नदियों को माँ मानने की परंपरा हमारे यहाँ काफी पुरानी है। लेकिन लेखक नागार्जुन उन्हें और किन रूपों में देखते हैं?
भारत में नदियों को मां का दर्जा दिया गया है। हम अक्सर गंगा को मां कहकर संबोधित करते हैं। वहीं लेखक ने नदियों को बेटी, मौसी, दादी, बहन, प्रेयसी, दादी, मामी और मां के रूप देखा है। क्योंकि नदी बहन की तरह अल्हड़ लीलाएं करती है। वहीं हिमालय नदी रूपी बेटियों का पिता है जो उन्हें अपने अंदर समाए हुए है। साथ ही लेखक नदियों को दादी, मामी, मां और मौसी समझकर उनकी गोद में सो जाना चाहता है।
सिंधु और ब्रह्मपुत्र की क्या विशेषताएं बताई गई हैं?
सिंधु और ब्रह्मपुत्र दो ऐसे महानद हैं जिनका नाम सुनते ही रावी, सतलुज, व्यास, चनाब, झेलम, काबुल, कपिशा, गंगा, यमुना, सरयू, गंडक, कोसी आदि हिमालय की छोटी बड़ी सभी नदियां उसमें समा जाती हैं। इसी विशालता के कारण इन्हें नद की संज्ञा दी गयी है| हिमालय में बर्फ के पिघलने से इन दो महानदों का निर्माण होता है। इन दोनों महानदों में छोटी छोटी कई नदियां मिल जाती है और ये दोनों अनत में समुद्र में समा जाती हैं|
काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता क्यों कहा है?
काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता की संज्ञा दी है। उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि नदियां सभी मनुष्यों, पशु पक्षी और अन्य जीवों की प्यास बुझाती है। नदियां पूरे मनुष्य जगत का भरण पोषण करती है। भारत की संस्कृति में नदियों को कल्याणकारी कहा गया है। नदियों का जल शीतल होता है। इसमें स्नान करने से मनुष्य की थकान और गर्मी पूरी तरह से उतर जाती है।
हिमालय की यात्रा में लेखक ने किन-किन की प्रशंसा की है?
हिमालय की यात्रा के दौरान लेखक ने सबसे ज्यादा नदियों की प्रशंसा की है। उनका कहना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए भले ही ये मायने ना रखती हों लेकिन समतल क्षेत्रों से आने वाले लोगों के लिए ये आश्चर्यजनक नजारा है। इसके अलावा लेखक ने देवदार, चीर, सरो, चिनार, सफेदा, केल के जंगलों घाटियों, झरनों और गुफाओं के साथ ही अद्भुत हिमालय की प्रशंसा भी की हैं।
नदियों और हिमालय पर अनेक कवियों ने कविताएँ लिखी हैं। उन कविताओं का चयन कर उनकी तुलना पाठ में निहित नदियों के वर्णन से कीजिए।
नदियों और हिमालय से संबंधित कुछ कविताएँ-
खड़ा हिमालय बता रहा है
डरो न आंधी-पानी में
खड़े रहो तुम अविचन होकर
सब संकट तूफानी में
डिगो न अपने प्रण से तो तुम
सबकुछ पा सकते हो प्यारे
तुम भी ऊँचे उठ सकते हो
छू सकते हो नभ के तारे।
अचल रहा जो अपने पथ पर
लाख मुसीबत आने में
मिली सफलता जग में उसको
जीने में मर जाने में।
गोपालसिंह नेपाली की कविता ‘हिमालय और हम’, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘हिमालय’ तथा जयशंकर प्रसाद की कविता ‘हिमालय के आँगन में’ पढि़ए और तुलना कीजिए।
रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी कविता में हिमालय की विशालता का वर्णन किया है| इस कविता में कवि ने बताया है कि किस प्रकार भारतवासियों का हिमालय से प्राचीनकाल से ही अत्यंत घनिष्ठ संबंध है| जबकि लेखक नागार्जुन ने हिमालय का वर्णन नदियों के पिता के रूप में किया है|
यह लेख 1947 में लिखा गया था। तब से हिमालय से निकलनेवाली नदियों में क्या-क्या बदलाव आए हैं?
