लेखिका बचपन में इतवार की सुबह क्या-क्या काम करती थीं?
बचपन में लेखिका रविवार की सुबह अपने मोजे धोने में व्यस्त रहती थी। मोजे नौकर या नौकरानी को धोने के लिए देने की सख्त मनाही थी। मोजे धोने के बाद जूते पर पॉलिश करके उसे कपड़े या फिर ब्रश से चमकाने का काम करती थी।
‘तुम्हें बताउंगी कि हमारे समय और तुम्हारे समय में कितनी दूरी हो चुकी है। इस बात के लिए लेखिका क्या-क्या उदाहरण देती हैं?
इस पाठ में लेखिका ने अपने बचपन और आज के समय की दूरी को बताने के लिए कई उदाहरण दिए हैं। लेखिका कहती है कि वक्त ग्रामोफोन हुआ करता था लेकिन अब इसकी जगह रेडियो और टेलीविजन ने ले ली है। कुल्फी को लोग अब आइसक्रीम कहते हैं। कचौड़ी और समोसी की जगह पेटीज ने ले ली है और शरबत की जगह कोल्डड्रिंक ने ले ली है। इस तरह लेखिका ने उदाहरण देकर अपने और हमारे समय में अंतर दर्शाने की कोशिश की है।
पाठ से पता करके लिखो कि लेखिका को चश्मा क्यों लगाना पड़ा? चश्मा लगाने पर उनके चचेरे भाई उन्हें क्या कहकर चिढ़ाते थे?
दिन की रोशनी छोड़कर रात में टेबल लैंप के सामने काम करने के कारण लेखिका की आंखें कमजोर हो गई थी जिस वजह से डॉक्टरों ने उन्हें चश्मा लगाने को कहा। लेखिका के चश्मा लगाते ही चचेरे भाई ने उनसे मजाक करना शुरू कर दिया। चचेरे भाई ने मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘आँख पर चश्मा लगाया ताकि सूझे दूर की, यह नहीं लड़की को मालूम सूरत बनी लंगूर की।’
लेखिका अपने बचपन में कौन-कौन-सी चीजें मजा ले-लेकर खाती थीं? उनमें से प्रमुख फलों के नाम लिखो।
बचपन में लेखिका कई चीजें मजा लेकर खाती थीं। उन चीजों में चॉकलेट, चना जोर गरम, अनारदाना, शिमला के खट्टे मीठे फल और रसभरी लेखिका को बहुत पसंद थे।
लेखिका को बचपन में हवाई जहाज की आवाजें, घुड़सवारी, ग्रामोफोन और शोरूम में शिमला-कालका ट्रेन का मॉडल ही आश्चर्यजनक आधुनिक चीजें थीं। आज क्या-क्या आश्चर्यजनक आधुनिक चीजें तुम्हें आकर्षित करती हैं? उनके नाम लिखो।
मुझे वर्तमान दौर में कई आधुनिक चीजें आश्चर्यचकित करती हैं। इन चीजों में फैक्स मशीन, फोन से वीडियो कॉल करना, रोबोट, क्रेन, लिफ्ट आदि हैं|
अपने बचपन की कोई मनमोहक घटना याद करके विस्तार से लिखो।
मैं स्कूल में हमेशा टॉप करती थी। बच्चों के बीच मेरी अलग ही पॉपुलैरिटी थी। हर कोई मुझसे बात करना चाहता था क्योंकि मैं सभी टीचरों की फेवरेट थी। अक्सर लोगों को मैंने यह कहते हुए सुना था कि घमंड कभी भी नहीं करना चाहिए। यह बात मेरे मन में ऐसी बैठी थी कि मैंने कभी भी अपने क्लास के कमजोर बच्चों के साथ बुरा बर्ताव नहीं किया। सबसे अच्छे से बात करती थी और उनकी मदद भी करती थी। टीचरों को लगता था कि मैं बिल्कुल भी शैतानी नहीं करती लेकिन असल में मैं क्लास में सबसे ज्यादा शैतानी करती थी। क्लॉस में कैमरे लगे हुए थे ताकि कोई भी एक्टिविटी हो तो प्रिंसिपल और उनके बेटे को इसकी भनक तुरंत लग जाए। मैं क्लास में शैतानी तो करती थी लेकिन ऐसे कि पकड़ में न आ पाऊं। दोस्तों के साथ मस्ती-मस्ती में कैमरे पर रुमाल फेंक देना उसके बाद जो शोर मचाना कि प्रिंसिपल तक आ जाती थी। खास बात यह थी कि हमारे क्लास में एकता बहुत थी। पढ़ाई में भले न हो लेकिन एक दूसरे का नाम कोई भी नाम लेकर शिकायत नहीं करता था। शोर सब मचाते थे और सजा भी सबको मिलती थी। प्रिंसिपल का सबको बेंच पर खड़ा कर देना और हम लोगों का अपने आप से बैठ जाना। यह वाक्या आज भी याद आता है तो चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
