लेखक को ओस की बूँद कहाँ मिली?
लेखक को ओस की बूंद बेर के पेङ के पत्ते पर मिली।
ओस की बूँद क्रोध और घृणा से क्यों काँप उठी?
ओस की बूंद पेङ के प्रति क्रोध और घृणा से कांप उठी। क्रोध से इसिलिए क्योंकि पेङ की जङ ने बिना बूंद की इच्छा जाने उसे अपने में समाहित कर लिया था। बूंद के अनुसार पेङ की जङों और रोओं को उसे जबरन अपने अन्दर जज्ब नहीं करना चाहिए| इस क्रोध के बाद बूंद को पेङ के प्रति घृणा होनी ही चाहिए थी क्योंकि पेङ ने उसे तीन दिनों तक अपने अन्दर रखकर उसे अपने पत्तियों पर फेंक दिया|
हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को पानी ने अपना पूर्वज/पुरखा क्यों कहा है?
जब प्रथ्वी एवं अन्य ग्रहों की उत्पत्ति भी नहीं हुई थी तब भी हाईड्रोजन एवं ऑक्सीजन गैस का अस्तित्व था| जब पृथ्वी की उत्पत्ति हुई तब हाइड्रोजन और आक्सीजन के सम्मिलन से जल की बूंद का निर्माण हुआ था। इसी कारण से पानी ने हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन को अपना पूर्वज अथवा पुरखा कहा है|
“पानी की कहानी’’ के आधार पर पानी के जन्म और जीवन-यात्रा का वर्णन अपने शब्दो में कीजिए।
अरबों वर्ष पूर्व हमारे सौरमंडल में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैसीय पिंड के रूप में विद्यमान थे। सूर्य से भी बङे एक पिंड ने अपनी गुरूत्वाकर्षण शक्ति से सूर्य से पिंड अलग कर दिए जो सौरमंडल में गृह एवं अन्य खगोलीय पिंडों के रूप में हैं| इसी कड़ी में पृथ्वी का भी निर्माण हुआ| बाद में पृथ्वी ताप मुक्त होकर ठन्डी होने लगी। साथ ही हाइड्रोजन और ऑक्सीजन भी ठंडे होकर जल की बूंदों में परिवर्तित होने लगे। ये जलवाष्प की बूंदें उंचे पर्वतों पर एकत्रित होकर वहां पर वर्फ के रूप में जमा होने लगे। यही वर्फ सूर्य के तापमान में पिघलकर नीचे मैदानों का रुख कर नदी-तालाबों का स्वरूप लेने लगे। फिर यही नदी समुद्र में जा मिली| वहां पर ये फिर से वाष्पीकृत होकर बादलों में परिवर्तित हो गयी| बादलों का रूप लेकर पानी की बूंदें बनकर समतल मैदानों में कभी पृथ्वी को आप्लावित करते कभी पेङों के जङों के अन्दर अवशोषित होने लगे। जङ अपने में समाहित कर इन्हें अपने तनों की ओर भेजने लगे और अंततः ये बूंदें पत्तियों से बाहर छलक कर आयीं|
कहानी के अंत और आरंभ के हिस्से को स्वयं पढ़कर देखिए और बताइए कि ओस की बूँद लेखक को आपबीती सुनाते हुए किसकी प्रतीक्षा कर रही थी।
लेखक रामचंद्र तिवारी को ओस की बूंद अपनी कहानी सुनाते हुए सूर्य की किरणों की प्रतीक्षा कर रही थी। वह अपने अस्तित्व में आने से लेकर अपने जीवन के यात्रा-वृतांत को विस्तार पूर्वक लेखक को कह सुनाती है। ऐसा करते समय ओस की बूँद सूर्य की प्रतीक्षा कर रही है ताकि वह ताप पाते ही भाप बनकर उड़ सके|
जलचक्र के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए और पानी की कहानी से तुलना करके देखिए कि लेखक ने पानी की कहानी में कौन-कौन सी बातें विस्तार से बताई हैं।
