‘‘मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ़ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा।’’
लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा क्यों जग गई?
पुरानी और खटारा बस की खूब तारीफ़ कर रहा था| बस की हालत खराब होने के वावजूद भी सवारियों को उनकी मंजिल तक पहुँचाने के प्रयास कर रहा था|
‘‘लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शामवाली बस से सफ़र नहीं करते।’’
लोगों ने यह सलाह क्यों दी?
लोगों ने लेखक को सलाह दी कि उन्हें शामवाली बस से सफर नहीं करना चाहिए। इसकी वजह ये थी कि बस एकदम जर्जर हाल में थी। उसके शीशे टूटे हुए थे। कब चल दे और कब बंद हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। बस इतनी पुरानी थी कि उसकी अब ठीक होने की संभावना भी कम ही थी। अगर रात में सफर करते हुए बस बंद पड़ जाती तो रात वहीं गुजारनी पड़ती।
‘‘ऐसा, जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे है।’’
लेखक को ऐसा क्यों लगा?
बस का इंजन चालू हुआ तो लेखक को लगा कि सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं। लेखक को ऐसा इसलिए लगा क्योंकि जैसे ही इंजन स्टार्ट हुआ तो इंजन के अलावा सीट भी हिलने लगा और पूरी बस झनझनाने लगी| बस के टूटे शीशे भी हिलने लगे। कभी सीट आगे होती तो कभी पीछे। पूरी गाड़ी ही इंजन की तरह आवाज कर रही थी।
‘‘गज़ब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।’’
लेखक को यह सुनकर हैरानी क्यों हुई?
जब लेखक ने बस को देखा तो वो बहुत पुरानी और टूटी-फूटी अवस्था में थी। बस का सारा पेंट निकल चुका था। बस के पहिए घिस चुके थे। बस की सीटें हिल रही थी। बस के शीशे टूट चुके थे। इंजन बहुत आवाज कर रहा था। ऐसी जर्जर बस को देख लेखक ने हिस्सेदार से पूछा कि क्या ये बस चल भी पाएगी तब उसने कहा, हां यह बस अपने आप चलती है|
‘‘मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन क्यों समझ रहा था।’’
लेखक पेड़ों को दुश्मन क्यों समझ रहा था?
लेखक जिस बस में बैठा था उसकी हालत बहुत खराब थी। बस की खिड़की के शीशे टूटे हुए थे। लेखकर खिड़की की ओर बैठा था। जब भी कोई पेड़ आता तो लेखक को लगता कि अब ये पड़ खिड़की से टकराएगा। वो निकल जाता दो दूसरे पेड़ का इंतजार होता। अगर पेड़ खिड़की से टकरा जाता तो लेखक को गहरी चोट भी लग सकती थी। इस वजह से वह पेड़ों को अपना दुश्मन समझ रहा था।
‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ किसके नेतृत्व में, किस उद्देश्य से कब हुआ था? इतिहास की उपलब्ध पुस्तकों के आधार पर लिखिए।
गांधीजी ने 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की थी। इस आंदोलन का उद्देश्य अंग्रेजों को पूर्ण रूप से भारत से भगाना था। इस आंदोलन को दांडी यात्रा या नमक सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है। उस समय भारत की स्थिति बहुत दयनीय थी। गरीब लोग सिर्फ नमक रोटी खाकर अपना गुजारा करते थे। ऐसे में अंग्रेजों ने नमक पर भी टैक्स लगा दिया। इससे गांधीजी तिलमिला उठे। उन्होंने गुजरात में साबरमती आश्रम से 250 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा कर समुद्र के किनारे बसे दांडी गांव में नमक बनाकर कानून भंग किया था। यह नमक आज भी गांधी संग्रहालय में रखा गया है। इस आंदोलन के बाद भारतीय किसानों की स्थिति सुधरी थी। साथ ही ब्रिटिश सरकार ये समझ गई थी कि भारतवासी चुप बैठने वालों में से नहीं हैं।
आप अपनी किसी यात्रा के खट्ठे-मीठे अनुभवों को याद करते हुए एक लेख लिखिए।
