निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक हैं?
छायावाद के चार स्तंभ जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और महादेवी वर्मा माने जाते हैं। इनमें महादेवी वर्मा का अपना एक अलग स्थान है। उनकी रचनाओं में हम राग-विराग का स्वर स्पष्ट रूप में प्रस्फुटित पाते हैं। उनकी कविताओं में हम रागात्मकता भी छायावादी या यूं कहें कुछ-कुछ दार्शनिक अंदाज में पाते हैं। इनकी प्रस्तुत ‘कविता ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ में दीपक मनुष्य की ईश्वर के प्रति आस्था और आत्मा का प्रतीक है। साथ ही प्रियतम उसके आराध्य ईश्वर का प्रतीक है|
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
क्या मीराबाई और आधुनिक मीरा ‘महादेवी वर्मा’ इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं, उनमें आपको कुछ समानता या अंतर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए।
भक्तिकाल में कवयित्री मीराबाई ने अपने आराध्य देव से मिलने हेतु अपने घर-बार का त्याग कर कविता के माध्यम से उन्हें पाने की उक्ति अपनाई। उन्होंने इस हेतु सामाजिक आडंबर और लोक-लाज की परवाह न करते हुए अपने संपूर्ण जीवन को प्रभु को प्रेम में समर्पित कर दिया। उनकी रचनाओं में हम ईश्वर के प्रति गजब का माधुर्य भाव पाते हैं। इसका एक उदाहरण हम उनकी कविता ‘मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो ना कोई--------में आसानीपूर्वक पाते हैं।
वहीं छायावादी कवियत्री महादेवी वर्मा की अपने आराध्य देव को पाने की युक्ति थोड़ी दार्शनिक है। उन्होंने अविवाहित रहते हुए अपने जीवन को हिंदी साहित्य को समर्पित कर दिया। उन्होंने ईश्वर के प्रति अपने प्रेम को मीराबाई की तरह खुलकर नहीं कहा। उनकी प्रस्तुत कविता ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ में उनका ईश्वर से एकाकार हो जाने की इच्छा को हम मीराबाई की इच्छा से अलग नहीं मान सकते है। हाँ कहने के अंदाज में अवश्य थोड़ा अंतर है। दोनों में ही मूल अंतर यह है कि महादेवी अपने आराध्य को निर्गुण मानती हैं जबकि मीरा उनकी सगुण उपासक हैं|
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों?
कवयित्री दीपक को प्रभु भक्ति में निरंतर जलते रहने का आग्रह करती हैं अर्थात वे कह रहीं है कि उनकी ईश्वर में आस्था निरंतर बनी रहे| वास्तव में कवयित्री दीपक रुपी मन को अपने द्वारा परोपकार रूपी कार्य कर के उसे ईश्वर भक्ति के लायक बना देना चाहती है। वह अपनी अंतरात्मा को इस प्रकार शुद्ध कर लेना चाहती है कि उसमें प्रियतम ईश्वर का वास सुनिश्चित किया जा सके। कवयित्री ईश्वर भक्ति में लीन होकर उनसे एकाकार होना चाहती है इसीलिये वे दीपक से ऐसा आग्रह कर रही है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
‘विश्व-शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता हैं?
कवयित्री ने विश्व की तुलना शलभ या पतंगों से की है। यहां हम कवयित्री के स्वर में विश्वरूपी पतंगों का ईश्वर से एकाकार होने हेतु जल जाने की इच्छा पाते हैं। यहाँ विष-शलभ दीपक के समान स्वयं को जलाकर सम्पूर्ण संसार को प्रकाशमय करना चाहता है और इस लोभी,मतलबी, अज्ञानी, संसार को परोपकार की भावना से अवगत कराना चाहता है| जिस प्रकार दीपक स्वयं को जलाकर जगत को प्रकशित करता है उसी प्रकार विश्व-शलभ अपने आप को जलाकर विश्व को परोपकार की भावना से परिचित कराना चाहता है|
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
आपकी दृष्टि में ‘मधुर-मधुर’ मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है?
