‘इस विजन में-----अधिक है’ - पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों?
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने अपना आक्रोश प्रकट किया है| कवि पंक्तियों के माध्यम से शहर के लोगों के सिर्फ मतलब के लिए कायम किये गए रिश्तों पर प्रहार करना चाहता है| कवि का उनका मानना है कि नगरीय संस्कृति लोगो को लालची बना देती है परन्तु गाँव के लोग इतने स्वार्थी नहीं होते है| गाँव के लोगों के बीच एक दूसरे के प्रति सच्चा प्रेम है, सच्ची सहानुभूति है। गाँव से विपरीत शहर के लोगों में स्वार्थी प्रवृति अधिक देखने को मिलती है| इन्हीं सब कारणों के मद्देनजर कवि ने नगरीय संस्कृति के प्रति अपना आक्रोश व्यक्त किया है-
1- कवि के अनुसार नगरीय लोग प्रेम और सौंदर्य से बहुत दूर हो चुके हैं।
2- उनका मानना है कि नगरीय लोगो में मानवता नहीं बची है।
3- शहरों में लोग प्रकृति से दूर होते जा रहे है एवं वह अपनी संस्कृति से भी दूर हो रहे है।
सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि क्या कहना चाहता होगा?
यहाँ सरसों के ‘सयानी’ होने का तात्पर्य उसकी फसल के पक जाने से है। कवि के अनुसार खेत की बाकी फसलो की तुलना में सरसों लंबी और बड़ी हो गई है जबकि अन्य फसलें लंबाई में छोटी हैं| उसमें पीले फूल भी नजर आ रहे हैं। सरसों अपने हाथ पीले कर अब मंडप में जाने को तैयार है इसीलिये कवि ने सरसों को सयानी कहा है|
अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए।
कवि ने अलसी को एक सुंदर एवं हठीली नायिका के रुप में चित्रित किया है। वह चने के पास हठपूर्वक उग आयी हैं। उसका चित्त अत्यंत चंचल है। वह अपने प्रियतम से मिलने को आतुर है तथा वह अपनी गतिविधियों से अभिव्यक्त कर रही है कि जो भी उसे छुएगा वह अपना ह्रदय उसे दे देगी|
अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है?
कवि ने ‘अलसी’ के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग उसके चरित्र के आधार पर किया है| अलसी के लिए हठीली विशेषण का प्रयोग इसलिए किया गया है क्योंकि-
(क) वह चने के पौधों के बीच उग आई जबकि किसान ने उसे चने से अलग कतार में बोया था| लेकिन अलसी बीच में उग कर मानों ज़बरदस्ती सबको अपने अस्तित्व का परिचय देना चाहती है।
(ख) हवा के झोंके भी उसे झुका नहीं पा रहे है| उनके अनेक प्रयास के बाद भी वह उठकर खड़ी हो जाती है और फिर चने के बीच नजर आने लगती है।
(ग) उसके सर पर उगे हुए नीले फूल उसकी इस हठीली प्रवृति को परिभाषित करते प्रतीत होते हैं।
‘चांदी का बड़ा सा गोल खंभा’ में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है?
पोखर के जल में जब सूर्य की तेज किरणें पड़ती हैं और फिर उस जल में प्रातिबिन्ब बनता है| पोखर कके जल में बनने वाला प्रतिबिंब चाँदी के खंबे की तरह होता है इसीलिये कवि ने उस प्रतिबिंब की तुलना चाँदी के बड़े गोल खंबे से की है|
कविता के आधार पर ‘हरे चने’ का सौंदर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।
कवि ने यहाँ चने के पौधों का मानवीकरण करते हुए कहना चाहा है की चने का पौधा लंबाई में बहुत छोटा-सा है। उसके सिर पर गुलाबी रंग के फूल लगे हुए हैं| इसके कारण चने का पौधा ऐसे प्रतीत हो रहा है मानो चने का पौधा अपने सिर [आर गुलाबी रंग की पगड़ी बांधकर दूल्हे के रूप में तैयार खड़ा है|
कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया है?
