मिठाईवाला अलग-अलग चीजें क्यों बेचता था और वह महीनों बाद क्यों आता था?
मिठाईवाला अलग अलग चीजें बेचता था। कभी खिलौने, कभी मुरली और कभी मिठाई। ऐसा वो इसलिए करता था जिससे बच्चों का आकर्षण बना रहे। बार बार एक ही सामान कोई नहीं खरीदेगा और एक ही प्रकार के खिलौनों में बच्चों की रूचि भी कम हो जाती है| इसीलिये मिठाईवाला हमेशा अलग-अलग चीजें लेकर आता था|
इसके अलावा मिठाईवाला 6-8 महीनों के बाद दूसरा सामान लेकर लौटता था। दरअसल, कोई भी सामान ज्यादा मात्रा में बनवाने में समय लगता है। मिठाईवाले ने बातों-बातों में बताया था कि उसने 1000 मुरली बनवाई है। इतनी ज्यादा मात्रा में कोई भी चीज बनेगी तो समय लगेगा। इस वजह से वह कई महीनों बाद आता था। पहले उसने सारे खिलौने बेच दिए। फिर मुरली और इसके बाद मिठाई बेची।
मिठाईवाले में वे कौन-से गुण थे, जिनकी वजह से बच्चे तो बच्चे, बड़े भी उसकी ओर खिंचे चले आते थे?
मिठाईवाला बड़ी ही मधुर और मादक आवाज में गाकर बोलता था- बच्चों को बहलानेवाला खिलौनेवाला। उसकी ये आवाज जिसके भी कानों में पड़ती, वो अपना काम छोड़कर उसे देखने आ जाता| मिठाईवाले की कद-काठी भी अच्छी थी, रंग गोरा था, ज्यादा उम्र भी नहीं थी। 30-32 साल का ही होगा। मिठाईवाले का स्वभाव बहुत विनम्र था। वो बच्चों के साथ उनके अभिभावकों से भी प्यार से बात करता था। 3 पैसे की 2 पैसे में भी दे देता था। वो पैसे कमाने के लिए चीजें नहीं बेचता था। वो बस बच्चों को देखने और उनके साथ खेलने के लिए सामान बेचता था। वह बच्चों की पसंद के हिसाब से हर 6-8 महीने में नई चीजें लेकर आता था। जिससे बच्चों का आकर्षण बना रहे।
विजय बाबू एक ग्राहक थे और मुरलीवाला एक विक्रेता। दोनों अपने-अपने पक्ष के समर्थन में क्या तर्क पेश करते हैं?
विजय बाबू- मुरली कितने में देते हो। जवा मिला कि है तो तीन पैसे की लेकिन आपको 2 पैसे की दे दूंगा। तब वो सोचता हैं कि सबको इसी भाव में देता है लेकिन मुझपर एहसान जता रहा है। वो कहते हैं- तुम लोगों को झूठ बोलने की आदत होती है। देते होगे सभी को दो-दो पैसे में, पर एहसान का बोझा मेरे ऊपर लाद रहे हो।
मुरलीवाला- आपको क्या पता बाबूजी इनकी असली लागत क्या है? यह तो ग्राहकों का दस्तूर होता है कि दुकानदार चाहे हानि उठाकर चीज क्यों न बेचे, पर ग्राहक यही समझते हैं कि दुकानदार मुझे लूट रहा है। आप कहीं से दो पैसे में ये मुरलियाँ नहीं पा सकते। मैंने तो पूरी एक हजार बनवाई थीं, तब मुझे इस भाव पड़ी है।
खिलौनेवाले के आने पर बच्चों की क्या प्रतिक्रिया होती थी?
खिलौनेवाला बड़े ही मादक और मधुर स्वर में बोलता है- बच्चों को बहलानेवाला, खिलौनेवाला। ये आवाज लोगों के कान में पड़ते ही मकानों में हलचल मच जाती है। छोटे-छोटे बच्चों को अपनी गोद में उठाकर युवतियां छज्जे पर से नीचे झांकने लगती हैं। पार्क में खेल रहे बच्चे दौड़कर उसके पास आते हैं और उसे घेर लेते हैं। तब खिलौनेवाला खुश होकर वहीं बैठ जाता है और अपनी खिलौने की पोटली खोल देता है। बच्चे उससे मोल-भाव करने लगते हैं। वो बच्चों से खिलौने ले लेता और उन्हें उनकी इच्छानुसार खिलौने दे देता है।
रोहिणी को मुरलीवाले के स्वर से खिलौनेवाले का स्मरण क्यों हो आया?