जलचक्र जल के सम्पूर्ण जीवन चक्र के बारे में हमें बताता है। यह चक्र जलवाष्पों (हाड्रोजन+आऑक्सीजन) के ठंडे होकर वर्षा की बूंदों में परिवर्तित होकर पृथ्वी पर बरसने से शुरू होकर समुद्रों में जमा होकर फिर से सूर्य के तापमान में पुनः जलवाष्प के रुप में वापस पूरा होता है। यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। लेखक ने ‘पानी की कहानी’ में जल के बूंद की जीवनयात्रा को उसकी अपनी जुबानी हमें विस्तार से बताया है कि किस प्रकार से पानी गैसों से निकल कर अस्तित्व में आया और किस प्रकार से यह ग्लैशियरों के रूप में पहाड़ों की चोटियों पर ठोस अवस्था में पाया गया। इसके द्रवीभूत होने का कारण तापमान बना जिसने ठोस वर्फ को जल में परिवर्तित कर दिया। यह जल समतल भूमि में आकर नदियों, तालाबों इत्यादि के रुप में प्रवाहित होता है। ये नदियां रास्ते में आने वाली चट्टानों को तोङ डालती है। पेङों को उखाड़ फेंकती है। ये नदियां अंततः समुद्र में जा मिलती हैं। वहां यह समुद्री जीवों के संपर्क में आती हैं। फिर यही पानी ज्वालामुखी से गैस का रूप लेकर बाहर आता है।
‘पानी की कहानी’ पाठ में ओस की बूँद अपनी कहानी स्वयं सुना रही है और लेखक केवल श्रोता है। इस आत्मकथात्मक शैली में आप भी किसी वस्तु का चुनाव करके कहानी लिखें।
आत्मकथात्मक शैली में कैरम बोर्ड की कहानी- मैं बचपन मे कैरमबोर्ड खेलना पसंद करता था। अधिकांश कैरमबोर्ड की तरह इसके चारों खाने तिकोने ना होकर गोल होने से इसपर खेलना थोङा कठिन जरुर था पर इस कारण से खेलने का मजा और अधिक हो जाता था। एक शाम हमलोग कैरम खेलकर उसे छत पर ही छोङकर घर में सो गये। अगली सुबह मैंने उसे परिवर्तित रूप में पाया। पूरा बोर्ड फूलकर कुप्पा हो चुका था। मेरे छूते ही वह बिफर पङा और कहने लगा- मैंने तुम्हारा साथ दिया और तुमने मेरा यह हाल किया। वह कहता गया- ना जाने कहां से प्लाई लाकर मेरे ऊपर डाला गया था जिससे कि तुम्हें कोई परेशानी ना हो। मेरे निर्माता ने तुम्हारे खेलने हेतु मेरी स्वाभाविक कठोरता जो मुझमें तुम्हें बोर्ड के चारों दीवारों और घेरों पर देखने को मिलती थी वही मेरी वास्तविक पहचान थी। सिर्फ तुम्हारे लिए मैंने अपने ऊपर प्लाई के कोमल आवरण को चढने दिया और हाय रे किस्मत तुमने उसपर वर्षा की बूंदें पङ जाने दिया और सारा खेल बिगाड़ दिया? मैं बङी देरतक बोर्ड के खराब हो जाने के बारे में सोचता रहा।
समुद्र के तट पर बसे नगरों में अधिक ठंड और अधिक गरमी क्यों नहीं पड़ती?
समुद्र तट पर बसे नगरों में समुद्र के करीब होने से ही अधिक ठंड या अधिक गरमी नहीं पङती है। वास्तव में समुद्र के जल के कारण ना तो ठंड के मौसम में किनारे बसे नगर का तापमान बहुत कम हो पाता है और ना ही गरमी के मौसम में अधिक गर्म। ऐसा होने से इन शहरों में सालोंभर तापमान में बहुत अधिक उतार चढाव नहीं होता है। कहने का अर्थ है यहां पर सालोंभर मौसम लगभग एक सा बना रहता है यानि पूरे साल मौसम समशीतोष्ण बना रहता है।
पेड़ के भीतर फव्वारा नहीं होता, तब पेड़ की जड़ों से पत्ते तक पानी कैसे पहँुचता है? इस क्रिया को वनस्पति-शास्त्र में क्या कहते हैं? क्या इस क्रिया को जानने के लिए कोई आसान प्रयोग है? जानकारी प्राप्त कीजिए।
यह तो सत्य है कि पेङ के भीतर फव्वारा नहीं होता और फिर भी जङ से अवशोषित होने के बाद जल पत्तियों पर पहुंच जाता है। यह कोई जादू का कार्य नहीं है। प्रकृति ने पेङ की संरचना ही इस प्रकार से की है कि यह क्रिया यहां पर हमें देखने को मिलती है। ऐसा पेङों के तने में उपस्थित जायलेम कोशिकाओं के द्वारा संभव हो पाता है। ये जायलेम कोशिकाएं जङों द्वारा अवशोषित जल को अपनी ओर उपर की तरफ खींचता है। फिर यह जल और उपर यानि पत्तियों की ओर फेंका जाता है। इस क्रिया को वनस्पतिशास्त्र में ‘कोशिका क्रिया’ कहते हैं।
