निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?
जिस मनुष्य ने इस संसार में जन्म लिया है, उसकी मृत्यु तय है क्योंकि यह संसार नश्वर है। जो व्यक्ति दूसरों के हित को सर्वापरि मानता हैं तथा जिसमे मानवता, दया, करुणा, साहनुभूति आदि गुण होते हैं, जो मृत्यु के बाद भी औरों के द्वारा सम्मान की दृष्टि से हजारों सालों तक याद किया जाए, उसके लिए आँसू बहाएँ, जो दूसरे लोगों की यादों में बसा रहे उसी की मृत्यु को कवि ने सुमृत्यु कहा है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?
प्रेम, भाईचारा और उदारता ही उदार व्यक्ति की पहचान है। वह स्वयं हानि उठाकर भी दूसरों का हित करता है। उदार व्यक्ति इस असीम संसार समाज व लोगों के प्रति आत्मीयता का भाव रखता है। सभी प्राणियों के साथ अपनेपन का व्यवहार करता है। वह नित्य परोपकार के कार्य करता है। जिसके हृदय में दूसरों के प्रति सहानुभूति और करुणा के भाव होते है वही उदार व्यक्ति कहलाता हैं। उदार व्यक्ति दूसरों की सहायता के लिए अपने तन, मन और धन को किसी भी क्षण त्याग सकता है। जो दूसरों की प्राणरक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर रहता है। वह जाति, देश, रंग-रूप आदि का भेद किए बिना सभी को अपना मानता है। वह स्वयं हानि उठाकर भी दूसरों का हित करता है। इस प्रकार जो आदमी पूरे संसार में आत्मीयता और भाईचारा का संचार करता है उसी व्यक्ति को उदार माना जा सकता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता के लिए क्या संदेश दिया है?’
प्रस्तुत कविता में कवि ने दधीचि, कर्ण आदि जैसे महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर संपूर्ण संसार के मनुष्य को मनुष्यता, त्याग और बलिदान का संदेश दिया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार दधीचि ऋषि ने अपनी अस्थियों तक का दान कर वृत्रासुर से देवताओं की रक्षा करने में सफल हुए थे। इसी प्रकार कर्ण ने अपने जीवन-रक्षक कवच-कुंडल को अपने शरीर से अलग करके दान में दे दिया था। रंतिदेव नामक दानी राजा ने भूख से व्याकुल ब्राह्मण को अपने हिस्से का भोजन दे दिया था। राजा शिवि ने कबूतर के प्राणों की रक्षा हेतु अपने शरीर का मांस काटकर दे दिया। ये कथाएँ हमें परोपकार का संदेश देती हैं। ऐसे महान लोगों के त्याग के कारण ही मनुष्य जाति का कल्याण संभव हो सकता है। कवि के अनुसार मनुष्य को इस नश्वर शरीर के लिए मोह का त्याग कर देना चाहिए। उसे केवल परोपकार करना चाहिए। वास्तव में सच्चा मनुष्य वही होता है जो दूसरे मनुष्य के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दे। अपने लिए तो सभी जीते हैं पर जो समाज एवं समाज में रहने वाले जरुरतमंदों के लिए जीता और मरता है उसका जीवन धन्य हो जाता है। दूसरे का भला करने में चाहे अपना नुकसान ही क्यों न हो, लेकिन हमेशा दूसरे का भला करना चाहिए क्योंकि दूसरों के भले में हमारा भी भला होता है|
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व-रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?