रोहिणी ने जब मुरलीवाले की आवाज सुनी तो उसे खिलौनेवाले का स्मरण हो गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि खिलौनेवाले और मुरलीवाले के बोलने का तरीका बिल्कुल एक जैसा था। वही मादक और मधुर स्वर में उसने कहा था- बच्चों को बहलानेवाला, मुरलियावाला। जब वह खिलौने बेचने आया था तो रोहिणी को ये सोचकर अचंभा हुआ था कि वो इतने सस्ते में खिलौने क्यों दे रहा है। ये बात उसके मन में 6 महीने पहले आई थी। जब उसने मुरलीवाले की आवाज सुनी तो उसे सबकुछ फिर से याद आ गया। इसके अलावा मुरलीवाले और खिलौनेवाला का रंग-रूप भी एक जैसा था। वही सफेद कुर्ता और रंगीन साफा।
किसकी बात सुनकर मिठाईवाला भावुक हो गया था? उसने इन व्यवसायों को अपनाने का क्या कारण बताया?
मिठाईवाला रोहिणी और दादी की बातें सुनकर भावुक हो जाता है। रोहिणी, मिठाईवाले से पूछती है कि इस शहर में और कभी भी आए थे या पहली बार आए हो। यहां के निवासी तो लगते नहीं। तब मिठाईवाला बताता है, पहली बार नहीं और भी कई बार आ चुका हूं। फिर रोहिणी ने पूछा कि इस व्यवसाय में तुम्हें क्या मिलता होगा। इस पर वह बोला कि खानेभर का मिल जाता है। कभी नहीं भी मिलता। लेकिन संतोष, धीरज और असीम सुख जरूर मिलता है। मिठाईवाले ने आगे बताया कि वो अपने नगर का प्रतिष्ठित व्यक्ति था। उसकी पत्नी और दो बच्चे थे लेकिन अब वो नहीं रहे। उसका जीवन उजड़ चुका था। उसने यह व्यवसाय इसलिए शुरू किया क्योंकि वो दूसरों के बच्चों में अपने बच्चों की छवि देखता था। उसके बच्चे भी इसी तरह खिलौने, मिठाई और मुरली पाकर खुश होते थे।
‘अब इस बार ये पैसे न लूँगा-’ कहानी के अंत में मिठाईवाले ने ऐसा क्यों कहा?
रोहिणी और दादी ने पहले उससे मिठाई ली। रोहिणी के मन में बहुत दिन से ये सवाल चल रहा था कि आखिर ये मिठाईवाला कौन है और इतने कम पैसे में सामान क्यों देता है। मिठाई लेते वक्त रोहिणी ने उससे पूछ ही लिया कि पहली बार यहां आए हो या और भी कभी आए थे। इसके बाद तो मिठाईवाले अपनी पूरी जीवन कहानी उनके सामने रख दी। उसने बताया कि वो अपने नगर का प्रतिष्ठित व्यक्ति था। उसकी पत्नी और दो बच्चे थे लेकिन अब वो नहीं रहे। उसका जीवन उजड़ चुका था। उसने यह व्यवसाय इसलिए शुरू किया क्योंकि वो दूसरों के बच्चों में अपने बच्चों की छवि देखता था। मिठाईवाले से ये सब बातें किसी ने नहीं पूछी थी। ये सब बातें किसी ने मिठाईवाले से नहीं पूछी थी। रोहिणी और दादी का प्यार और हमदर्दी को देख मिठाईवाले ने उनसे पैसे लेने को इंकार कर दिया।
इस कहानी में रोहिणी चिक के पीछे से बात करती है। क्या आज भी औरतें चिक के पीछे से बात करती हैं? यदि करती हैं तो क्यों? आपकी राय में क्या यह सही है?
