इफ्फन टोपी शुक्ला की कहानी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा किस तरह से है?
इफ्फन टोपी शुक्ला कहानी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि कथा नायक टोपी शुक्ला की पहली दोस्ती इफ्फन के साथ हुई थी। इसलिए इफ्फन और टोपी शुक्ला गहरे दोस्त थे। एक दूसरे के बिना अधूरे थे परंतु दोनों की आत्मा प्यार की प्यासी थी। टोपी शुक्ला व इफ़्फ़न विपरीत धर्मों के होते हुए भी अटूट व अभिन्न मित्र थे। इफ्फ़न के परिवार मे टोपी शुक्ला को एक अपनेपन का अहसास हुआ। उसे अपने परिवार से अधिक प्यार इफ्फ़न के यहाँ मिला था। इफ्फन तो अपने मन की बात दादी को या टोपी को कहकर हल्का कर देता था परंतु टोपी के लिए इफ्फन और उसकी दादी के अलावा कोई नहीं था। दोनों की घरेलू परंपराएँ अलग-अलग होने पर भी कोई ताकत उन्हें मिलने से नहीं रोक पाई थी। इफ्फ़न के बिना टोपी शुक्ला की कहानी में अधूरापन लगेगा और उसे समझा नहीं जा सकेगा। अतः कहा जा सकता है इफ्फ़न टोपी शुक्ला की कहानी का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इफ्फ़न की दादी अपने पीहर क्यों जाना चाहती थी?
इफ्फ़न की दादी पीहर इसलिए जाना चाहती थीं क्योकि वे मौलवी की बेटी न होकर ज़मीदार की बेटी थी इसलिए उनके पीहर में घी, दूध व दही की भरमार थी। उन्होंने शादी से पहले पीहर में खूब दूध-दही-घी खाया था। बाद में वे लखनऊ के मौलवी से ब्याही गई थीं जहाँ उन्हें अपनी मौलवी पति के नियंत्रण में रहना पड़ता था। इसलिए लखनऊ मे आते ही उन्हे मौलविन बन जाना पड़ा। जिस कारण वहाँ उनकी आत्मा सदा बेचैन रहती थी। पीहर जाने पर वे स्वतंत्र अनुभव करती थीं और जी भर कर दूध-दही खाती थीं। जब वह मरने लगी तो उसके बेटे ने करबला या नजफ़ ले जाने के बारे मे पूछा। इस पर वह बिगड़ गई। उन्होने सोचा कि उसके बेटे से उसकी लाश ही नही संभाली जा सकतीं। उसे अपने घर की छोटी-छोटी और मीठी-मीठी चीजें याद आईं। इसी कारण उनका मन हर समय पीहर जाने को तरसता था।
इफ्फ़न की दादी अपने बेटे की शादी मे गााने -बजाने की इच्छा पूरी क्यो नही कर पाई?
इफ्फ़न की दादी हिंदू-मुस्लिम में कोई अंतर नही समझती थी। किंतु उन्हें अपने बेटे की शादी मुस्लिम परंपरा के अनुसार करनी पड़ीं। उनकी अपने बेटे सैय्यद मुरतुजा हुसैन की शादी में गाने-बजाने की इच्छा थी परंतु उनके पति कट्टर मौलवी थे जो हिंदुओं के हाथ का पका हुआ तक नहीं खाते थे। बेटे की शादी में दादी का दिल गाने-बजाने को लेकर खूब फड़फड़ाया किंतु मौलवियों के घर में गाने-बजाने की पाबंदी होती थी। बेटे की शादी के बाद मौलवी साहब की मृत्यु हो गई। इफ्फ़न बाद में पैदा हुआ था जिस कारण दादी को अब कोई डर नहीं रह गया था और उसने इफ्फ़न की छठी पर खूब नाच-गाकर जश्न मनाया था। परंतु अपने बेटे की शादी में नाच-गाकर जश्न नहीं मना पाई। इसलिए उनकी इच्छा मन में ही दबकर रह गई।
“अम्मी" शब्द पर टोपी के घरवालों की क्या प्रतिक्रिया हुई?
