बादलों के आने पर प्रकृति में जिन गतिशील क्रियाओं को कवि ने चित्रित किया है, उन्हें लिखिए।
कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना प्रस्तुत कविता ‘मेघ आये’ में मेघ या बादल के घिर आने पर प्रकृति में आये परिवर्तनों का बड़ी ही बारीकी से उल्लेख करते हैं। इस बारे में वे बादलों के आने की सूचना पूरवा हवाओ द्वारा देने की बात कहते हैं। ये ठंडी हवायें धूल को गोल-गोल घुमाती हैं जिससे ये आंधी का रूप ले लेती हैं। फिर गहरे नीले या कहें कि काले रंग के बादल बरसते हैं। पीपल एवं इसके जैसे अन्य पुराने पेड़ हिलने लगते हैं। पेड़ों से लिपटी लताएं छिपने लगती हैं। आकाश में दूर क्षितिज में बिजली चमकने लगती हैं। वर्षा की बूँदों से गर्मियों में सूख गये तालाब भर जाते हैं। नदी थोड़ी-थोड़ी ठिठक-ठिठक कर वर्षा की बूँदों से भरने लगती हैं। प्रकृति के ये सभी तत्व मिलकर बरसात के मौसम में हमारे सामने अद्भुत नजारा प्रस्तुत करते हैं।
निम्नलिखित किसके प्रतीक हैं?
धूल, पेड़, नदी, लता, ताल
धूल- धूल किशोर वय लडकी का प्रतीक है जो मेहमान की सूचना देने के लिए भागी आ रही है|
पेड़- पेड़ गांव के पुरुषों का प्रतीक है।
नदी- नदी गांव की विवाहिता महिलाओं की प्रतीक है।
लता-- लता बादल की पत्नी का प्रतीक है।
ताल- ताल घर के किसी सदस्य का प्रतीक है।
लता ने बादल रूपी मेहमान को किस तरह देखा और क्यों?
बादल बहुत समय के पश्चात गाँव में पधारे हैं| इसीलिये लता ने बिरहिणी प्रियतमा, नायिका या पत्नी के रूप में बादल रुपी प्रियतम को देखा| वह अपने प्रियतम, नायक अथवा पति को उलाहने भरी नजरों से देखती है। इसका कारण बादल के के पूरे एक साल के बाद अपने ससुराल आने से है। वह इस हेतु उससे रूष्ट होकर किवाड़ की ओट में थोडा छिप जाती है। वास्तव में कवि प्रस्तुत कविता में बादल की तुलना गांव के दामाद से करता है। जब बादल यानि दामाद गांव आता है तब लता यानि उसकी पत्नी शरमा कर पेड़ की पत्तियों में छिप जाती है। कहा भी गया है जहां न जाय रवि वहां जाय कवि। इस प्रकार कवि लता के छिपने का संबंध अपने बादल रुपी पति के आने से जोड़ देता है| यहाँ कवि ने प्रकृति का मानवीकरण किया है|
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) क्षमा करो गांठ खुल गई अब भस्म की
(ख) बांकी चितवन
(क) दामाद के घर आने की प्रतीक्षा में उसकी पत्नी एक साल का लंबा इंतजार करने के कारण अधीर हो उठी थी। एक साल के बाद घर आने पर उसका अपने पति को लेकर सब भ्रम मिट गया है।
(ख) मेघों के आगमन से नदी में बड़ी-बड़ी लहरें उत्पन्न हो गयी जिससे लगता है कि नदी के ऊपर उठकर मेघ को देखने की जल्दबाजी में में उसका घूंघट सरक गया और फिर वह उसी संभालने की कोशिश करती है|
मेघ रूपी मेहमान के आने से वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
मेघरूपी मेहमान के गांव में प्रवेश करने से वहाँ के वातावरण में निम्न परिवर्तन आते हैं| मेघ के आने से हवारुपी किशोरियां दौड़-दौड़ कर मेहमान के आने की सूचना घर में देने को दौडती हैं। गांव के पेड़ रुपी पुरुष आपस में बातें कर मेहमान के गांव में आने की चर्चा करने लगे। गांव की नदी रुपी विवाहित महिलाएं ठिठक कर कनखियों से मेहमान को निहारने लगीं हैं और इस मेहमान को देखकर अपना घूंघट सरकाने लगीं। घर का तालाब रूपी कोई सदस्य मेहमान को आया जानकर उसके स्वागत में जल प्रस्तुत करने लगा है। घर के अंदर मेहमान की लता रूपी पत्नी थोड़ा सकुचा जाती है और घर में उपर क्षितिज रूपी अटारी पर बूंद रूपी प्रेमाअश्रु में खुशी का प्रकाश फैल जाता है।
मेघों के लिए ‘बन-ठन के, संवर के’ आने की बात क्यों कही गयी है?