भारत को पुरुष प्रधान देश कहा जाता है। ऐसे में हमेशा महिलाओं को मर्दों के सामने आने की इजाजत नहीं होती है। शहरों ने महिलाओं की पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियों पर काफी हद तक काबू पा लिया है। लेकिन गांवों ये परंपरा आज भी कायम है। महिलाएं पराए पुरुषों के सामने नहीं आती हैं। अगर उन्हें कुछ बात करनी भी होती है तो वो चिक या दरवाजे के पीछे खड़ी होकर कर लेती हैं। महिलाओं को पराए पुरुषों के सामने ना आने देने के पीछे समाज के लोगों की दो वजहें होती हैं। पहली ये कि उन्हें दूसरों की बुरी नजर से बचाया जा सके। आज मनुष्य दूसरे मनुष्य पर भरोसा नहीं करता। ऐसे में महिलाओं को उनसे दूर रहने की हिदायत दी जाती है। परिवारवालों को अपने घर की बहू बेटियों की सुरक्षा की चिंता होती है। इसलिए भी वे महिलाओं को घर के अंदर रहने को कहते हैं।
मेरे हिसाब से ये प्रथा ठीक नहीं हैं। पुरुषों की भांति महिलाएं भी अपना अच्छा बुरा समझती हैं। उन्हें घर से बाहर निकलने की आजादी दी जानी चाहिए। जिससे वो मुश्किल वक्त में खुद ही उससे निपट सकें।
मिठाईवाले के परिवार के साथ क्या हुआ होगा? सोचिए और इस आधार पर एक और कहानी बनाइए
उत्तर प्रदेश के बनारस में एक व्यापारी रहता था। उसका नाम सोनेलाल था। वह सुनार का काम करता था और उसकी एक सोने की दुकान भी थी। उसका धंधा बढ़िया चल रहा था। सोनेलाल पूरे शहर में अपने सोने के काम के लिए मशहूर हो गया था। उसकी दुकान में करीब 10 लोग काम करते थे। सभी वफादार थे।
सोनेलाल दिल का सच्चा और दयालु व्यक्ति था। वो जरूरतमंदों की सहायता करता था। उसके घर में बीवी और दो बच्चे थे। एक बार उसकी दुकान पर एक व्यक्ति रोजगार मांगने के लिए आया। इस व्यक्ति का नाम सुरेंद्र था। सुरेंद्र ने बताया कि वो बहुत ईमानदार है और मन लगाकर काम करेगा।
सुरेंद्र के बहुत कहने पर सोनेलाल ने उसे काम पर रख लिया। अगले दिन से ही सुरेंद्र काम पर आने लगा। सुरेंद्र बहुत मेहनत करता था। सोनेलाल भी उसकी मेहनत देखकर काफी खुश था। एक बार सोनेलाल को काम से दूसरे शहर जाना था। उसने सारी जिम्मेदारी सुरेंद्र को दी और कहा कि वो घर और दुकान को अच्छे से संभाले।
सोनेलाल चार दिन के लिए शहर से बाहर चला गया। सोनेलाल चार दिन बाद घर लौटा। जब सोनेलाल ने घर में प्रवेश किया तो देखा वहां भीड़ लगी हुई थी। उसने आगे बढ़कर देखा तो उसकी पत्नी और बच्चों की किसी ने हत्या कर दी थी। साथ ही पूरे घर का कीमती सामन चोरी हो चुका था। सोनेलाल की पूरी दुनिया उजड़ चुकी थी।
काफी छानबीन के बाद सोनेलाल को पता चला कि ये जुर्म किसी और ने नहीं बल्कि सुरेंद्र ने किया था। वो एक बदमाश था जो बहरूपिया बनकर सोनेलाल की दुकान पर काम मांगने आया था।
हाट-मेले, शादी आदि आयोजनों में कौन-कौन सी चीजें आपको सबसे ज्यादा आकर्षित करती हैं? उनको सजाने-बनाने में किसका हाथ होगा? उन चेहरों के बारे में लिखिए?