(क) शब्दों की आवृति पर।
(ख) सफल बिंब अंकन पर।
मेरी दृष्टि में ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य शब्दों की आवृति और सफल बिंब अंकन दोनों पर निर्भर करता है। हम कविता में भिन्न-भिन्न स्थानों पर मधुर-मधुर,पुलक-पुलक,सिहर-सिहर,युग-युग आदि शब्दों की आवृति पाते हैं। वास्तव में शब्दों की ये आवृतियां संपूर्ण कविता को पुष्ट करती हैं। साथ ही साथ ये शब्दयुग्म कविता के अर्थ को और अधिक स्पष्ट रूप में हमारे सामने रखते हैं। हम कविता की पंक्तियों के अंत से पहले इसमें विपुल,धुल, मृदुल आदि बिंबों को लगा हुआ भी पाते हैं। वास्तव में ये बिंब पंक्तियों के अंदर एक विशेष अर्थ प्रदान करने की क्षमता रखते हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही हैं?
कवयित्री प्रस्तुत कविता में अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही है। साथ ही उनके राह को आलोकित करना कवयित्री आसान नहीं मान रही हैं। उनका इस प्रयोजन हेतु अपने मन रूपी दीपक को जलाना अनिवार्य प्रतीत हो रहा है। सबसे प्रमुख बात अपने आप को इस हेतु तैयार करने को लेकर कवयित्री प्रयत्त्नशील भी दिख रही हैं। कवियत्री अपने प्रियतम का पथ इसलिए आलोकित अथवा प्रकाशित करना चाहती हैं ताकि वे ईश्वर तक पहुँच सके क्योंकि अगर रास्ता अंधकारमय होगा तो वे अपने लक्ष्य तक कैसे पहुँचेगी इसीलिये वे अपने प्रियतम टाक पहुँचने के पथ को प्रकाशित करना चाहती हैं|
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?
कवयित्री आकाश के तारों की तुलना संसार के मनुष्यों से कर रही हैं। उनका मानना है कि बिना तेल के जलते तारों के समान मनुष्य भी अहंकार वश बिना स्नेह रूपी तेल के जल रहे हैं। ये लोग आपस में ईर्ष्या-द्वेष की अग्नि में जल रहे हैं। इनमें आपसी प्रेम का घोर अभाव है। ये आकाश के तारों के समान स्नेहहीन हैं। जिस प्रकार तारे स्नेह रूपी तेल के बिना भी निरंतर जलते रहते हैं उसी प्रकार संसार में मनुष्य भी आपस में स्नेह के बगैर ईर्ष्या और द्वेष की अग्नि में जल रहे हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा हैं?
यहाँ कवयित्री पतंगों की तुलना संसार के मनुष्यों से कर रही हैं। कवयित्री का मानना है कि संसार के लोगों का क्षोभ अपने मन को दीपक की तरह नहीं जला पाने को लेकर है। संसार के कुछ लोग अपने अहंकार के कारण अपने मन रूपी दीपक को ईश्वर की भक्ति में जला नहीं पाये हैं। ये पतंगे इस हेतु पश्चाताप भी कर रहे हैं कि वो अपनी आस्था को ईश्वर भक्ति के प्रति अक्षुण्ण या अपरिवर्तित क्यों नहीं रख पाये। संसार रूपी पतंगा प्रभु भक्ति के अवसर को गँवा देने पर पश्चाताप कर रहा है और इस प्रकार अपना सिर धुन-धुन कर अपना क्षोभ व्यक्त कर रहा है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से मधुर-मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
कवयित्री ने मन रूपी दीपक को हर बार अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग ढंग से जलने को कहा है। ईश्वर से एकाकार होंने की परिस्थिति में उन्होंने इस दीपक को मधुर-मधुर रूप में जलना ताकि वह अपने इस उद्देश्य की पूर्ति कर सके। उन्होंने पूजा के धूप की तरह अपने आप को जला कर सुगंध फैलाने, मोम की तरह गलने और समुद्र की तरह अपार प्रकाश फैलाने की परिस्थिति में दीपक को पुलक-पुलक कर जलने को कहा है। संसार के लोग जब अहंकार वश प्रभु भक्ति से वंचित हो जाते हैं तब कवयित्री का मन रूपी दीपक अपनी ज्योति उन वंचितों को देने हेतु सिहर-सिहर कर जलता है। इसी प्रकार से कवियत्री दीपक को अलग-अलग परिस्थिति में अलग-अलग तरीके से परिस्थिति के अनुसार जलने के लिए कहती है|
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस-विहँस मेरे दीपक जल!
