थोड्ला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका। क्यों?
थोड्ला के पहले आखिरी गांव पहुंचने पर लेखक भिखमंगे के वेश में थे। इसके बाद भी उन्हें वहां रहने का उचित स्थान मिल गया था। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लेखक के साथ उनके दोस्त सुमति थे। सुमति की थोड्ला में अच्छी जान—पहचान थी।
वहीं जब 5 साल बाद लेखक उसी रास्ते से लौट रहे थे| उस समय वे भद्र वेश में थे फिर भी उन्हें सबसे गरीब झोपड़े में रहने की जगह मिली। लेखक गांव के लोगों से बिल्कुल परिचित नहीं थे। उस यात्रा में लेखक शाम के समय वहाँ पहुँचे थे। शाम के सामय लोग छड् पीकर होश-हवास खो बैठते हैं। इसके अलावा उनके साथ सुमति भी नहीं थे और उसी कारण दूसरी यात्रा के दौरान उन्हें रहने के लिए एक उचित स्थान नहीं मिला|
उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था?
उस समय तिब्बत में नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण दूर—दूर तक कोई आदमी नहीं दिखता था| तिब्बत एक पर्वतीय, वीरान और सुनसान इलाका है| ऐसी सुनसान जगहों पर अकसर डकैत, लुटेरे आदि अपना बसेरा बना लेते। जब भी कोई आदमी वहां से गुजरता तो वे उसे मारकर पैसे लूट लेते थे। पुलिस और खुफिया विभाग भी इतना सख्त नहीं क्योंकि तिब्बत एक सुनसान एवं बहुत कम अवादी वाला इलाका है| इन्हीं सब कारणों की वजह से लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए अपने साथ हथियार लेकर घूमना पड़ता था|
लेखक लड्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया?
लेखक लड्कोर के मार्ग में अपने साथियों से निम्नलिखित कारणों से पिछड़ गया-
(1) लेखक ने लड्कोर जाने के लिए घोड़ा किया था। आधा रास्ता तय करने के बाद घोड़ा बहुत धीरे चलने लगा था जिससे उसके साथी आगे निकल गए|
(2) घोड़े के सुस्त पड़ने से लेखक के दोस्त आगे निकल गए और वो पीछे रह गए। एक जगह पर दो रास्ते जा रहे थे। लेखक गलत रास्ते की ओर मुड़ गया और भटक गया।
(3) वह गतल रास्ते पर डेढ़-दो मील चलता गया और फिर वापस लौटा। इस बात को लेकर सुमति लेखक से नाराज भी हुए।
इन्हीं सब कारणों की वजह से लेखक रास्ते में अपने साथियों से पिछड़ गया|
लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका, परंतु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया?
शेकर विहार में सुमति के बहुत से यजमान रहते थे, जिनको वह गंडा बाँटते थे। इन गंडों को बाँटने में अधिक समय लगता था। लेखक को लगा कि सुमति अगर यजमान से मिलने गए तो वो हफ्ता भर वहीं लगा देंगे। इसलिए लेखक ने सुमति को यजमानों के पास जाने से रोका।
लेखक को शेकर विहार के ही एक मंदिर में बुद्धवचन-अनुवाद की 103 पोथियाँ मिल गईं। लेखक को पढ़ने का शौक था। उन्होंने किताबें उठाईं और पढ़ना शुरू कर दिया। वो किताबों में लीन हो चुके थे। इसलिए उसने दूसरी बार सुमति को रोकने का प्रयास नहीं किया क्योंकि अब लेखक के पास वक्त गुजारने का एक बेहतरीन साधन मिल गया था|
अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
अपनी यात्रा के दौरान लेखक को निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा-
(1) लेखक को ऊँचे-नीचे पहाड़ी रास्ते पर तेज धूप में यात्रा करनी पड़ी।
(2) तिब्बत की ओर जाने वाले कई रास्ते सुनसान थे। इस वजह से उन्हें डाकुओं का भय भी था।