कवि ने निम्न पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए। रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में| इन पंक्तियों में कवि कहने की कोशिश कर रहा है कि अगर ईश्वर ने सुख-साधन, धन संपत्ति दिए हैं तो हमें उन पर गर्व नहीं करना चाहिए, इस संसार में कोई अनाथ नहीं है क्योंकि ईश्वर सबके नाथ हैं। इस कथन के माध्यम से कवि परोपकार का सन्देश देना चाहते हैं|
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
“मनुष्य मात्र बंधु है” से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
कवि के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में मानवता के रूप में ईश्वर बसे है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य में ईश्वर का अंश है। प्रत्येक मनुष्य उस परमपिता भगवान की संतान हैं तथा एक पिता की संतान होने के नाते सभी मनुष्य एक दूसरे के भाई-बहन के समान हैं। इसलिए हमें छोटे-बड़े, ऊँच-नीच, रंग-रूप, जाति, अमीर-गरीब आदि के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। मनुष्यों की सहायता स्वयं मनुष्य ही करता है। मनुष्यों ने स्वयं ही जाति-पाँति, छुआछूत जैसी असमानताएँ समाज में पैदा की हैं| अतः हमें भेदभावों को भुलाकर प्रेम, भाईचारे और उदारता से रहना चाहिए। जिस प्रकार हम अपने भाई-बंधुओं का अहित नहीं करते, ठीक उसी तरह हमें विश्व में किसी का अहित न कर समाज के अन्य लोगों को भाई समान मानना चाहिए और एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए। अहंकार वृत्ति का परित्याग करना चाहिए। अगर ईश्वर ने सुख-साधन, धन संपत्ति दिए हैं तो हमें उन पर गर्व नहीं करना चाहिए।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?
कवि ने अपने कविता से संपूर्ण संसार को एक जुट होकर चलने की प्रेरणा इसलिए दी है क्योंकि इससे आपसी मेल-भाव, प्रेम, भाईचारा तथा उदारता बढ़ती है तथा हमारे सभी काम सफल व सरलता से हो जाते हैं। यदि हम सभी एक होकर चलेंगे तो जीवन मार्ग में आने वाली हर विघ्न-बाधा पर आसानी से विजय पा लेंगे। जब सबके द्वारा एक साथ प्रयास किया जाता है तो वह जरूर सार्थक सिद्ध होता है। सबके हित में ही हर एक का हित निहित होता है। आपस में एक-दूसरे का सहारा बनकर आगे बढ़ने से प्रेम, करुणा व सहानुभूति के संबंध बनते हैं तथा परस्पर शत्रुता एवं भिन्नता दूर होती है। इससे मनुष्यता को बल मिलता है। कवि के अनुसार यदि हम एक-दूसरे का साथ देंगे तो, हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकेंगे।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।
कवि कहते है कि व्यक्ति को सदैव परोपकार तथा उदारता दिखाते हुए संपूर्ण संसार को प्रेम तथा करुणा से एवं मानवता / मनुष्यता को सर्वोपरि मानते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए। स्वार्थपूर्ण जीवन व्यतीत करना पशुप्रवृत्ति होती है जो मनुष्य का स्वभाव नहीं होता है। मनुष्य को अपने अंदर की उदारता, त्यागशीलता, भाईचारा जैसे गुणों को विकसित करना चाहिए ताकि संसार का सहित हो। दूसरों की भलाई के लिए यदि सर्वस्व त्याग करना पड़े तो उसके लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए एवं अहंकार वृत्ति का परित्याग करके अपने अंदर की घृणा तथा द्वेष को समाप्त करना चाहिए। उसे थोड़े तुच्छ सुख-साधन, धन संपत्ति पर घमंड नहीं करना चाहिए। निरंतर कर्मशील रहते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। मनुष्य को ऐसा जीवन व्यतीत करना चाहिए कि लोग उसकी मृत्यु के पश्चात भी उसके सद्गुणों, त्याग, बलिदान को हजारों सालों तक याद करें। वह यश रूपी शरीर से सदैव अमर बना रहे। मनुष्य को केवल अपने लिए नहीं अपितु संपूर्ण संसार के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर रहना चाहिए।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