हाट मेले और शादी में तंबू, लाइटिंग, मिठाई, खिलौने और कपड़े आकर्षण का केंद्र होते हैं। दुकानों पर बिकने वाला सजावट का सामान भी कम आकर्षक नहीं होता। इन सभी चीजों को कारीगर बनाता है। तंबू लगाने में मजदूर मदद करते हैं। इस काम से उनकी ज्यादा आमदनी नहीं होती है। ज्यादा पढ़े लिखे ना होने के कारण उन्हें ये काम करना पड़ता है। हाट मेले और शादी में सजावट करने वालों के खुद के चेहरे तो उतने सुंदर नहीं होते लेकिन वो अपनी कारीगरी से उस आयोजन की सुंदरता बढ़ा देते हैं। काम करते करते उनके हाथ कड़क हो जाते हैं परंतु इनकी बनाई वस्तुएं बेहद आकर्षित करती हैं। इनका चेहरा भले न खूबसूरत हो, पर इनकी वस्तुएं स्वयं इनकी सुंदरता को प्रकट कर देती है।
इस कहानी में मिठाईवाला दूसरों को प्यार और खुशी देकर अपना दुख कम करता है? इस मिजाज की और कहानियाँ, कविताएँ ढूँढि़ए और पढि़ए।
छात्र पुस्तकालय से से इस प्रकार की कहानी, कविताएँ खोजकर स्वयं पढ़े।
आपकी गलियों में कई अजनबी फेरीवाले आते होंगे। आप उनके बारे में क्या-क्या जानते हैं? अगली बार जब आपकी गली में कोई फेरीवाला आए तो उससे बातचीत कर जानने की कोशिश कीजिए।
हमारी गली में कुल्फी वाला और बुढ़िया के बाल वाला फेरी लगाता है। ये दोनों हर शाम 5 बजे आत हैं। कुल्फी वाले के ठेले में घंटी लगी हुई है। जिसके बजते ही सभी बच्चे समझ जाते हैं कि कुल्फी वाला आ गया है। वहीं बुढ़िया के बाल बाला जोर से आवाज लगाता है- आओ बच्चों आओ, ये गजब की चीज खाओ। बुढ़िया के बाल चीनी से बनते हैं। जो बच्चों को खास पसंद होते हैं।
कुल्फी वाले की बात करें तो वो गरीब परिवार का लगता है। अपने घर की रोजी रोटी चलाने के लिए ये काम कर रहा है। उसके घर में भी दो बच्चे हैं। जो स्कूल जाते हैं। उसकी बूढ़ी मां अक्सर बीमार रहती है। वहीं उसकी पत्नी दूसरों के घरों में काम कर चार पैसे कमाती है। दूसरा फेरी वाला काफी बुजुर्ग है। उसके कोई बच्चे नहीं हैं। घर में परिवार के नाम पर सिर्फ पत्नी है। ये काम कर वो अपने और बीवी के भर का पैसा कमा लेता है। वो मध्य प्रदेश का रहने वाला है।
आपके माता-पिता के जमाने से लेकर अब तक फेरीवाले की आवाजों में कैसा बदलाव आया हैं? बड़ो से पूछकर लिखिए।
मेरे माता पिता ने बताया कि उनके जमाने फेरीवालों के पास को ठेला या गाड़ी नहीं होती थी। वो अपना सामान पीठ या सिर पर रखकर लाते थे। वो करीब 10 किमी चलकर पैदल आने के बाद वो घर घर जाकर सामान दिखाते थे। मोल तोल करते थे। दिन भर गांव में घूम घूमकर सामान बेचते थे और फिर शाम को अपने घर की ओर निकल जाते थे। तब फेरीवालों की आवाज बड़ी सुरीली होती थी। लोग उनकी आवाज सुनकर मोहित होते और सामान खरीदते थे। फेरीवाले बहुत प्यार से बात करते थे। वहीं अब फेरीवालों की आवाज में वो मधुरता नहीं रहती है। बस वो दूर से आवाज लगाते सुनाई पड़ते हैं। साथ ही कारों में लाउड स्पीकर लगाकर भी अपना सामान बेचते हैं।
आपको क्या लगता है- वक्त के साथ फेरी के स्वर कम हुए हैं? कारण लिखिए।
फेरी का जमाना पहले था, जो अब खत्म होता जा रहा है। गांवों में फेरीवाले अभी भी आते हैं लेकिन शहरों में अब ये बिल्कुल नजर नहीं आते हैं। अब लोगों के रहन सहन का स्तर बढ़ गया है इसलिए इन फेरीवालों से कोई सामान नहीं लेता है। ऐसे में फेरीवालों ने अपनी दुकानें खोल ली हैं। जगह जगह मॉल और शॉपिंग सेंटर खुलने से फेरीवालों का महत्व खत्म हो गया है। शहर के लोग फेरीवालों के सामान की क्वालिटी को अच्छा नहीं मानते हैं। फेरीवालों का सामान सस्ता होता है जब मॉल में वही सामान की कीमत तिगुनी हो जाती है। इसके अलावा सामान खरीदने के बहाने ही लोग घरों से बाहर जाकर घूम-फिर आते हैं।
मिठाईवाला, बोलने वाली गुडि़या
• ऊपर ‘वाला’ का प्रयोग है। अब बताइए कि-
(क) ‘वाला’ से पहले आनेवाले शब्द संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि में से क्या हैं?
(ख) ऊपर लिखे वाक्यांशों में उनका क्या प्रयोग है?