1947 से अबतक करीब 70 साल हो गए है। इन 70 सालों में नदियों के रूप और स्वच्छता में बहुत परिवर्तन आया है। ये नदियां ही हैं जिनका पानी घरों तक जाता है। बढ़ती आबादी के कारण ये नदियां मानव की प्यास बुझाने के लिए पर्याप्त नहीं रहीं। मनुष्य ने अपनी स्वार्थ की प्रवृत्ति के चलते इन नदियों को गंदा करना शुरू कर दिया है। जो नदी हमें जीवनदान देती हैं उनकी मानव हत्या कर रहा है। पहले यही नदियां अमृत समान जल प्रदान करती थीं और हम इन्हें मां की तरह पूजते थे। अब नदियों का स्वरूप बदल चुका है। नदियों का जल गंदा हो चुका है। कुछ नदियां तो पूरी तरह से सूख भी गई हैं। इसी वजह से नदियों के प्रति हमारा नजरिया और हमारी आस्था प्रभावित हुई है|
अपने संस्कृत शिक्षक से पूछिए कि कालिदास ने हिमालय को देवात्मा क्यों कहा है?
कालिदास ने अपने काव्यग्रंथ मेघदूत में हिमालय को देवात्मा कहा है। कालिदास का मानना है कि हिमालय में देव बसते हैं। हिमालय एक बहुत ही पवित्र स्थान है। जहां मानव की पहुंच नहीं है। कालीदास ने कहा है कि अल्कापुरी कैलाश मानसरोवर के निकट है। अल्कापुरी को देव कुबेर की नगरी कहा जाता है। वहीं कैलाश को भगवान शिव का निवास स्थान भी माना गया है। इसके अलावा वहां अनेक ऋषि मुनि तपस्या के लिए जाते हैं। तप करके वो अपनी आत्मा को देवताओं समान पवित्र बना लेते हैं। इसी वजह से हिमालय को देवात्मा कहना गलत नहीं है।
प्रस्तुत लेख में नदियों के दृश्य-वर्णन पर बल दिया गया है। किसी नदी की तुलना अल्हड़ बालिका से कैसे की जा सकती है? कल्पना कीजिए।
कवि ने नदी का बहुत अच्छा उल्लेख किया है। उसने नदी को बेटी की संज्ञा दी है और हिमालय को उसका पिता कहा है। जिस प्रकार पिता एक बेटी को जन्म देता है उसी तरह नदियां भी हिमालय की गोद से निकलती हैं। हिमालय के करीब रहने पर वो उसके साथ खेलती हैं, इठलाती हैं, खिलखिलाती हैं। हिमलाय एक पिता की तरह उनको हर वो चीज देता जिनकी उसे जरूरत होती है। जैसे ज्यादा से ज्यादा जल और शीतलता। हिमालय से निकलने के पश्चात नदी हिमालय पर उछलती, कूदती है जैसे कोई अल्हण बालिका हमेशा उछलती कूदती रहती है| उसके पश्चात जब वह बालिका बड़ी होती है और वह पिता का घर छोड़ते हुए गंभीर हो जाती है उसी तरह नदियां भी हिमालय से निकलकर जब समतल जमीन पर बहती हैं तो गंभीर और शांत दिखती हैं।
नदियों से होने वाले लाभों के विषय में चर्चा कीजिए और इस विषय पर बीस पंक्तियों का एक निबंध लिखिए।
भारत में नदी को जीवनदायिनी कहा जाता है यानी जीवन देने वाली। नदी का जल ही पूरी मानव प्रजाति की प्यास बुझाता है। नदी बर्फीले पहाड़ों से निकलती हैं और लंबा रास्ता तय कर शहरों-गांवों तक पहुंचती हैं। नदियों का पानी शीतल और गुणकारी होता है। इसको पीने से कोई भी बीमारी ठीक हो जाती है। नदियों से लोगों की धार्मिक भावनाएं भी जुड़ी हुई हैं। जीवदायिनी होने के कारण हम इसे मां कहकर भी पुकारते हैं। साथ ही समय समय पर इसकी पूजा भी करते हैं। नदी के पानी से किसान अपने खेतों की सिंचाई करते हैं। बड़े बड़े उद्योगों में भी नदी के पानी का प्रयोग किया जाता है। नदी में बांध बनाकर पानी एकत्रित किया जाता है और फिर उसी पानी को बिजली उत्पादन और सिंचाई के किये प्रयोग किया जाता है|