सन् 1935-40 केलगभग लेखिका का बचपन शिमला में अधिक दिन गुजरा। उन दिनों के शिमला के विषय में जानने का प्रयास करो।
लेखिका ने अपने पाठ में शिमला की जिस छवि को दर्शाने की कोशिश की है उसे समझकर इतना जरूर कहा जा सकता है कि वह बहुत सुंदर रहा होगा। आज के शिमला में फिर भी आधुनीकरण हो गया है लेकिन तब शिमला आधुनीकरण से दूर होगा। मन मोहक वादियां, दूर दूर तक हरियाली, पहाड़ों के पीछे से निकलता सूरज, रात में टिमटिमाते छोटे बल्ब वहां की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं।
लेखिका ने इस संस्मरण में सरवर के माध्यम से अपनी बात बताने की कोशिश की है, लेकिन सरवर का कोई परिचय नहीं दिया है। अनुमान लगाओ कि सरवर कौन हो सकता है?
अपने इस पाठ में लेखिका ने सरवर का दो बार जिक्र किया है हालांकि यह नहीं बताया है कि सरवर कौन है और क्या करता है। ऐसे में पाठ पढ़ने के बाद अनुमान से कहा जा सकता है कि सरवर पत्रकार या फिर जीवनी लिखने वाला व्यक्ति हो जिसे लेखिका अपने बचपन से जुड़ी बातें बता रही हों।
चार दिन, कुछ व्यक्ति, एक लीटर दूध आदि शब्दों के प्रयोग पर ध्यान दो तो पता चलेगा कि इनमें चार, कुछ और एक लीटर शब्द से संख्या या प्रमाण का आभास होता है, क्योंकि ये संख्यावाचक विशेषण हैं। इसमें भी चार दिन से निश्चित
संख्या का बोध होता है, इसलिए इसको निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं और कुछ व्यक्ति से अनिश्चित संख्या का बोध होने से इसे अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। इसी प्रकार एक लीटर दूध से परिमाण का बोध होता है इसलिए इसे प्रमाणवाचक विशेषण कहते हैं।
अब तुम नीचे लिखे वाक्यों को पढ़ो और उनके सामने विशेषण के भेदों को लिखो:
(क) मुझे दो दर्जन केले चाहिए।
(ख) दो किलो अनाज दे दो।
(ग) कुछ बच्चे आ रहे हैं।
(घ) सभी लोग हँस रहे थे।
(ड.) तुम्हारा नाम बहुत सुंदर है।
क्रियाओं से भी भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं। जैसे मारना से मार, काटना से काट, हारना से हार, सीखना से सीख, पलटना से पलट और हड़पना से हड़प आदि भाववाचक संज्ञाएँ बनी हैं। तुम भी इस संस्मरण से कुछ क्रियाओं को छाँटकर लिखो और उनसे भाववाचक संज्ञा बनाओ।
कपड़ों में मेरी दिलचस्पियाँ मेरी मौसी जानती थीं। इस वाक्य में रेखांकित शब्द ‘दिलचस्पियाँ’ और ‘मौसी’ संज्ञाओं की विशेषता बता रहे हैं, इसलिए ये सार्वनामिक विशेषण हैं। सर्वनाम कभी-कभी विशेषण का काम भी करते हैं। पाठ में से ऐसे पाँच उदाहरण छाँटकर लिखो।
पाठ से लिए गए 5 सार्वनामिक विशेषण
(1) अपने बचपन
(2) तुम्हारी दादी
(3) हमारे-तुम्हारे
(4) हमारा घर
(5) उन दिनों
अगर तुम्हें अपनी पोशाक बनाने को कहा जाए तो कैसी पोशाक बनाओगे और पोशाक बनाते समय किन बातों का ध्यान रखोगे? अपनी कल्पना से पोशाक का डिशाइन बनाओ।