(क) ‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है?
(ख) सागर को ‘जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?
(ग) बादलों की क्या विशेषता बताई गई है?
(घ) कवयित्री दीपक को ‘विहँस-विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?
(क) स्नेहहीन दीपक का तात्पर्य बिना तेल के दीपक से है अर्थात संसार के प्रभु भक्ति से हीन लोगों से है।
(ख) कवियत्री ने सागर की तुलना संसार से की है| जिस प्रकार से अगर में बहुतस सारा जल होता है है उसी प्रकार से संसार की सांसारिकता की तुलना कवियत्री ने सागर के जल से की है| सांसारिकता से युक्त संसार किसी मतलब का नहीं है जैसे की समुद्र का जल किसी मतलब का नहीं वहीँ बादल बरसते हैं और संसार को उपयोग युक्त जल प्रदान करते हैं और इसी को देखकर सागर का ह्रदय जलता है| इसी प्रकार से सांसारिकता के मोह में फंसे लोग लोभ, मोह द्वेष, तृष्णा के कारण जलते रहते हैं|
(ग) बादलों का प्रकृति में एक महत्वपूर्ण स्थान है वे बारिश करके संसार को हरा-भरा बनाते हैं, बिजली की चमक से संसार को आलोकित करते हैं| बादलों की इसी परोपकारी विशेषता के बारे में कवियत्री ने बताया है|
(घ) दीपक ईश्वर के प्रति अपनी आस्था और प्रसन्नता को लेकर संतुष्ट और प्रसन्न है और इसी कारण से कवियत्री दीपक को बिहँस-बिहँस कर हंसने के लिए कहती है ताकि वह अपनी प्रसन्नता को पूरे संसार में फैला सके|
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये-
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल!
कवयित्री यहां हमसे हमारे जीवन के संपूर्ण अस्तित्व की अहंकार रूपी एक-एक इकाई को ईश्वर से एकाकार होने हेतु गलाने का आह्वान करती हैं। जिस प्रकार कि कोई विद्यार्थी अपनी आने वाली परीक्षा में सफल होने के लिए अपना शरीर परिश्रम से गला डालता है और उसकी यह मेहनत प्रकाश के बङे पुंज की तरह बाहर आकर उसे फल प्रदान करती है। यहां भी कवयित्री के कहने का भाव ठीक वैसा ही है। कवयित्री कहती हैं कि हम अपने जीवन के अस्तित्व के एक-एक अणु को गलाकर अपने आप में समुद्र के समान अपार प्रकाश उत्पन्न करें जो कि ईश्वर का मार्ग आलोकित करे और हम उनमें एकाकार हो पायें।
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये-
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
यहां कवयित्री अपने मन रूपी दीपक का प्रभु भक्ति को पाने हेतु उसे प्रतिदिन,प्रतिक्षण और प्रतिपल जलते रहने का आह्वान करती हैं। उनका मानना है कि प्रभु के मार्ग को प्रकाशित करने हेतु मन रुपी दीपक का निरंतर यानि बिना किसी बाधा के जलते रहना आवश्यक है। ऐसा होने पर ही यानि कवयित्री के मन का दीपक की तरह प्रतिपल जलते रहने से ही प्रियतम यानि ईश्वर का मार्ग आलोकित हो पायेगा।
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये-
मृदुल मोम-सा घुल रे मृदु तन!
यहाँ कवयित्री अपने तन-मन को मोम की तरह घुलने या गलाने का आह्वान करती हैं। ऐसा वे प्रभु भक्ति को पाने के लिए आवश्यक मानती हैं। उनका मानना है कि अपने अहंकार को मोम की तरह गला देने पर ही हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। यह अहंकार ईश्वर को प्राप्त करने में हमारा बाधक बनता है। इसिलिए कवयित्री इसे गला देने का प्रभु से आह्वान करती हैं।
कविता में जब एक शब्द बार-बार आता है और वह योजक चिह्न द्वारा जुड़ा होता है, तो वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है; जैसे- पुलक-पुलक। इसी प्रकार के कुछ और शब्द खोजिए जिनमें यह अलंकार हो।
इसी प्रकार के अन्य शब्द हैं-
1. बिखर-बिखर
2. सहज-सहज
3. सरल-सरल
4. मदिर-मदिर