गर्मियों की छुट्टी में हिमाचल प्रदेश की यात्रा करने का मौका मिला। हिमाचल में शिमला, मनाली, सोलंगनाला और सोलन की सैर की। दिल्ली से ट्रेन द्वारा कालकाजी तक पहुंचे। इसके बाद कार से सोलन पहुंचे। सोलन में एक रिश्तेदार के घर पहुंचे। उनका घर पहाड़ों के बीच था। वहां जाकर पता चला कि पहाड़ों के बीच कैसे उनका जीवनयापन होता है। शहरों से सामान लाना और फिर पहाड़ों चढ़ाना बेहद कठिन होता है। इसके बावजूद घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। गर्म पानी से लेकर जरूरत की हार छोटी चीज वहां मौजूद थी।
एक दिन उनके घर पर बिताने के मैं अपने मम्मी पापा और भाई के साथ शिमला के लिए निकले। कार में पहाड़ों का सफर आसान नहीं होता। लगातार कार घूमने की वजह से पापा की तबीयत खराब हो गई। इसकी वजह से दो दिन तक हमें शिमला में ही बिताने पड़े। शिमला में मालरोड के अलावा कई मंदिरों के दर्शन किए। इस खूबसूरत और छोटे शहर की शुद्ध हवा में मन प्रसन्न हो गया।
इसके बाद हम मनाली गए। वहां पहुंचने तक पापा की तबीयत ठीक हो चुकी थी। हमने वहां झरने देखे। बर्फ के पहाड़ और हडिंबा मंदिर देखा। मनाली एक छोटा और वादियों से भरा शहर है। कहीं घूमने का मन ना भी हो तो सिर्फ नदी, पहाड़ और झरनों को देखकर भी दिल को सुकून पहुंचाया जा सकता है। इसके बाद हम सोलंगनाला के लिए निकले।
वहां चारों ओर बर्फ ही बर्फ थी। साथ ही वहां कुछ हैरतअंगेज करतब भी करने का मौका मिला। वहां पर पैर बिल्कुल जम गए थे। पता नहीं चल रहा था कि हाथ पैर हैं भी या नहीं। ठंड की वजह से बोलना भी मुश्किल हो रहा था। जैसे तैसे वहां से निकले और लंबा सफर तय करने के बाद होटल पहुंचे। यात्रा सुखदायी और मजेदार थी।
सविनय अवज्ञा का उपयोग व्यंग्यकार ने किस रूप में किया है? लिखिए।
लेखक ने बस को जर्जर हालत में देखा तो उनके मुख से स्वत: ही निकल गया कि यह बस गांधीजी के असहयोग या सविनय अवज्ञा आंदोलन के वक्त अवश्य जवान रही होगी। गांधीजी ने 1930 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी। ये काफी सालों पहले की बात है। जिस तरह भारतीय जनता ने ब्रिटिश सरकार के कानूनों के खिलाफ असहयोग आंदोलन छेड़ा था, उसी प्रकार बस की सीट से लेकर इंजन तक सब असहयोग ही कर रहे थे| सीट हिल डुल रही थी इसलिए पता नहीं चल रहा था कि बॉडी सीट पर बैठी है या सीट बॉडी पर। जिस तरह भारत की स्थिति खराब होने के बावजूद देशवासी अंग्रेजों से लड़ रहे थे। इसी तरह बस भी खटारा होने के बावजूद चले जा रही थी।
अनुमान कीजिए यदि बस जीवित प्राणी होती, बोल सकती तो वह अपनी बुरी हालत और भारी बोझ के कष्ट को किन शब्दों में व्यक्त करती? लिखिए।
यदि बस एक जीवित प्राणी तो अपनी हालत को देखकर खुद पर तरस खाती। फिर कहती कि मैं अब बूढ़ी हो चली हूं। मेरे हाथ पैर और आंखों ने काम करना बंद कर दिया। करीब 30 साल पहले मैं जवान थी। मेरा ड्रावर मुझे नई नवेली दुल्हन की तरह सजाकर रखता था। मुझ पर फूल माला चढ़ाता था। मेरी अच्छे से साफ सफाई करता था। तब मैं काम भी ज्यादा और अच्छे से कर पाती थी। मैं नई थी इसलिए दिन रात काम करने के बाद भी थकती नहीं थी। इन 30 सालों में ना जाने कितने ड्राइवर बदल गए। सवारियों ने भी मेरा ध्यान नहीं रखा। सवारी खुद मेरी सीट को खराब करके चली जाती थीं। शायद वो ये भूल जाती थीं कि मैंने ही उन्हें उनके गंतव्य तक पहुंचाया है। ये नया ड्राइवर सिर्फ पैसे कमाना जानता है। ये मेरा बिल्कुल ख्याल नहीं रखता। मेरी सीट पर खाना खाता है और फिर वैसा ही छोड़ चल देता है। ध्यान ना देने की वजह से मेरी हालत दिन पर दिन खराब होती जा रही है।
‘बस, वश, बस’ तीन शब्द हैं। इनमें से ‘बस’ सवारी के अर्थ में, ‘वश’ अधीनता के अर्थ में, और ‘बस’ पर्याप्त(काफ़ी) के अर्थ में प्रयुक्त होता है_ जैसे-बस से चलना होगा। मेरे वश में नही है। अब बस करो।