(3) रास्ते में डाकुओं जैसी सूरत वालों को देखते ही लेखक को उनसे बचने के लिए अपने को भिखारी दिखाने के लिए उनसे भीख मांगनी पड़ी थी। अगर वो ऐसा नहीं करते तो डाकू उनकी हत्या भी कर सकते थे।
(4) लड्कोर जाने के लिए लेखक ने घोड़े किए थे। उनका घोड़ा रास्ते में सुस्त पड़ गया औा वो अपने साथियों से बिछड़ गए। साथ ही रास्ता भी भूल गए।
(5) समय से न पहुँच पाने के कारण उसे सुमति के गुस्से का समना करना पड़ा।
(6) तिब्बत में चिलचिलाती धूप में चलना पड़ा। साथ ही पीठ पर ठंड भी लग रही थी। इसके चलते अपना सामान पीठ पर लादकर यात्रा करनी पड़ी।
‘मैं अब पुस्तकों के भीतर था। ‘नीचे दिए गए विकल्पों में से कौन-सा इस वाक्य का अर्थ बतलाता है-
(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
(ख) लेखक पुस्तकों की शैल्फ़ के भीतर चला गया।
(ग) लेखक के चारों ओर पुस्तकें ही थीं।
(घ) पुस्तक में लेखक का परिचय और चित्र छपा था।
इन विकल्पों में ‘क’सही है। यह इस वाक्य का सही अर्थ बतलाता है। लेखक पुस्तक के भीतर था इसका अर्थ है कि वह पुस्तक को पढ़ने में राम गया अथवा वह बड़ी ही रूचि से पुस्तक को पढ़ने लगा|
प्रस्तुत यात्रा-वृत्तांत के आधार पर बताइए कि उस समय का तिब्बती समाज कैसा था?
लेखक ने तिब्बत का जो यात्रा-वृत्तांत लिखा उसके आधार पर उस समय के तिब्बती समाज के बारे में ये बातें पता चलीं-
(1) उस समय का तिब्बती समाज बहुत खुले विचारों वाला था। जिसमें जात—पात, छुआ—छूत, ऊँच-नीच जैसी बातें नहीं थीं।
(2) महिलाएँ पर्दा नहीं करती थीं। वे अपरिचितों को भी घर के अंदर बुलाकर चाय बनाकर दे दिया करती थीं।
(3) जान-पहचान के बिना लोग रात बिताने के लिए आश्रय नहीं देते थे क्योंकि उस समय तिब्बत में असुरक्षा की भावना बैठी हुई थी|
(4) समाज में मदिरा-पान का रिवाज था। रात में लोग मदिरा पान करते और होश में नहीं रहते थे।
(5) लोग धार्मिक प्रवृत्ति के एवं अंधविश्वासी थे। जो गंडे के नाम पर साधारण कपड़े के टुकड़ों पर भी विश्वास कर लेते थे।
सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं?
लेखक यात्रा के लिए सुमति के साथ गया था। सुमति के परिचित लोग लगभग हर गाँव में थे| इससे सुमति के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताएँ प्रकट होती हैं, जैसे-
(1) सुमति मिलनसार एवं हँसमुख व्यक्ति है जो लोगों से समय-समय पर मिलते रहते हैं।
(2) सुमति उन लोगों के बीच धर्मगुरु के समान हैं, जो उन्हें बोधगया से लाए कपड़े से बने गंडे दिया करते हैं।
(3) सुमति समय के पाबंद हैं। लेखक जब रास्ता भूल जाते हैं और उन्हें सुमति तक पहुंचने में समय लग जाता है। इस बात से सुमति काफी नाराज होते हैं।
(4) सुमति स्वार्थी भी लगे। बोधगया से लाए कपड़े से बने गंडे समाप्त हो जाने पर वे यजमानों को साधारण कपड़े का बना गंडा देकर धन प्राप्त करते थे।
(5) सुमति बौद्ध धर्म में आस्था तथा तिब्बत का अच्छा भौगोलिक ज्ञान रखते थे और इसी करना लेखक ने उनके साथ तिब्बत की यात्रा की|
(6) वे आतिथ्य सत्कार में कुशल हैं। उन्होंने लेखक का इंतजार करते हुए चाय को तीन बार गर्म किया।
यात्रा-वृत्तांत के आधार पर तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का शब्द-चित्र प्रस्तुत करें। वहाँ की स्थिति आपके राज्य/शहर से किस प्रकार भिन्न है?