कवि द्वारा प्रस्तुत कविता में मेघों के लिए बन-ठन के संवर कर आने की बात कही गयी है। वास्तव में मेघ एकाएक ही नहीं घिर आते हैं। वे हमें अपने आने की सूचना ठन्डी-ठन्डी पुरवाई हवा से देते हैं। हम बरसात के मौसम में इन हवाओं से ही मेघों या बादलों के आने की सूचना प्राप्त करते हैं। आसमान में हम इस अवसर पर इंद्रधनुष के रूप में सतरंगी छटा भी देखते हैं। ठंडी हवायें, पानी की बूंदें, इंद्रधनुष और कुछ नहीं बल्कि बादलों के श्रृंगार के सामान ही हैं जिन्हें पहन ओढ़ कर मेघ गहरा नीला और कभी-कभी काला रूप लेकर खूब बरसता है।
कविता में आए मानवीकरण तथा रूपक अलंकार के उदाहरण खोजकर लिखिए।
प्रस्तुत पाठ में मानवीकरण अलंकार के उदाहरण निम्नलिखित हैं-
(क) मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के
(ख) नाचती गाती बयार चली
(ग) पेड़ झुक झाँकने लगे
(घ) धूल भागी घाघरा उठाये
(ङ) बाकी चितवन उठी नदी ठिठकी
(च) बूढे पीपल ने जुहार की
(छ) बोली अकुलाई लता
(ज) हरसाया ताल लाया पानी भरके
कविता में जिन रीति रिवाजों का मार्मिक चित्रण हुआ है, उनका वर्णन कीजिए।
प्रस्तुत कविता ‘मेघ आये’ में रीति-रीवाजों का मार्मिक चित्रण हमें देखने को मिलता है। गांवों में अक्सर देखने को मिलता है कि लोग किसी घर के दामाद को सारे गांव के दामाद की संज्ञा दे देते हैं। हालांकि हाल के आधुनिकता की ओर बढ़ते भारतीय समाज में इस प्रकार की सोच में कमी आई है और फिर कविता भी तो बीसवीं सदी के भारतीय समाज की है। प्रस्तुत कविता में उस समय के गांव के बारे में एक-एक बात सत्य प्रतीत होती है। कि कैसे गांव में मेहमान(दामाद) के आने पर सारे वातावरण में जैसे खुशी का संचार हो जाता था। किशोर लड़कियाँ अपने घाघरों को थोड़ा उपर उठाकर मेहमान के आने के बारे में सूचना देने हेतु अपने घरों की ओर दौड़ पड़ती थी। बड़े-बूढ़े खुशी के मारे कैसे झूमने लगते हैं। विवाहिताएं किस प्रकार ठिठक कर कनखियों से उसे देखकर स्नेहसिक्त हो उठती हैं। घर का कोई सदस्य उसके लिये पानी लाता है। उसकी पत्नी उसे आया देखकर शरमा-सकुचा जाती है। इस कविता में ग्रामीण समाज के इन्हीं सब रीति रिवाजों का मार्मिक चित्रण किया गया है|
कविता में कवि ने आकाश में बादल और गांव में मेहमान (दामाद) के आने का जो रोचक वर्णन किया है, उसे लिखिए।
प्रस्तुत कविता में कवि ने आकाश में बादल के आने की तुलना गांव में मेहमान के आने सी की है| कवि ने इस तुलनात्मक वर्णन को बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है| कवि बादल या मेघ के आने की तुलना गांव में एक वर्ष के बाद आये मेहमान से कर रहे हैं। वर्षा ऋतु का आगमन एक वर्ष के पश्चात होता है और उसी शहर में रहने वाला गांव का कोई व्यक्ति भी मेहमान के समान एक वर्ष के बाद अपने गाँव अथवा ससुराल आता है| गांव के लोग भी दामाद की तरह गाँव में मेघ के आने का इन्तजार कर रहे हैं| हवा मेघ के आने की सूचना देती है। कवि गांव की किशोर लड़कियों द्वारा दौड़ कर मेघ के गाँव में आने की सूचना घर में देने की तुलना हवा से करते हैं। वे पेड़ के हिलने की तुलना गांव के वृद्ध लोगों की इस बारे में बात-चीत से करते हैं। वे गांव की विवाहित स्त्रियों की तुलना नदी से करते हैं। साथ में वे वर्षा से तालाब के भरने की तुलना घर के किसी सदस्य के द्वारा मेहमान के स्वागत में जल लाने से करते हैं। वे पेड़ों की ओट में छुपी लता की तुलना मेहमान को देखकर उसकी पत्नी के लज्जावश छुप जाने से करते हैं।