• उपर्युक्त वाक्यों के समान वश और बस शब्द से दो-दो वाक्य बनाइए।
तीनों शब्दों से बने दो-दो वाक्य निम्नलिखित हैंः
बस (सवारी के अर्थ में)
(क) दो घंटे में कानपुर से दिल्ली के लिए बस मिलेगी, आप चले जाना।
(ख) मैंने सुबह ही बस का पास बनवा लिया था अब उसी से दिल्ली दर्शन करूंगा।
वश (अधीनता के अर्थ में)
(क) पिताजी का वश चले तो वो अपने बेटे को कभी हारने ना दें।
(ख) अपनी इंद्रियों को वश में करना इतना आसान नहीं होता।
बस (मात्र के अर्थ में)
(क) बस अब टीवी देखना छोड़ो और जाकर पढ़ाई करो।
(ख) बस करो, इतना ज्यादा बाहर खेलना अच्छी बात नहीं है।
‘‘हम पाँच मित्रों ने तय किया कि शाम चार बजे की बस से चलें। पन्ना से इसी कंपनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती है।’’
ऊपर दिए गए वाक्यों मे ने, की, से आदि वाक्य के दो शब्दों के बीच संबंध स्थापित कर रहे हैं। ऐसे शब्दों को कारक कहते हैं। इसी तरह दो वाक्यों को एक साथ जोड़ने के लिए ‘कि’ का प्रयोग होता है।
• कहानी में से दोनों प्रकार के चार वाक्यों को चुनिए।
कारक-चिह्नयुक्त वाक्यः
क. हम में से दो को सुबह काम पर हाजिर होना था।
ख. बस कंपनी के हिस्सेदार भी उसी बस से जा रहे थे।
ग. वृक्ष की छाया के नीचे वह बस बड़ी दयनीय लग रही थी।
घ. ड्राइवर ने तरह तरह की तरकीबें कीं लेकिन वह चली नहीं।
‘कि’ योजक शब्दयुक्त वाक्यः
(क) हमें लग रहा था कि हमारी सीट के नीचे इंजन है।
(ख) हमें लगा कि यह गांधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन के वक्त अवश्य जवान रही होगी।
(ग) समझ में नहीं आता था कि हम सीट पर बैठे हैं या सीट हम पर बैठी है।
(घ) हमें तरस आ रहा है कि हम इस पर लदकर चले आ रहे हैं।
‘‘हम फ़ौरन खिड़की से दूर सरक गए। चाँदनी में रास्ता टटोलकर वह रेंग रही थी।’’
दिए गए वाक्यों में आई ‘सरकना’ और ‘रेंगना’ जैसी क्रियाएँ एकत्र कीजिए जो गति के लिए प्रयुक्त होती हैं, जैसे- घूमना इत्यादि। उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
गति के लिए प्रयोग होने वाली कुछ क्रियाएँ और उनके वाक्य-प्रयोगः
घूमना - पहाड़ों पर बाइक से घूमना खतरों से खाली नहीं है।
टहलना - सुबह-सुबह टहलना सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है।
चलना - मरीज धीरे-धीरे चलना सीख रहा है।
दौड़ना - बच्चों को प्रतिदिन दौड़ना चाहिए।
‘‘काँच बहुत कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हमें बचना था।’’
ठस वाक्य में ‘बच’ शब्द को दो तरह से प्रयोग किया गया है। एक ‘शेष’ के अर्थ में और दूसरा ‘सुरक्षा’ के अर्थ में।
नीचे दिए गए शब्दों का वाक्यों में प्रयोग करके देखिए। ध्यान रहे, एक ही शब्द वाक्य में दो बार आना चाहिए और शब्दों के अर्थ में कुछ बदलाव होना चाहिए।
(क) जल (ख) फल (ग) हार
(क) जल- ज्यादा गर्मी की वजह से पौधे जल रहे थे इसलिए उनपर जल डाल दिया।
(ख) फल- फल खाने से सेहत को अच्छा फल मिलता है।
(ग) हार- वो महिला चुनाव में हार गई फिरभी उसे फूलों का हार पहनाया गया।
बोलचाल में प्रचलित अंग्रेजी शब्द ‘फ़र्स्ट क्लास’ में दो शब्द हैं फ़र्स्ट और क्लास। यहाँ ‘क्लास’ का विशेषण है ‘फ़र्स्ट’। चूँकि फर्स्ट संख्या है, ‘फ़र्स्ट क्लास’ संख्यात्मक विशेषण का उदाहरण है। ‘महान आदमी’ में किसी आदमी की विशेषता है ‘महान’। यह गुणवाचक विशेषण है। संख्यावाचक विशेषण और गुणवाचक विशेषण के दो-दो उदाहरण खोजकर लिखिए।
संख्यावाचक विशेषणों के कुछ उदाहरणः
संख्यावाचक विशेषण- पांच दोस्त, दस बजे, पांच मील दूर, दस समोसे, दूसरा टायर।
गुणवाचक विशेषण- समझदार व्यक्ति, अनुभवी शिक्षक, विश्वसनीय दुकानदार, जवान महिला, हरे-भरे पेड़, वृद्ध आदमी, महान पुरुष।