कवि ने कविता में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया है, जैसे-
(क) यह हरा ठिगना चना, बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का, सज कर खड़ा है।
अर्थात यहाँ छोटे कद का हरे चने का पौधा जो गुलाबी रंग की पगड़ी बाँधे खड़ा है| यहाँ चने के पौधे की तुलना मनुष्य से की गयी है|
(ख) पास ही मिल कर उगी है, बीच में अलसी हठीली।
देह की पतली, कमर की है लचीली,
नील फूले फूल को सिर पर चढ़ाकर
कह रही है, जो छुए यह दूँ हृदय का दान उसको।
अर्थात यहाँ अलसी के पौधे को हठीली तथा सुन्दर स्त्री के रुप में प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार यहाँ अलसी के पौधे का मानवीकरण किया गया है।
(ग) हैं कई पत्थर किनारे, पी रहे चुपचाप पानी
अर्थात यहाँ पत्थर जैसी निर्जीव वस्तु का भी मानवीकरण बड़े कलात्मक रूप से किया गया है|
कविता में से उन पंक्तियों को ढूँढि़ए जिनमें निम्नलिखित भाव व्यंजित हो रहा है-
और चारों तरफ सूखी और उजाड़ जमीन है लेकिन वहां भी तोते का मधुर स्वर मन को स्पंदित कर रहा है।
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर–उधर रींवा के पेड़
काँटेदार कुरुप खड़े हैं
सुन पड़ता है
मीठा–मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;
‘और सरसों की न पूछो’- इस उक्ति में बात को कहने का एक खास अंदाज है। हम इस प्रकार की शैली का प्रयोग कब और क्यों करते हैं?
किसी बस्तु की बात करते हुए उसकी विशेषता बताने के लिए चुटिल एवं प्रभावपूर्ण तरीके से अपनी बात को कहने के यह एक तरीका है| जैसे- सर्दियों में चाय के महत्त्व के बारे में बात करते हुए हम कहते हैं कि “और चाय की न पूंछो”|
काले माथे और सफेद पंखों वाली चिडि़या आपकी दृष्टि में किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है?
यहाँ काले माथे और सफ़ेद पंखों वाली चिड़िया दोहरे व्यक्तित्व एवं किसी सफेदपोश व्यक्तित्व का प्रतीक है। ऐसे लोग जिनके भीतर दोनों प्रकार का व्यक्तित्व एक साथ होता है| वे लोग जो ऊपर से समाज के शुभचिंतक बने फिरते हैं तथा अंदर ही अंदर समाज का शोषण करते है| ऊपर से तो ऐसे व्यक्ति समाज सेवा, लोगों कि भलाई आदि की बात करते है लेकीन भीतर से असलियत ऐसी नहीं होती| पाठ में इस चिड़िया की तुलना इसी प्रकार के व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों से की गयी है|
बीते के बराबर, ठिगना, मुरैठा आदि सामान्य बोलचाल के शब्द हैं, लेकिन कविता में इन्हीं से सौंदर्य उभरा है और कविता सहज बन पड़ी है। कविता में आए ऐसे ही अन्य शब्दों की सूची बनाइए।
कविता में आये शब्द –
भेड़, ब्याह, फाग, पोखर, चट दबाकर, बाँझ, सुग्गा, चुप्पे-चुप्पे फाग, लचीली, हठीली, सयानी, लहरियाँ, टें-टें-टें, टिरटों-टिरटों आदि।
कविता को पढ़ते समय कुछ मुहावरे मानसपटल पर उभर आते हैं, उन्हें लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए।
कविता में मुहावरे निम्नलिखित हैं-
1- बीता भर - जरा सा, छोटा सा
बीते भर के बच्चे ने एक पहलवान को परास्त कर दिया।
2- सिर चढ़ाना- बढ़ावा देना
ज़रुरत से अधिक प्यार करने से राम का बेटा उसके सिर चढ़ गया है।
3- हृदय का दान देना- समर्पित होना
मीरा कान्हा को हृदय का दान दे चुकी थी।
4- हाथ पीले करना- विवाह करना
आज भी गाँवों में छोटी उम्र में ही बच्चियों के हाथ पीले कर दिये जाते है
5- गले में डालना- जल्दी से खाना
भोजन अच्छे से चबा कर करना चाहिए नाकि गाले में डालना चाहिये।
6- हृदय चीरना- दुख पहुंचाना
शाम के झूठ ने माँ का हृदय चीर दिया।