काव्य-सौंदर्य लिखिए-
पहुन ज्यों आए हों गांव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के।
कविता द्वारा रचित प्रस्तुत पंक्तियों में काव्य सौंदर्य निम्न प्रकार से है-
कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में गांव में मेघ रूपी मेहमान के आने का बड़ा ही अनुपम चित्रण किया गया है। हम इन पंक्तियों में गांव में एक साल के अंतराल पर आने वाली वर्षा का वर्णन पूरे एक साल के बाद गाँव में आने वाले मेहमान से किया गया है|
कविता में आम बोलचाल की भाषा का खुलकर प्रयोग हुआ है। कहने का अर्थ है कविता आंचलिक बोली अथवा भाषा से भरी पडी है। कविता का शिल्प सौन्दर्य बेहतरीन है|
कविता में मेघों की तुलना मेहमान से की गई है। यहां पर हमें उत्प्रेक्षा अलंकार देखने को मिलता है।
कविता में आयी पंक्तियों में हमें मानवीकरण एवं अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग भी देखने को मिलता है|
वर्षा के आने पर अपने आसपास के वातावरण में हुए परिवर्तनों को ध्यान से देखकर एक अनुच्छेद लिखिए।
वर्षा की आहट मात्र से सारे वातावरण में प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती है। मैं हर वर्ष वर्षा के मौसम में मैं अपने आप को आनंदित पाता हूं। गर्मी के प्रचंड ताप को वर्षा हर लेती है। पहली बारिश का आनंद शब्दों में बयान करना जरा मुश्किल है। हर वर्ष वर्षा के मौसम में पूर्वा हवा अपने साथ मेघों का संदेश लेकर आती है। मैं तो इस पूर्वा हवा से अपने को काफी आह्लादित पाता हूं। मैं बचपन में वर्षा के आने पर जल-जमाव होने पर कागज के नाव चलाना काफी पसंद करता था। मैं प्रकृति के हर तत्व को वर्षा के मौसम में आनंदित पाता हूं। चाहे वह सूखे पेड़ों में नयी जान आने की बात हो या नये पौधों में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि की बात हो मैं या घटना बर्षा के हर मौसम में देखता हूँ| समुचित वर्षा होने पर धान की फसल की रोपाई भी मैं हर वर्ष देखता हूं। मैं प्रत्येक वर्ष वर्षा के मौसम में अपने चारों तरफ हरियाली ही हरियाली देखता हूं।
कवि ने पीपल को ही बड़ा बुजुर्ग क्यों कहा है? पता लगाइए।
कवि द्वारा गांव के बुजुर्ग की तुलना पीपल के वृक्ष से की गयी है| ऐसा पीपल के अस्तित्व का किसी बड़े- बुजुर्ग के व्यक्तित्व से मेल खाने पर कहा गया है। पीपल के वृक्ष की आयु अन्य वृक्षों से अधिक होती है| हमें पीपल की दीर्घायु और मानव जीवन के प्रति इसके स्वास्थ्यकर होने के बारे में पता है। हम जानते हैं कि पीपल के पत्ते आदि का उपयोग एंटीबायोटिक दवाओं को बनाने में किया जाता है। पत्तियों का प्रयोग विभिन्न प्रकार कीटाणुओं से हमारे शरीर को हुए संक्रमण को दूर करने में भी किया जाता है क्योंकि इनमें कीटाणु नाशक शक्ति होती है। ठीक उसी प्रकार गांव का कोई बुजुर्ग भी ग्रामीणों के विचार को संक्रमित होने से बचाता है। नशे आदि का शिकार होकर अपने पथ से भटक गये युवाओं को बुजुर्ग व्यक्ति अपने विचारों से पीपल की ही भांति शुद्ध करते हैं। इन्हीं सब कारणों के कारण पीपल के वृक्ष की तुलना गाँव के बुजुर्ग से की गयी है|
