निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है?
मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती करते हुए अनेक भक्तों के उदहारण दिए हैं जिनकी श्रीकृष्ण ने संकट के समय रक्षा की एवं उनके दुखों को दूर किया| वह कहती हैं कि- हे प्रभु! जिस प्रकार आपने द्रोपदी का वस्त्र बढ़ाकर भरी सभा में उसकी लाज रखी, प्रह्लाद को बचाने के लिए जिस प्रकार नरसिंह का रुप धारण करके हिरण्यकश्यप को मारा था। मगरमच्छ ने जब हाथी को अपने मुँह में ले लिया तो उसे बचाया और पीड़ा भी हरी। हे प्रभु! इसी तरह मैं भी पीड़ित हूँ , मेरी भी पीड़ा हरो। मीरा इन सब दृष्टांतों के माध्यम से अपनी पीड़ा हरने के साथ-साथ सांसारिक बंधनों से मुक्ति के लिए भी विनती करती हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती हैं? स्पष्ट कीजिए।
मीरा को कुछ भी अच्छा नहीं लगता। मीरा का हृदय सदा कृष्ण के पास रहना चाहता है। उसे पाने के लिए इतना अधीर है कि वह उनकी सेविका बनना चाहती हैं। इसी कारण वह श्याम की चाकर बनकर रहना चाहती हैं जिससे हर समय अपने प्रिये को निहार सके, दर्शन कर सके और उनके निकट रह सके। मीरा श्री कृष्ण को सर्वस्व समर्पित कर चुकी हैं इसलिए वे केवल कृष्ण के लिए ही कार्य करना चाहती हैं। इस प्रकार दासी के रूप में दर्शन, नाम स्मरण और भाव-भक्ति रूपी जागीर प्राप्त कर अपना जीवन सफल बनाना चाहती हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है?
मीराबाई ने श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का अलौकिक वर्णन किया हैं। मीरा ने कृष्ण के रुप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि उनके सिर पर मोर मुकुट तथा शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हो रहे हैं और गले में वैजयंती फूलों की माला पहनी है, मुरली की मधुर तान से सबको मोहित करते हुए वे गायें चराते हैं और बहुत सुंदर लगते हैं। इस प्रकार इस रूप में भगवान श्री कृष्ण का बहुत ही मनमोहक रूप उभरता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
मीराबाई की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
मीराबाई की भाषा सरल, सहज और आम बोलचाल की भाषा है, जिसमे राजस्थानी, ब्रज और गुजराती का मिश्रण दिखाई देता है। भाषा में कोमलता, मधुरता और सरसता के गुण विद्यमान हैं। पदावली कोमल, भावानुकूल व प्रवाहमयी है, पदों में भक्तिरस है तथा अनुप्रास, दृष्टांत, पुनरुक्ति प्रकाश, रुपक आदि अलंकारो का सहज प्रयोग दिखाई देता हैं। भक्ति भाव के कारण शांत रस प्रमुख है तथा प्रसाद गुण की भावाभिव्यक्ति हुए है। सभी पद गेयात्मक हैं, लय युक्त एवं तुकांत हैं। प्रत्येक पद भक्ति की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
वे श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तैयार हैं?