मानव जीवन उस ईश्वर की देन है क्योंकि मनुष्य के मन में प्रेम, त्याग, बलिदान, परोपकार, उदारता का भाव होता है जिससे इस संसार का नवनिर्माण तथा कल्याण हो सके। प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि मानवीय एकता, सहानुभूति, सद्भाव, उदारता और करुणा का संदेश देना चाहता है। वह चाहता है कि मनुष्य समस्त संसार में अपनत्व की अनुभूति करे और वह दीन-दुखियों एवं जरूरतमंदों के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहे। वह पौराणिक कथाओं के माध्यम से विभिन्न महापुरुषों जैसे दधीचि, कर्ण, रंतिदेव के अतुलनीय त्याग से प्रेरणा ले। ऐसे सत्कर्म करे जिससे मृत्यु उपरांत भी लोग उसे याद करें। उसका यश रूपी शरीर सदैव जीवित रहे। अपने से पहले दूसरों की चिंता करते हुए अपनी शक्ति, बुद्धि और वैचारिक शक्ति का सदुपयोग करना मानव का कर्तव्य है। मनुष्य में मनुष्यता ऐसी हो जिसे लोग उसकी मृत्यु के पश्चात भी उसके सद्गुणों, त्याग, बलिदान के माध्यम से हजारों सालों तक याद करें। वह यश रूपी शरीर से सदैव मनुष्यता के कारण अमर बना रहे। निःस्वार्थ भाव से जीवन जीना, दूसरों के काम आना तथा स्वयं ऊँचा उठने के साथ-साथ दूसरों को भी ऊँचा उठाना ही मनुष्यता का वास्तविक अर्थ है।
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही_
वशीकृता सदैव है बनी हुर्ह स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
कवि कहता है कि जिस मनुष्य के हृदय में दूसरे प्राणियों के लिए सहानुभूति का भाव है वह धनी है। दूसरों के प्रति सहानुभूति ही सबसे बड़ी पूंजी है। जो मनुष्य दूसरों के प्रति सहानुभूति रखता है वह सभी को वश में कर सकता है। यह संपूर्ण पृथ्वी अपने आप उसके वश में हो जाती है। कभी महात्मा बुद्ध की करुणापूर्ण व्यवहार के विषय में कहता है कि उन्होंने प्राणी के प्रति करुणा का भाव होने के कारण ही तत्कालीन पारंपरिक मान्यताओं का विरोध किया था। उनके इस कार्य से सारा संसार उनके सामने विनम्र हो कर झुक गया। कभी पुनः कहता है कि जो मनुष्य दूसरों का भला करता है वही उदार हृदय वाला, है सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर देता है।
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ है।
कवि कहता है कि मनुष्य को धन-संपत्ति के घमंड में अंधा होकर सब कुछ भूल नहीं जाना चाहिए। धन-संपत्ति तो तुच्छ वस्तु है इसका कभी अभिमान नहीं करना चाहिए। अपने आप को धन का स्वामी समझकर गमन करना बेकार है। मनुष्य को सदा याद रखना चाहिए कि संसार में कोई भी अनाथ नहीं है ईश्वर सबके साथ है। ईश्वर अत्यंत दयालु और गरीबों के दोस्त हैं। वह सदा आपकी सहायता करते हैं। जो मनुष्य स्वयं को गरीब समझकर सदा परेशान रहते हैं और उस ईश्वर पर विश्वास नहीं करते वह बहुत दुर्भाग्यशाली होते हैं। कवि पुनः कहता है कि इस संसार में सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरों की सहायता के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दें।
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़े उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
कवि कहता है कि सभी मनुष्य एक होकर इच्छित मार्ग पर खुशी खुशी आगे बढ़ते रहें। रास्ते में आने वाली अनेक कठिनाइयों और बाधाओं को सब मिलकर दूर करें। एक होकर चलते हुए मेलजोल में कमी नहीं आनी चाहिए , साथ ही विचारों में अनेकता न बढ़े। सभी मनुष्य तर्क रहित होकर एक ही मार्ग पर सावधानीपूर्वक चलते रहे। उन में किसी प्रकार का मनमुटाव पैदा ना हो। कवि का मानना है कि जो दूसरों की भलाई करते हैं उनकी भलाई अपने आप हो जाती है। वास्तव में सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरों की भलाई के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दे।