फ्रॉक बनाते समय में सबसे पहले तो कपड़े का चुनाव करूंगी। इस बात का ध्यान रखेंगे कि गर्मी का मौसम है तो सूती कपड़ा ही लें। यह गर्मी में आरामदायक होगा।
फ्रॉक बनाते समय ध्यान रखने योग्य बातें-
(1) सबसे पहले जिसके साइज की फ्रॉक बनानी है उसका नाप लेंगे।
(2) जिस रंग का कपड़ा है उसी रंग की रील सिलाई मशीन में लगाएंगे।
(3) सिलाई करते समय काम आने वाली सभी चीजें जैसे- कैंची, इंची टेप, चॉक आदि को अपने पास रख लेंगे।
(4) अगर नाप का कपड़ा हो तो बहुत ही अच्छा है।
(5) नाप लेते वक्त सिलाई के लिए दबने वाले कपड़े को जोड़कर थोड़ा ज्यादा कपड़ा लेंगे।
(6) गले और आस्तीन का कपड़ा काटते वक्त ध्यानपूर्वक काम करें।
(7) कागज पर डिजाइन ड्रॉफ्ट कर लें तो अच्छा होगा।
तीन-तीन के समूह में अपने साथियों के साथ कपड़ों के नमूने इकट्ठा करके कक्षा में बताओ। इन नमूनों को छूकर देखो और अंतर महसूस करो। यह भी पता करो कि कौन-सा कपड़ा किस मौसम में पहनने के लिए अनुकूल है।
(1) कॉटन या फिर सूती कपड़ा- गर्मियों में सबसे ज्यादा आरामदायक कपड़ा होता है।
(2) रेशमी कपड़ा- हल्की गर्मी और हल्की ठंड में पहना जा सकता है।
(3) वूलन कपड़ा- केवल ठंड के समय पहना जा सकता है।
हथकरघा और मिल के कपड़े बनाने के तरीकों के बारे में पता करो। संभव हो तो किसी कपड़े के कारखाने में जाकर भी जानकारी इकट्ठी करो।
हथकरघा और मिल के कपड़ों में सबसे मुख्य अंतर होता है कि हथकरघा मतलब हाथ से बनाए जाने वाले कपड़े और मिल के कपड़े मतलब मशीन द्वारा बनाए जाने वाले कपड़े।
हथकरघा कपड़े की खासियत-
(1) हथकरघा कपड़े हाथ से बनाए जाते हैं।
(2) इन कपड़ों में ज्यादातर हाथ से कारीगरी की जाती है।
(3) इन कपड़ों को बनाने में काफी मेहनत लगती है क्योंकि कढ़ाई से लेकर सिलाई तक सारा काम खुद किया जाता है।
(4) सारा काम हाथ से किया जाता है इसलिए इनकी कीमत ज्यादा होती है।
मशीन के कपड़ों की खासियत-
(1) इन कपड़ों को बनाने की सारी प्रक्रिया मशीन द्वारा की जाती है।
(2) कपड़ों की कटिंग से लेकर फिनिशिंग तक सारा काम मशीन करती है।
हमारे देश में तरह-तरह के भोजन, तरह-तरह की पोशाकें प्रचलित हैं। कक्षा के बच्चे और शिक्षक इनके विविध रूपों के बारे में बातचीत करें।
हमारा देश अनेकता में एकता वाला देश है। भारत में कुल 29 राज्य हैं और सभी राज्यों की बोली-भाषा, पहनावा, रहन-सहन एक दूसरे से एकदम अलग है। गुजरात में गुजराती भाषा बोली जाती है तो वहां के पहनावे में घाघरा चोली अहम है। खाने में गुजराती खाना जैसे –ढोकला, खाखरा प्रचलित है। वहीं उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो वहां पर हिंदी भाषा का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें भी आपको भिन्नता देखने को मिलेगी। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की बात करें तो यह अदब की नगरी के नाम से मशहूर है। दिल्ली में जहां तू-तड़ाक बोली बोली जाती है तो वहीं लखनऊ में अवधी भाषा का प्रचलन है। यहां पर लोग अपने आप को भी हम कहकर बुलाते हैं। छोटा हो या फिर बड़ा सभी को आप कहकर बात करते हैं। इस तरह से 29 राज्य में अलग-अलग वेष-भूषा और बोली देखेने को मिलेगी।