प्रयोग- हम रंगीन पानी भरे एक बीकर में श्वेत पुष्प वाले पौधे को डालते हैं। थोड़ी देर बाद हम पाते हैं कि श्वेत पुष्प पर रंगीन धारियां पङ गयी हैं। वास्तव में पौधे के जङों से रंगीन जल अवशोषित होकर पत्तियों के उपर तक पहुंच गया। पौधे के तना में उपस्थित जायलेम कोशिका की कोशिका क्रिया द्वारा ही ऐसा संभव हो पाया।
‘पानी की कहानी’ में लेखक ने कल्पना और वैज्ञानिक तथ्य का आधार लेकर ओस की बूँद की यात्रा का वर्णन किया है। ओस की बूँद अनेक अवस्थाओं में सूर्यमंडल, पृथ्वी, वायु, समुद्र, ज्वालामुखी, बादल, नदी और जल से होते हुए पेड़ के पत्ते तक की यात्रा करती हैं। इस कहानी की भाँति आप भी लोहे अथवा प्लास्टिक की कहानी लिखने का प्रयास कीजिए।
आज मैं अपने घर के मेन गेट में लगे लोहे के दरवाजे की कहानी उसी की जुबानी सुना रहा हूं। तो सुनिये। मैं पहले लौह अयस्क के रुप में था। इस प्रकार मैं कच्ची अवस्था मे था। वहां से मैं कारखाने में लाया गया । कारखाने में मुझे पिघला कर सांचे में ढाला गया। इस प्रकार मैंने एक आकार ग्रहण किया। इस आकार को और आगे पीट-पीटकर चौरस कर दिया गया। फिर मुझे आपकी आज्ञानुसार एक निश्चित डिजाइन में ढालकर दरवाजे की शक्ल दे दी गयी| फिर नट-वोल्ट से कसकर कस दिया गया| इसे पेंट इत्यादि कर खूबसूरत बनाकर आपके घर की सुरक्षा के साथ-साथ शोभा सुंदरता बढाने हेतु आपके घर की चारदीवारी में उपयुक्त स्थान पर फिट कर दिया गया। आज मैं आपके यहां एक निर्जीव पर भरोसेमंद द्वारपाल की भूमिका निभा रहा हूं।
अन्य पदार्थों के समान जल की भी तीन अवस्थाएँ होती हैं। इन्य पदार्थों से जल की इन अवस्थाओं में एक विशेष अंतर यह होता है जल की तरल अवस्था की तुलना में ठोस वर्फ हल्की होती है। इसका कारण ज्ञात कीजिए।
जल से वर्फ हल्की होती है। यह निर्विवाद सत्य है। वैज्ञानिक कारण से ऐसा होता है। प्रस्तुत तथ्य के अन्तर्गत वैज्ञानिक कारण यह है कि वर्फ ठोस अवस्था में होने के कारण इसका घनत्व जल के घनत्व की अपेक्षा कम होता है। इसे उदाहरण के रूप में इस प्रकार समझा जा सकता है कि एक लीटर के आयतन में जितना जल समायेगा उसी आयतन में जल की अधिक मात्रा आयेगी। समान आयतन या मिलाजुलाकर कर कहें उस क्षेत्र में वर्फ की कम मात्रा आ पाने के कारण ही यह पानी से हल्की होती है।
पाठ के साथ केवल पढ़ने के लिए दी गई पठन-सामग्री ‘हम पृथ्वी की संतान!’ का सहयोग लेकर पर्यावरण संकट पर एक लेख लिखें।
पठन-सामग्री ‘हम पृथ्वी की संतान!’ के सहयोग से पर्यावरण संकट पर लेख:
आज पर्यावरण संकट अपने गंभीर रूप में हमारे सामने है। यह संकट दिनोंदिन विकराल रुप लेता जा रहा है। यह स्थिति कोई एक-दो दिन में नहीं बनी है। वास्तव में हमारी प्रकृति के साथ एक निश्चित समय तक बरती गई घनघोर लापरवाही पर्यावरण की भयावह स्थिति के लिए जिम्मेदार है। पृथ्वी का अस्तित्व अरबों वर्ष से है। मानव इसपर अन्य कई जीवों के बाद अस्तित्व में आये। हमने अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पृथ्वी के संसाधनों का भरपूर दोहन किया। हमने नदियों के उपर बांध बनाये। हमने पनबिजली बनाने हेतु ऐसा किया। हमारे शहरों में कल-कारखानों एवं गाङियों से निकलने वाले काले धुएं