तिब्बत भारत के उत्तर में स्थित है जो नेपाल का पड़ोसी देश है। इसकी सीमा भारत और चीन से लगी है। यह समुद्रतल से 17-18 हजार फीट ऊँचाई पर है। इस पहाड़ी प्रदेश के रास्ते बहुत ही ऊँचे-नीचे, उबड़-खाबड़, सुनसान एवं वीरान हैं। यहाँ पहाड़ों के मोड़ बहुत ही सुनसान और खतरनाक हैं। यहाँ दूर-दूर तक आबादी नहीं होती है। तिब्बत की जमीन छोटे—बड़े जागीरदारों में बंटी है। यहां एक ओर हिमालय की ऊँची चोटियाँ हैं तो दूसरी ओर नंगे पहाड़ हैं जहां ना बर्फ है और नाही पेड—पौधे। यहाँ की जलवायु भी अजीब है| धूप वाले भाग में जहाँ तेज गर्मी लगती है, वहीं छाया वाले भाग में खूब ठंडक होती है। थोड्ला यहाँ का दुर्गम गांव है, तिड्री विशाल मैदानी भाग है, जिसके चारों ओर पहाड़ हैं तथा इसके बीच में एक पहाड़ी है, जिस पर देवालय स्थित है।
आपने भी किसी स्थान की यात्रा अवश्य की होगी? यात्रा के दौरान हुए अनुभवों को लिखकर प्रस्तुत करें।
पिछले दिनों घरवालों के साथ हिमाचल प्रदेश की यात्रा करने का मौका मिला। हमने दिल्ली से कालकाजी स्टेशन तक की ट्रेन पकड़ी। इसके बाद टूर और ट्रैवल वालों की कार से आगे का सफर तय किया। हम सबसे पहले शिमला गए। 7 घंटों का ये सफर पहाड़ी रास्तों को देखते और खूबसूरत वादियों में खोए हुए कट गया। रात 3 बजे शिमला के होटल में पहुंचे। सुबह उठते ही घूमने का प्लान बना और फिर से यात्रा शुरू हुई। शिमला के बाद सोलन में एक रिश्तेदार के घर गए। वहां उन्होंने पहाड़ी जन—जीवन के बारे में काफी जानकारी दी। उनकी बातों से लगा कि पहाड़ों का जीवन बेहद कठिन होता है। सोलन के बाद हमने कार से मनाली तक का सफर तय किया। बर्फ के पहाड़ों के बीच मनाली एक बेहद खूबसूरत शहर है। मनाली में सोलंगनाल जाना और एडवेंचर का हिस्सा बनना मजेदार था।
यात्रा-वृत्तांत गद्य साहित्य की एक विधा है। आपकी इस पाठ्यपुस्तक में कौन-कौन सी विधाएँ हैं? प्रस्तुत विधा उनसे किन मायनों में अलग है?
