हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?
हिन्दी भाषा के लेखक हरिशंकर परसाई ने प्रस्तुत व्यंग्य रचना ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ में प्रेमचंद के व्यक्तित्व का विस्तृत विवरण शब्दचित्र के माध्यम से प्रस्तुत किया है। इस रचना में प्रेमचंद के व्यक्तित्व की उभरकर आने वाली विशेषताओं में हमें सबसे पहले उनका स्वाभिमान दिखाई पड़ता है। हम लेखक के शब्दों में प्रेमचंद के पहनावे का मूल्यांकन करने पर ऐसा पाते हैं। प्रेमचंद की सलीकेदार टोपी और फटे जूते पहनने के पीछे का कारण भले ही आर्थिक हो पर इससे हमें उनके व्यक्तित्व में छिपे स्वाभिमान और उससे कहीं अधिक बढ़कर आत्मसम्मान की भावना के होने का पता चलता है। साथ ही उनका दिखावे से दूर तक रिश्ता न होने का पता भी हमें उनके पहनावे से चलता है। उनके चेहरे पर संतुष्टि भरी मुस्कान हमें अनायास या ओढी हुई नहीं लगती है। इस खिली मुस्कान में हमें निरंतरता का आभास होता है फिर चाहे भले ही वह उनके सतत कर्मनिष्ठ होने के भाव से उपजी हो। हम उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व मोहक ही पाते हैं।
सही कथन के सामने (â) का निशान लगाइए-
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुस्कान मेरे हौसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठक से इशारा करते हो?
(ख) लोग तो इत्र चुपङकर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।(â)
नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए?
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर
पचीसों टोपियाँ न्यौछावर होती हैं|
(ख) तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?
(क) यहाँ लेखक की नजर में जूता तौहीन पहुँचाने या दूसरों को अपमानित करने का प्रतीक है। वहीं टोपी आत्मसम्मान का प्रतीक बताया गया है। जूते की कीमत को टोपी का पच्चीस गुणा बताकर वास्तव में लेखक द्वारा लोगों के बीच दूसरों को अपमानित करने के बढते चलन के बारे में बताया गया है। साथ ही लेखक द्वारा लोगों में आत्मसम्मान की घटती भावना को टोपी की काफी कम कीमत रहने के रूप में बताया गया है।
(ख) यहां लेखक प्रेमचंद के द्वारा बाहर-भीतर एक समान रहने की उनकी सोच को लेकर उन्हें
प्रेमपूर्वक उलाहना देता है। वह अपने आप को प्रेमचंद की इस सोच पर न्यौछावर कर देता है। वह
अपने आप एवं अन्य लोगों को प्रेमचंद की ऐसी सोच का ना होने पर अफसोस प्रकट करता है।
(ग) प्रेमचंद एक स्पष्टवादी इन्सान थे उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था| अगर उन्हें किसी की आलोचना करनी होती थी तो वे उसकी आलोचना उसके मुँह पर ही करते थे अर्थात उसकी तरफ हाथ की ऊँगली नहीं बल्कि पैर की ऊँगली दिखाते थे|
पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फोटो खिचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पेशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?
इस बारे में लेखक के विचार बदलने का कारण मैं प्रेमचंद के कर्मनिष्ठ स्वभाव को मानता हूँ। वास्तव में लेखक प्रेमचंद के लेखन के प्रति उनके समर्पण भाव को भांप गये हैं। वो समझ गये हैं कि इस आदमी ने अपने संपूर्ण जीवन को साहित्य सेवा में लगा दिया है और उसे अच्छे कपडे पहनने का कोई शौक नहीं है या फिर उसके पास अच्छे कपडे पहनकर फोटो खिंचवाने का समय नहीं है। वह इन दिखावे की चीजों को साहित्य सेवा के अपने लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में बाधा समझता है। वह साहित्य साधना में सदा प्रयत्नशील रहकर अपने पहनावे के प्रति थोड़ा लापरवाह हो गया है। वह साहित्य साधना में इतना रम गया है कि उसे किसी अन्य चीज की परवाह नहीं है और अपने पहनावे की उसे तो परवाह बिल्कुल नहीं है। मुंशी प्रेमचंद के बारे में इन सब बातों को सोचकर लेखक उनके पास अलग-अलग पोशाक मौजूद होने के बारे में अपने विचार को बदल देता है।
आपने यह व्यंग्य प्ढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं?