से वायु प्रदूषण काफी बढ गया है। इस काले धुएं के कारण हमारे आसपास का वातावरण जहर से भर गया है। वातावरण के घटक के इस प्रकार की स्थिति सूर्य से निकलने वाली हानिकारक किरणें को हमारे वायुमंडल में प्रवेश करने से पूर्व ही वापस परावर्तित करने में अक्षम हो रही हैं। विश्वव्यापी स्तर पर कार्बन के अत्यधिक उत्सर्जन से तापमान में वृद्धि हो रही है। तापमान में यह वृद्धि प्रकृति के सारे नियमों को ताक पर रखने के कारण हो रही है। नियम की यह अनदेखी हमारे द्वारा प्रकृति के संसाधनों के दुरुपयोग करने पर हो रही है। आज हम इस दुरुपयोग के परिणामस्वरूप विश्व में ग्लोबल वार्मिंग या ग्रीन हाउस इफेक्ट को देख रहे हैं। इस इफेक्ट का साइड इफेक्ट हमें पर्वतों पर ग्लैशियर के पिघलने के रूप में दिखाई पङ रहा है। इसके अलावा हमारे द्वारा शहरों में फैलाये जा रहे कचरों से हमारी नदियां प्रदूषित हो रही हैं। बढते तापमान का असर नदियों की अविरलता पर भी पङ रहा है। नदियों के उद्गम स्थल वाले गलैशियर के पिघलने से समुद्र तल की उंचाई बढ रही है जिससे छोटे-छोटे द्वीपों और शहरों के जलमग्न होने का खतरा दिनोंदिन बढता ही जा रहा है। इन सब परिणामों से हमारे द्वारा पुत्र के रुप में पृथ्वी मां के प्रति अपने कर्तव्यों को ना निभा पाने के बारे में हमें संकेत मिल रहा है। अच्छा होगा हम इन संकतों को समझकर पर्यावरण पर आये संकट को दूर करने की दिशा में प्रत्येक वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाने के अतिरिक्त भी अन्य सकारात्मक उपाय करें।
किसी भी क्रिया को संपन्न अथवा पूरा करने में जो भी संज्ञा आदि शब्द संलग्न होते हैं, वे अपनी अलग-अलग भूमिकाओं के अनुसार अलग-अलग कारकों के रूप में वाक्य में दिखाई पड़ते हैं; जैसे- “वह हाथों से शिकार को जकड़ लेती थी|’’ जकड़ना क्रिया तभी संपन्न हो पाएगी जब कोई व्यक्ति (वह) जकड़नेवाला हो, कोई वस्तु (शिकार) हो, जिसे जकड़ा जाए। इन भूमिकाओं की प्रकृति अलग-अलग है। व्याकरण में ये भूमिकाएँ कारकों के अलग-अलग भेदों, जैसे- कर्ता, कर्म, करण आदि से स्पष्ट होती हैं।
अपनी पाठ्यपुस्तक से इस प्रकार के पाँच और उदाहरण खोजकर लिखिए और उन्हें भली-भाँति परिभाषित कीजिए।
पाठ्यपुस्तक से खोजे गए पाँच उदाहरण:
(क) यदि संसार में बदलू को किसी बात से चिढ़ थी तो वह थी काँच की चूडि़यों से।
संसार में - अधिकरण कारक
बदलू को - कर्मकारक
किसी बात से- अपादान कारक
काँच की चूडि़यों- संबंध कारक
(ख) पत्र-संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र-लेखन का विषय भी शामिल किया गया।
विकसित करने के लिए- संप्रदान कारक
पाठ्यक्रमों में- अधिकरण कारक
पत्र-लेखन का- संबंध कारक
(ग) कुछ नौजवानों ने ड्राइवर को पकड़कर मारने-पीटने का मन बनाया।
नौजवानों ने- कर्ता कारक
ड्राइवर को- कर्म कारक
(घ) भारतीय सिनेमा के जनक फाल्के को ‘सवाक्’ सिनेमा के जनक अर्देशिर की उपलब्धि को अपनाना ही था, क्योंकि वहाँ से सिनेमा का एक नया युग शुरू हो गया था।
भारतीय सिनेमा के अर्देशिर की,
सवाक् सिनेमा के- संबंध कारक
फाल्के को,
उपलब्धि को - कर्म कारक
वहाँ से - अपादान कारक
(घ) मैं आगे बढ़ा ही था कि बेरे की झाड़ी पर से मोती-सी बूँद मेरे हाथ पर आ गिरी।
मैं - कर्ता कारक
बेर की - संबंध कारक
झाड़ी पर से - अपादान कारक
मेरे हाथ पर - अधिकरण कारक