राहुल सांकृत्यायन द्वारा रचित ल्हासा की ओर एक यात्रा—वृत्तांत है। इस विधा में लेखक ने तिब्बत की अपनी यात्रा के बारे में बताया है। इस लेख में पता चला कि लेखक को किस तरह मुश्किलों का सामना करते हुए तिब्बत घूमने का मौका मिला और अपनी इस यात्रा के दौरान लेखक को तिब्बत के लोगों के जनजीवन, वहाँ की भौगोलिक परिस्थितियों के बारे में जानने का मौका मिला|
हमारी पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’भाग-1 में निम्नलिखित पाठ और विधाएँ हैं-
दो बैलों की कथा— कहानी
ल्हासा की ओर— यात्रा-वृत्तांत
उपभोक्तावाद की संस्कृति— निबंध
साँवले सपनों की याद— संस्मरण
नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया—रिपोर्ताज
प्रेमचंद के फ़टे जूते— निबंध
मेरे बचपन के दिन— संस्मरण
एक तोता और एक मैना— निबंध
प्रस्तुत विधा (यात्रा-वृत्तांत) अन्य विधाओं कहानी, संस्मरण, निबंध आदि से अलग है। इसमें लेखक ने अपनी यात्रा के अनुभव बांटे। लेखक ने समस्त वस्तुओं, व्यक्तियों तथा घटनाओं का वर्णन किया है। इससे तिब्बत का भौगोलिक जानकारी के साथ-साथ वहाँ के लोगों के जन-जीवन की भी जानकारी मिलती है| इस यात्रा वृत्तान्त में जिस प्रकार से लेखक ने तिब्बत में रहने वाले लोगों के जन-जीवन, वहाँ की भौगोलिक परिस्थितियों, लोगों के द्वारा वहाँ सामना की जा रही जीवन की कठिन परिस्थितियों आदि का इतनी कुशलता से वर्णन किया है कि इसे पढ़ने के पश्चात तिब्बत का चित्र जैसे हमारी आंखों के सामने जीवंत हो उठता है| इसीलिये यह यात्रा वृत्तान्त सिर्फ एक पाठ्य विद्या न होकर उससे कहीं अधिक है और इसीलिये यह अन्य विधाओं से अलग है|
किसी बात को अनेक प्रकार से कहा जा सकता है, जैसे-
सुबह होने से पहले हम गाँव में थे।
पौ फटने वाली थी कि हम गाँव में थे।
तारों की छाँव रहते-रहते हम गाँव पहुँच गए।
नीचे दिए गए वाक्य को अलग-अलग तरीके से लिखिए-
‘जान नहीं पड़ता था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे।’
उक्त वाक्य को निम्न तरीकों से लिखा जा सकता है—
1) पता ही नहीं चल पा रहा था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे।
(2) घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे, ये पता नहीं चल रहा था।
(3) घोड़े की गति इतनी धीमी थी कि पता नहीं चल रहा था कि आगे जा रहा है या पीछे।
ऐसे शब्द जो किसी ‘अंचल’यानी क्षेत्र विशेष में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें आंचलिक शब्द कहा जाता है। प्रस्तुत पाठ में से आंचलिक शब्द ढूँढ़कर लिखिए।
पाठ में आए हुए आंचलिक शब्द—, चोडी, खोटी, राहदारी, छड्, थोड्ला, डांड़ा, कुची-कुची, लड्कोर, कंडे, भीटा, थुक्पा, गाँव-गिराँव, भरिया, गंडा, तिड्री, कन्जुर।
ये सभी शब्द आंचलिक शब्द हैं। आंचलिक शब्द ऐसे शब्द होते हैं जिन्हें किसी विशेष क्षेत्र, स्थान आदि के लोगों के द्वारा बोलचाल के दौरान उपयोग किया जाता है| ये जो शब्द इस पाठ में आये हैं उन्हें तिब्बत क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय लोगों द्वारा उपयोग किया जाता है|
पाठ में कागज़, अक्षर, मैदान के आगे क्रमशः मोटे, अच्छे और विशाल शब्दों का प्रयोग हुआ है। इन शब्दों से उनकी विशेषता उभर कर आती है। पाठ में से कुछ ऐसे ही और शब्द छाँटिए जो किसी की विशेषता बता रहे हों।
लेखक ने पाठ में इस तरह के बहुत से अन्य शब्दों का प्रयोग किया है। जो निम्न प्रकार हैं—
मुख्य रास्ता, टोरीदार बर्तन, दूधवाली चाय, भद्र यात्री, गरीब झोपड़े, खासकर शाम, निर्जन स्थान, गरमारम थुक्पा, तेज धूप, मोटे कपड़े, अच्छा मंदिर, बहुत प्रेम, ललाट धूप, मोटे कागज, विशाल मैदान आदि।