मुझे इस व्यंग्य को पढ़कर सर्वप्रथम लेखक की विवेचना शक्ति का पता चलता है। जिस प्रकार लेखक ने प्रेमचंद के संपूर्ण व्यक्तित्व का आकलन उनके फटे जूते से किया है वह दुर्लभ है। प्रस्तुत व्यंग्य रचना में हम लेखक के शब्दों में कहानीकार प्रेमचंद के बायें पैर में फटे जूते पहनने को बड़े ही रोचक अंदाज में पाते हैं। यह बात पक्की है कि लेखक के मन में प्रेमचंद जी के प्रति सम्मान की भावना काफी है। वे उन्हें अपना पुरखा मानकर पहले तो उन्हें फटे जूते पहनने को लेकर उन्हें उलाहना भरे शब्द कहते हैं। वे प्रेमचंद को इस हेतु काफी कोसते हैं और उन्हें अप्रिय बात तक कह डालते हैं और अंत में वे प्रेमचंद के ऐसा करने यानि फटा जूता पहनने के पीछे छिपे राज को समझने का दावा भी करते हैं जिससे हमें उनके विवेकपूर्ण स्वभाव का पता भी चलता है। साथ ही उनका व्यंग्य अंधेरे में तीर नहीं चलाता है बल्कि अपनी तर्कपूर्ण सोच के आधार पर उनकी गंभीर व्यंग्य शैली को हमारे सामने प्रस्तुत करता है।
पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
पाठ में टीले शब्द का प्रयोग प्रेमचंद के मार्ग में आने वाली बाधाओं के संदर्भ में किया गया है। नदी के मार्ग में टीले आ जाने पर कुछ नदियां अपना मार्ग बदल लेती हैं और कुछ नदियां उन टीलों को तोड़कर अपना मार्ग बनाती हैं। यहां पर लेखक ने प्रेमचंद के द्वारा समाज की प्रगति के लिए साहित्य सृजन के मार्ग में सामाजिक बाधाओं को टीला बताया है। ये सामाजिक कुरीतियां प्रेमचंद के साहित्य सृजन के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती हैं। लेखक प्रेमचंद को इन सामाजिक कुरीतियों पर अपनी लेखिनी से सतत प्रहार करता हुआ पाता है।
प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
मेरे ननिहाल में एक व्यक्ति को मैं उनके पहनावे को लेकर आज भी याद करता हूँ। वे अपने घर पर काफी साधारण पोशाक में रहते थे। वे अपना सर तो सदा मुंडाये रखते थे। उनके शरीर का उपरी भाग प्रायः बिना किसी आवरण के रहता था। अपने शरीर को ढंकने के लिए लुंगी वह एकमात्र स्थायी वस्त्र के रुप में पहनते थे। वह लुंगी भी प्रायः गंदी और अस्त-व्यस्त ही रहती थी। घर से बाहर किसी काम से निकलने पर वह अपने कंधे पर लकङी की झाङी डाल लेते थे। सबसे अजीब बात थी कि गांव के लोग उनपर हँसने से पहले उस व्यक्ति के ऐसा करने के बारे में नहीं सोचते थे। वास्तव में वह व्यक्ति काफी साधन संपन्न व्यक्ति था। गांव के कुछ बुरी प्रवृत्ति वाले लोगों द्वारा उसके मेधावी होने पर भी नौकरी न मिलने पर उसके अवसादग्रस्त होने पर नशे की आदत लगा दी गयी थी। इस अवस्था में आकर उसे अपने तन-मन की सुध ना रही। और वह मेधावी युवक इस प्रकार हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था और उसमें समाहित भ्रष्टाचार पर चोट करता हुआ लोगों की हँसी का ताउम्र पात्र बनता रहा।
आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
मेरी दृष्टि में वेश-भूषा को लेकर आज के लोगों की सोच में काफी परिवर्तन आया है। आज लोग घर से शानदार पोशाक पहनकर बाहर निकलते हैं जिससे हमें इनकी आर्थिक स्थिति का पता नहीं चलता है। कहने का अर्थ है कि कम पैसे वाले लोग भी यथासंभव अपनी बुद्धि का प्रयोग पोशाक के चयन में भी करते हैं। यह काफी हद तक अच्छी बात है। समस्या तब आती है जब विभिन्न असमानताओं से भरे हमारे देश में पहनावा हमारा स्टेटस सिंबल या कहें दिखावे की वस्तु बन जाता है। लोग दिखावे में आकर अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई फैशन के चक्कर में अपने कपड़ों पर खर्च करते हैं। अमीर का तो इसमें नाम मात्र का आर्थिक नुकसान होता है। वहीं गरीब तो बेचारा मारा ही जाता है। मध्यम आय वर्ग के लोग भी फैशन के आर्थिक बोझ के तले दब जाते हैं।
पाठ में आए मुहावरे छांटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए?
(1) बहुत गहराई में होना- गंभीर स्थिति- अरे यार! अभी मामला बहुत गहराई में है।
(2) कुर्बान होना- प्रभावित होना- मैं उसकी हँसी पर कुर्बान हो गया।
(3) अटक जाना- एक स्थान पर स्थिर हो जाना- एक स्थान पर मत अटको।
(4) न्यौछाबर होना- समर्पित करना- वीर शहीदों ने अपना जीवन देश पर न्योछावर कर दिया।
(5) हौसले पस्त करना- बुरी तरह से पराजित करना- बहादुर सैनिकों ने युद्ध के मैदान में विरोधियों के हौसले पस्त कर दिये।
(6) पहाड़ फोड़ना- मुश्किल काम कर डालना- उसने तो केस जीत कर पहाड़ फोड़ दिया।
(7) कुएं के तल में होना- दुरूह होना- शिव तो कुएं के तल में होने पर भी बस्तु को खोज ही लायेगा।
(8) ठोकर मारना- ठुकरा देना- विष्णु ने अच्छी खासी नौकरी को ठोकर मार दी।
(9) रो पड़ना- ब्रह्मा की स्थिति देखकर राम रो पड़ा।
(10) पछतावा होना- गलती समझना- महेश को हराकर रमेश को पछतावा हुआ।
(11) बचकर निकलना- छिपकर निकलना- बच्चू! यहां से बचकर निकलना आसान नहीं है।
(12) हतोत्साहित करना- उत्साह घटाना- कर्ण को अधिकांश लोगों ने हतोत्साहित ही किया।
प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिये लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइये?
प्रेमचंद के बारे में लेखक ने निम्नलिखित विशेषणों का प्रयोग किया है-
1. उपन्यास सम्राट
2. साहित्यिक पुरखे
3. महान कथाकार
4. युग प्रवर्तक
5.जनता के लेखक