नदी मछुआरों को रोजगार भी प्रदान करती है। नदियों से मछलियां निकालकर वो अपने परिवार को पालते हैं। नदी के पानी से शरीर का इलाज भी होता है। उसमें मौजूद वनस्पतियां किसी भी बीमारी को दूर करने में कारगर हैं। बहती हुई नदी को देखना सुकून भरा होता है। ना जाने कितने कवियों ने नदी पर लेख और कविताएं लिख डालीं। नदी पर्यटकों को खूब लुभाती हैं। नदी में इतना सबकुछ होने के बाद भी आज मानव ने अपने स्वार्थ के कारण इसे प्रदूषित कर दिया है। नदियों का स्वरूप बदलता जा रहा है। ज्यादा गर्मी होने के कारण नदियों का जल सूख रहा है। धीरे धीरे पूरे विश्व में पानी की कमी आ रही है। धीरे धीरे ये स्थिति भयानक होती जा रही है। अगर मानव ने खुद को नहीं रोका तो आने वाली पीढ़ी को नदी और उसका पानी कभी नसीब नहीं होगा।
अपनी बात कहते हुए लेखक ने अनेक समानताएँ प्रस्तुत की हैं। ऐसी तुलना से अर्थ अधिक स्पष्ट एवं सुंदर बन जाता है। उदाहरण-
(क) संभ्रात महिला की भांति वे प्रतीत होती थीं।
(ख) माँ और दादी, मौसी और मामी की गोद की तरह उनकी धारा में डुबकियाँ लगाया करता।
• अन्य पाठों से ऐसे पाँच तुलनात्मक प्रयोग निकालकर कक्षा में सुनाइए और उन सुंदर प्रयोगों को कॉपी में भी लिखिए।
(1) सागर की हिलोर की भांति उसका यह मादक गान गली भर के मकानों में इस ओर से उस ओर तक लहराता हुआ पहुँचता और खिलौनेवाला आगे बढ़ जाता।
(2) लाल किरण-सी चोंच खोलते, चुगते तारक अनार के दाने|
(3) लाल कण बनावट में बालूशाही की तरह ही होते हैं।
(4) रक्त के तरल भाग प्लाज्मा में एक विशेष किस्म की प्रोटीन होती है तो रक्तवाहिका की कटी-फटी दीवार में मकड़ी के जाल के समान एक जाला बुन देती है|
(5) यह स्थिति चित्रा जैसी अभिमानिनी माजोरी के लिए ही कही जायेगी|
निर्जीव वस्तुओं को मानव-संबंधी नाम देने से निर्जीव वस्तुएं भी मानो जीवित हो उठती हैं। लेखक ने इस पाठ में कई स्थानों पर ऐसे प्रयोग किए हैं, जैसे-
(क) परंतु इस बार जब मैं हिमालय के कंधे पर चढ़ा तो वे कुछ और रूप में सामने थीं।
(ख) काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता कहा है।
• पाठ से इसी तरह के और उदाहरण ढूंढि़ए।
(1) इनका उछलना और कूदना, खिलखिलाकर हँसते जाना, इनकी भाव-भंगी यह उल्लास कहाँ गायब हो जाता है|
(2) दयालु हिमालय के पिघलते हुए दिल की एक एक बूंद न जाने कबसे इकट्ठा हो होकर इन दो महानदों में प्रवाहित हो रही हैं।
(3) बूढ़े हिमालय की गोद में बच्चियां बनकर ये कैसे खेला करती हैं।
