‘तलवार का महत्व होता है म्यान का नहीं’- उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
‘तलवार का महत्व होता है, म्यान का नहीं’- इस उदाहरण के माध्यम से कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमें असली चीज की कद्र करनी चाहिए। अगर हम तलवार खरीद रहे हैं तो हम उसकी कीमत मयान(तलवार रखने का कोष) देखकर नहीं लगाते। युद्ध के लिए हम तलवार की मजबूती और उसकी धार देखते है न कि उसकी मयान। ठीक इसी तरह साधु की जाति न देखकर उनका ज्ञान देखना चाहिए।
पाठ की तीसरी साखी- जिसकी एक पंक्ति है ‘मनुवां तो चहुं दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’, के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?
‘मनुवां तो चहुं दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’ के द्वारा कबीर कहना चाहते है कि ईश्वर की भक्ति करते वक्त अगर आपका मन दस जगह भटक रहा है तो वह सच्ची भक्ति नहीं है। कुछ लोग हाथ में माला लेकर राम का नाम जप रहे होते हैं, लेकिन अगर उनका मन एकाग्र नहीं है तो इस प्रकार ईश्वर का स्मरण करने का कोई महत्त्व नहीं है|
कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं? पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
कबीर इस दोहे से यह संदेश देना चाहते है कि कभी भी किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए यहाँ तक कि अपने से छोटे अथवा कमजोर लोगों की| भले ही कोई कितना छोटा क्यों न हो उसे तुच्छ समझकर उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए। कबीर ने घास का उदाहरण देते हुए समझाया है कि घास आपके पैरों के तले होती है। हमे कभी उसे छोटा समझकर दबाना नहीं चाहिए, क्योकि अगर घास का एक छोटा तिनका भी अगर आंख में चला जाए दो बहुत दर्द होता है।
मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेनेवाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है?
उक्त भावार्थ निम्न दोहे से व्यक्त होता हैः
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।
आपके विचार में आपा और आत्मविश्वास में तथा आपा और उत्साह में क्या कोई अंतर हो सकता है? स्पष्ट करें।
आपा और आत्मविश्वास:
‘आपा’ का अर्थ है- अहंकार जबकि ‘आत्मविश्वास’ का अर्थ है- किसी काम को करने के लेकर खुद पर विश्वास।
आपा और उत्साह:
‘आपा’ का अर्थ है- घमंड और ‘उत्साह’ का अर्थ है- किसी काम को करने का मन में जोश।
क्या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।
ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय।
इन दोनों पंक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने या खो देने की बात की गई है। ‘आपा’ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है? क्या ‘आपा’ स्वार्थ के निकट का अर्थ देता है या घमंड का?
दोनों पंक्तियों में ‘आपा’ का इस्तेमाल ‘घमंड’ के लिए प्रयुक्त हुआ है। कवि उस घमंड की बात कर रहा है जो इंसान में दौलत, ताकत, सत्ता, प्रतिष्ठा आदि के कारण पैदा हो जाती है। इस घमंड के आ जाने से वह खुद के आगे दूसरों को कम समझने लगता है। उसे अपने से ज्यादा बलशाली कोई नहीं दिखाई देता। पहली पंक्ति में कवि व्यक्ति को अपना अहंकार त्यागकर दयावान बनने के लिए कह रहा है। दूसरी पंक्ति में कवि ने मन का अहंकार त्यागकर मीठी बोली बोलने का आग्रह किया है।
सभी मनुष्य एक ही प्रकार से देखते-सुनते हैं पर एकसमान विचार नहीं रखते। सभी अपनी-अपनी मनोवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं। पाठ में आई कबीर की किस साखी से उपर्युक्त पंक्तियों के भाव मिलते हैं, एकसमान होने के लिए आवश्यक क्या है? लिखिए।
कबीर की निम्नलिखित साखी यह उपदेश देती है कि समाज में सभी को एक समान मानना चाहिए।
कबिरा घास न नींदिए, जो पाऊ तलि होइ।
उडि़ पड़ै जब आंखि मैं, खरी दुहेली होइ।।
एक समान होने के लिए जरूरी है कि समाज में किसी भी तरह का भेदभाव खत्म होना चाहिए। फिर चाहे वो जाति के आधार पर हो या आर्थिक। कभी किसी को कमजोर समझकर अपने बल से डराना नहीं चाहिए। समाज में सभी को एक ही नजर से देखना चाहिए और सभी के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार होना चाहिए।
कबीर के दोहों को ‘साखी’ क्यों कहा जाता है? ज्ञात कीजिए।
कबीर के दोहों को ‘साखी’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि ‘साखी’ शब्द का अर्थ है साक्षी यानि आँखों देखा हुआ गवाह। कबीर ने दोहों के जरिए जो कुछ अपनी आंखों से देखा उन्हें शब्दों के माध्यम से लोगों तक समाज में फैली कुरीतियों, जातीय भावनाओं और असमानता को खत्म करने का संदेश पहुंचाया है। कबीर का हर दोहा कुछ न कुछ सीख देता है।
बोलचाल की क्षेत्रीय विशेषताओं के कारण शब्दों के उच्चारण में परिवर्तन होता है_ जैसे- ‘वाणी’ शब्द ‘बानी’ बन जाता है| मन से मनवा, मनुवा आदि हो जाता है। उच्चारण के परिवर्तन से वर्तनी भी बदल जाती हैं नीचे कुछ शब्द दिए जा रहे हैं, उनका वह रूप लिखिए जिससे आपका परिचय हो। ग्यान, जीभि, पाऊँ, तलि, आँखि, बैरी।