(क) ‘वाला’ से पहले आने वाले शब्द मिठाई संज्ञा तथा ‘बोलनेवाली’ विशेषण है।
(ख) ऊपर लिखे वाक्यांशों में ‘वाला’ का प्रयोग संज्ञा सूचक शब्द (कर्ता) बनाने के लिए किया गया है।
‘अच्छा मुझे ज्यादा वक्त नहीं, जल्दी से दो ठो निकाल दो।’
• उपर्युक्त वाक्य में ‘ठो’ के प्रयोग की ओर ध्यान दीजिए। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की भाषाओं में इस शब्द का प्रयोग संख्यावाची शब्द के साथ होता है, जैसे- भोजपुरी में एक ठो लड़का, चार ठे आलू, तीन ठे बटुली।
• ऐसे शब्दों का प्रयोग भारत की कई अन्य भाषाओं/बोलियों में भी होता है। कक्षा में पता कीजिए कि किस किस की भाषा बोली में ऐसा है। इस पर सामूहिक बातचीत कीजिए।
बिहार के मिथिला क्षेत्र में जहाँ मैथिली बोली जाती हैं, वहाँ पर ‘ठो’, ‘ठे’ के स्थान पर ‘टा’ का प्रयोग करते हैं। जैसे-
एक ठो कलम - एक टा कलम
पाँच ठो कापी- पाँच टा कापी
इसके अलावा उत्तर प्रदेश के बनारस में भी ऐसी भाषा बोली जाती है। साथ ही इलाहाबाद और पूर्वांचल क्षेत्रों में ठो लगाकर भाषा का प्रयोग किया जाता है।
‘वे भी जान पड़ता है, पार्क में खेलने निकल गए हैं।’
‘क्यों भई, किस तरह देते हो मुरली?’
‘दादी, चुन्नू-मुन्नू के लिए मिठाई लेनी है? जरा कमरे में चलकर ठहराओ।’
• भाषा के ये प्रयोग आजकल पढ़ने-सुनने में नहीं आते। आप ये बातें कैसे कहेंगे?’
लगता है वे भी पार्क में खेलने निकल गए हैं।
क्यों भई, यह मुरली कितने रुपए की है।
दादी, चुन्न-मुन्नू के लिए मिठाई लेनी है। उसे रोककर कमरे में बैठाओ।
फेरीवालों की दिनचर्या कैसी होती होगी? उनका घर-परिवार कहाँ होगा? उनकी जिंदगी में किस प्रकार की समस्याएँ और उतार-चढ़ाव आते होंगे? यह जानने के लिए तीन-तीन के समूह में छात्र-छात्रएँ कुछ प्रश्न तैयार करें और फेरीवालों से बातचीत करें। प्रत्येक समूह अलग-अलग व्यवसाय से जुड़े फेरीवालों से बात करें।
छात्र विभिन्न समूह बनाकर फेरीवालों के जीवन के बारे में जानने के लिए कुछ प्रश्न तैयार करें| प्रश्न वास्तविक स्थितियों पर आधारित होने चाहिए|
इस कहानी को पढ़कर क्या आपको यह अनुभूति हुई कि दूसरों को प्यार और खुशी देने से अपने मन का दुःख कम हो जाता है? समूह में बातचीत कीजिए।
कहते हैं कि सुख बांटने से सुख और दुख बांटने से दुख बढ़ता है। रोहिणी ने मिठाईवाले से उसकी जीवन कहानी जाननी चाही। इस पर मिठाईवाले ने रोहिणी और दादी को अपने बारे में सबकुछ बता दिया। जबकि रोहिणी और दादी मिठाईवाले के लिए बिल्कुल अंजान थी। जब उसे रोहिणी और दादी से प्यार और हमदर्दी मिली तो वो भी खुद को नहीं रोक पाया। ये सारी बातें बताकर उसके मन का दुख थोड़ा कम हो गया। इसी वजह से उसने मिठाई के पैसे लेने से भी मना कर दिया। हमें भी हमेशा अपने आस पास के लोगों से प्यार से बात करनी चाहिए।
अपनी कल्पना की मदद से मिठाईवाले का चित्र शब्दों के माध्यम से बनाइए।
मिठाईवाले का नाम सोनेलाल था। उसकी उम्र करीब 35 वर्ष थी। वह रोज सफेद धोती कुर्ता पहनता था। इसके अलावा सिर पर साफा बांधता है। उसकी घनी मूंछे थीं। उसका रंग गोरा था। वह बहुत मीठा बोलता था। उसके सिर पर बड़ी सी टोकरी होती थी जिसमें स्वादिष्ट मिठाई होती थी। वो अपने एक हाथ में लाठी भी रखता था। जिसपर बहुत सारी पॉलीथीन लगी रहती थी। वह धीरे धीरे मिठाई बेचता हुआ एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले पहुंच जाता था। इस तरह वह सुबह आता और शाम को चला जाता था।