मीरा बाई ने श्री कृष्ण को अपने प्रियतम के रूप में देखा है। वे बार-बार श्री कृष्ण का दर्शन करना चाहती है। मीरा कृष्ण को पाने के लिए अनेकों कार्य करने को तैयार हैं। कुसुम्बी रंग की साड़ी पहनकर आधी रात को कृष्ण से मिलकर उनके दर्शन करना चाहती हैं। वृंदावन की गलियों में उनकी लीलाओं का गुणगान करना चाहती हैं, ऊँचे-ऊँचे महलों में खिड़कियाँ बनवाना चाहती हैं ताकि आसानी से कृष्ण के दर्शन कर सकें। मीरा के मन में अपने आराध्य से मिलते के लिए के लिए व्याकुलता है इसलिए वे उन्हें पाने के लिए हर संभव प्रयास करने को तत्पर हैं।
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर ।
भाव पक्ष- इस पद में मीरा ने कृष्ण के भक्तों पर कृपा दृष्टि रखने वाले रुप का वर्णन किया है। वे कहती हैं कि हे हरि! जिस प्रकार आपने अपने भक्तजनों की पीड़ा हरी है, मेरी भी पीड़ा उसी प्रकार दूर करो। जिस प्रकार द्रोपदी का चीर बढ़ाकर, प्रह्लाद के लिए नरसिंह रुप धारण कर आपने रक्षा की, उसी प्रकार मेरी भी रक्षा करो। इसकी भाषा ब्रज मिश्रित राजस्थानी है। ध्वनि का बारंबार प्रयोग हुआ है इसीलिये इसमें श्लेष अलंकार है|
कला पक्ष- राजस्थानी, गुजराती व ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है तथा भाषा अत्यंत सहज व सुबोध है, शब्द चयन भावानुकूल है। पद में माधुर्य भाव है, भाषा में प्रवाहमयता और सरसता का गुण विद्यमान है। दैव्य भाव की भक्ति है तथा शांत रस की प्रधानता है। दृष्टांत अलंकार का प्रयोग किया गया है।
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
बूढ़तो गजराज राखो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।
भाव पक्ष- इन पंक्तियों में मीरा ने कृष्ण से अपने दुख दूर करने की प्रार्थना की है। हे भक्त वत्सल जैसे डूबते गजराज को बचाया और उसकी रक्षा की वैसे ही आपकी दासी मीरा प्रार्थना करती है कि उसकी पीड़ा दूर करो। इसमें दास्य भक्तिरस है। भाषा ब्रज मिश्रित राजस्थानी है। अनुप्रास अलंकार है। भाषा सरल तथा सहज है।
कला पक्ष- इस पंक्तियों में राजस्थानी, गुजराती व ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है। भाषा अत्यंत सहस व सुबोध है। तत्सम और तद्भव शब्दों का सुंदर मिश्रण है। दास्यभाव तथा शांत रस की प्रधानता है। भाषा में प्रभावात्मकता और संगीतात्मकता का गुण विद्यमान है। सरल शब्दों में भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति हुई है तथा दृष्टांत अलंकार का प्रयोग किया गया है। ‘काटी कुण्जर’ में अनुप्रास अलंकार है।
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
चाकरी में दसरण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।
भाव पक्ष- इसमें मीरा कृष्ण की चाकरी करने के लिए तैयार है क्योंकि कृष्ण की सेविका बनकर वे प्रतिदिन उनके दर्शन प्राप्त कर सकेंगी और स्मरण रूपी धन को प्राप्त कर पाएँगी तथा इस भक्ति रूपी, साम्राज्य को प्राप्त करके मीराबाई तीनों कामनाएँ बड़ी सरलता से प्राप्त कर लेंगी। अर्थात् प्रभु के दर्शन, नाम स्मरण रूपी खरची और नाम भक्ति रूपी जागीर तीनों ही प्राप्त कर लेंगी।
कला पक्ष- इसमें दास्य भाव दर्शाया गया है। भाषा ब्रज मिश्रित राजस्थानी है। अनुप्रास अलंकार, रुपक अलंकार और कुछ तुकांत शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। भाषा में लयात्मकता तथा संगीतात्मकता है। ‘भाव भगती’ में अनुप्रास अलंकार है।
उदाहरण के आधार पर पाठ में निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए-
उदाहरण- भीर- पीड़ा/कष्ट/दुख; री- की
चीर - वस्त्र/कपड़ा
बूढ़ता - डूबता
धर्यो - धारण किया
लगास्यूँ - लगाऊँगी
कुण्जर - हाथी
घणा - बहुत अधिक
बिन्दरावन - वृंदावन
सरसी - अच्छी
रहस्यूँ - रहना
हिवड़ा - हृदय/दिल
राखो - रखना
कुसुम्बी - लाल रंग की