(4) हिमालय को ससुर और समुद्र को उसका दामाद कहने में भी कुछ झिझक नहीं होती है।
(5) पिता का विराट प्रेम पाकर भी अगर इनका मन अतृप्त ही है तो कौन होगा जो इनकी प्यास मिटा सकेगा|
पिछली कक्षा में आप विशेषण और उसके भेदों से परिचय प्राप्त कर चुके हैं। नीचे दिए गए विशेषण और विशेष्य (संज्ञा) का मिलान कीजिए-
द्वंद्व समास के दोनों पद प्रधान होते हैं। इस समास में ‘और’ शब्द का लोप हो जाता है, जैसे- ‘राजा-रानी’ द्वंद्व समास है जिसका अर्थ है राजा और रानी। पाठ में कई स्थानों पर द्वंद्व समासों का प्रयोग किया गया है। इन्हें खोजकर वर्णमाला क्रम (शब्दकोश-शैली) में लिखिए।
द्वंद्व समास के उदाहरण
दुबली-पतली
छोटी-बड़ी
भाव-भंगी
दुबली-पतली
छोटी-बड़ी
नंग-धड़ंग
मां-बाप
भाव-भंगी
नंग-धड़ंग
मां-बाप
नदी को उलटा लिखने से दीन होता है जिसका अर्थ होता है गरीब। आप भी पाँच ऐसे शब्द लिखिए जिसे उलटा लिखने पर सार्थक शब्द बन जाए। प्रत्येक शब्द के आगे संज्ञा का नाम भी लिखिए, जैसे-नदी-दीन (भाववाचक संज्ञा)
शब्द- सार्थक शब्द, अर्थ (भेद सहित)
सब- बस (गाड़ी) जातिवाचक संज्ञा
हवा- वाह (शाबासी) भाववाचक संज्ञा
नमी- मीन (मछली) जातिवाचक संज्ञा
राज- जरा (बुढ़ापा) भाववाचक संज्ञा
धारा- राधा (नाम) व्यक्तिवाचक संज्ञा
हीरा- राही (यात्री) जातिवाचक संज्ञा
नव- वन (जंगल) जातिवाचक संज्ञा
समय के साथ भाषा बदलती है, शब्द बदलते हैं और उनके रूप बदलते हैं जैसे- बेतवा नदी के नाम का दूसरा रूप ‘वेत्रवती’ है। नीचे दिए गए शब्दों में से ढूँढ़कर इन नामों के अन्य रूप लिखिए-
सतलुज रोपड़ झेलम चिनाब अजमेर बनारस
विपाशा, वितस्ता, रूपपुर, शतद्रुम, अजयमेरू, वाराणसी
सतलुज- शतद्रुम
रोपड़- रूपपुर
झेलम- वितस्ता
चिनाब- चंद्रभागा
अजमेर- अजयमेरू
बनारस- वाराणसी
‘उनके ख्याल में शायद ही यह बात आ सके कि बूढ़े हिमालय की गोद में बच्चियां बनकर ये कैसे खेला करती हैं।’
• उपर्युक्त पंक्ति में ‘ही’ के प्रयोग की ओर ध्यान दीजिए। ‘ही’ वाला वाक्य नकारात्मक अर्थ दे रहा है। इसीलिए ‘ही’ वाले वाक्य में कही गई बात को हम ऐसे भी कह सकते हैं- उनके ख्याल में शायद यह बात न आ सके।
• इसी प्रकार नकारात्मक प्रश्नवाचक वाक्य कई बार ‘नहीं’ के अर्थ में इस्तेमाल नहीं होते हैं, जैसे महात्मा गांधी को कौन नहीं जानता? दोनों प्रकार के वाक्यों के समान तीन-तीन उदाहरण सोचिए और इस दृष्टि से उनका विश्लेषण कीजिए।
उदाहरण के समान वाक्य विश्लेषण
1. (क) मेरे घरवालों को शायद ही मेरा जन्मदिन याद होगा।
(ख) उसके हाथ का खाना शायद ही अच्छा हो।
(ग) बड़ी कंपनियां शायद ही अपने कलीग्स के अच्छा वेतन देती हैं।
2. (क) शिखा पढ़ाई में अव्वल है, ये कौन नहीं जानता।
(ख) भला कौन नहीं जानता होगा कि मुकेश अंबानी देश के सबसे अमीर उद्योगपति हैं।
(ग) अच्छा घर और अच्छी सैलरी किसे नहीं चाहिए।