हैं| इस प्रक्रिया में उसका मन बिलकुल साफ़ हो गया है|
(ख) ज्ञान की आंधी के पश्चात मानव का मन साफ एवं सांसारिकता से मुक्त हो जाता है और प्रभु की भक्ति में रमने लगता है| प्रभु-भक्ति रुपी ज्ञान की बर्षा के कारण मन प्रेम रुपी जल से भीग जाता है और मनुष्य का मन आनंदित हो उठता है| कहने का अभिप्राय है कि ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात मनुष्य का मन आनंदित हो उठता है|
संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
कबीर ने अपनी रचना के माध्यम से समाज एवं मनुष्य के मन एवं आँखों पर पड़े धर्म, संप्रदाय एवं संसारिकता के परदे को अपनी इस रचना के माध्यम से हटाने की कोशिश की है| इस रचना में कबीर ने मनुष्य को इस संसारिकता के बंधनों, धार्मिक अंधविश्वास आदि से मुक्त होकर प्रभु भक्ति में लीन होने के बारे में मनुष्य को बताया है| कबीर ने बताया है कि प्रभु की भक्ति ही श्रेष्ठ है और मनुष्य को सच्चे मन से प्रभु की भक्ति में लीन रहना चाहिए|
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-
पखापखी, अनत, जोग, जुगति, बैराग, निरपख