कविता में मेघ को ‘पाहुन’ के रूप में चित्रित किया गया है। हमारे यहाँ अतिथि (दामाद) को विशेष महत्व प्राप्त है, लेकिन आज इस परंपरा में परिवर्तन आया है। आपको इसका क्या कारण नजर आता है, लिखिए।
मैं गांवों में भी आज अतिथि(दामाद) को पहले की भांति सम्मान ना मिल पाने के लिए समाज में बढ़ती आधुनिकता की प्रवृत्ति को उत्तरदायी मानता हूं। आज लोगों के जीवन में इस आधुनिकता के प्रवेश करने पर रिश्तों के बीच गंभीरता का स्थान औपचारिकता ले रही है। लोग पहले की तरह सीधे-सादे और निस्वार्थी नहीं रहे। सभी लोग अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं। सबसे बुरी बात है कि अब यह बीमारी धीरे-धीरे गांवों को भी अपनी चपेट में ले रही है। ऐसे में लोगों के बीच शिष्टाचार की भावना की जगह रुपये-पैसे की चाहत अपनी जगह ले रही है। जिस स्थान पर रिश्तों का स्थान पैसा लेगा वहां पर संबंधों में छिछलापन आने में देरी नहीं लगती है। भौतिकवादी होते जा रहे आज के समाज में लोग संबंधों को निभाना एक मूर्खतापूर्ण कदम मान रहे हैं। इस दमघोंटू माहौल में अतिथि(दामाद) जैसे नाजुक रिश्तों का भी इन्हीं कारणों से सम्मान कम हो रहा है।
कविता में आए मुहावरों को छांटकर अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए।
सुधि लेना -याद करना- आज कितने वर्षों बाद तुमने मेरी सुधि ली।
गांठ खुलना-मन का मैल दूर होना- अपने पुराने मित्र से मिलते ही मेरे मन की गांठें खुल गयीं।
बांध टूटना- धैर्य समाप्त होना- मोहन को देखते ही मेरे सब्र का बांध टूट गया।
बन-ठन के आना- देखो! तुम बन-ठन के अपने ससुराल जाओ।
गरदन उचकाना-उचक कर देखना- महेश गरदन उचका कर झांकी देख रहा है।
कविता में प्रयुक्त आंचलिक शब्दों की सूची बनाइए।
कविता में प्रयुक्त आंचलिक शब्द निम्न प्रकार से हैं-
(क) बयार
(ख) बांकी
(ग) जुहार
(घ) अकुलाई
(ङ) हरसाया
(च) ताल
‘मेघ आए’ कविता की भाषा सरल और सहज है- उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए?
‘मेघ आये’ कविता की भाषा सहज और सरल है। हम प्रस्तुत कविता में इसका उदाहरण पल-पल पाते हैं। हम चाहे ’ मेघ आये बङे बन-ठन के संवर के’ का उदाहरण लें या ‘ नाचती गाती बयार चली’ या फिर ‘पेङ झुक झांकने लगे’ का उदाहरण लें। हम इन पंक्तियों में गजब की सहजता और सरलता पाते हैं। यहां पर चर्चा की गई पहली पंक्ति में ही हम किसी और के नहीं बल्कि गांव में मेहमान के आने का इशारा हम ‘बन-ठन के’ जैसे सहज शब्दों के प्रयोग से पाते हैं। हम ‘नाचती गाती बयार चली’ जैसे सरल शब्दों के प्रयोग में हम मेघों के आने से पहले ठन्डी हवा के बारे में जान जाते हैं। ‘पेङ झुक झांकने लगे’ में हमें मेघों के आने पर पेङों के झुमने-झूकने का पता चलता है। कविता में अन्य स्थानों पर भी सहज और सरल भाषा का प्रयोग हम प्रचूर मात्रा में पाते हैं।