टोपी शुक्ला के घरवाले आधुनिक होने के साथ-साथ कट्टर हिंदू भी थे। अम्मी शब्द मुसलमानों के घर में इस्तेमाल होता है किंतु जब टोपी शुक्ला के मुख से अम्मी शब्द सुना गया तब घरवालों के होश उड़ गए। सबकी नजर टोपी पर पड़ गई क्योंकि यह उर्दू का शब्द था और टोपी हिंदू था। अम्मी शब्द पर टोपी के घरवालों की विपरीत प्रतिक्रिया हुई। उन्होने इस शब्द को म्लेच्छ शब्द कहते हुए अपना विरोध प्रदर्शित किया। उनकी परंपराओं की दीवार डोलने लगी। उनका धर्म संकट में पड़ गया। इसी शब्द के कारण उसकी दादी और माँ की लड़ाई हुई। सभी की आँखें टोपी के चेहरे पर जम गईं कि उनकी संस्कृति के विपरीत यह शब्द घर में कैसे आया। जब टोपी ने बताया कि यह उसने अपने दोस्त इफ़्फ़न के घर से सीखा है तो उसकी माँ व दादी ने उसकी खूब जमकर पिटाई की। उस दिन टोपी की बड़ी दुर्गति हुई।
दस अक्तूबर सन् पैंतालीस का दिन टोपी के जीवन में क्या महत्व रखता हैं?
दस अक्टूबर सन् पैंतालीस वैसे तो सामान्य दिन था परंतु टोपी की जिंदगी में यह दिन विशेष महत्व रखता है। इस दिन उसके सबसे प्यारे दोस्त इफ्फ़न के पिता का तबादला मुरादाबाद हो गया था और वे सपरिवार मुरादाबाद चले गए थे। इफ्फ़न की दादी के मरने के कुछ ही दिनो बाद यह तबादला हुआ। अपने प्रिय दोस्त के चले जाने से उसे बहुत दुख हुआ। इस कारण टोपी और भी अकेला हो गया। इफ्फ़न के पिता की जगह आने वाले कलेक्टर के तीनों बेटों में से किसी ने भी उसके साथ दोस्ती न की थी। इसी दिन टोपी ने कसम खाई थी कि वह ऐसे लड़के से दोस्ती नहीं करेगा जिसका पिता ऐसी नौकरी करते हो जिसमें बदली होती हो।
टोपी ने इफ्फ़न से दादी बदलने की बात क्यो कही?
टोपी की दादी का स्वभाव अच्छा न था। वह हमेशा टोपी को डॉटती-फटकारती थीं व कभी भी उससे प्यार से बात न करती थीं। वह टोपी के विरोधी की झूठी बात पर भी विश्वास कर लेती थी। जिस कारण वह उसे पीटती भी थी तथा वह टोपी की भावनाओं को विल्कुल नही समझती थी। टोपी की दादी परंपराओं से बँधे होने के कारण कट्टर हिंदू थीं। वे टोपी को इफ्फ़न के घर जाने से रोकती थीं। दूसरी ओर इफ्फ़न की दादी टोपी से बहुत प्यार करती थी। वे बहुत नरम स्वभाव की थीं जो बच्चों पर क्रोध करना नहीं जानती थीं। टोपी के आने पर उनका अकेलापन दूर हो जाता था और दादी से प्यार पाकर टोपी को भी बहुत अच्छा लगता था| उनकी बोली भी टोपी को अच्छी लगती थी। वह भी इफ्फ़न की दादी के पास बैठकर अपनापन महसूस करता था। इसी स्नेह के कारण टोपी इफ्फन से अपनी दादी बदलने की बात करता था। इस प्रकार अपनी दादी से घृणा तथा इफ्फ़न की दादी से प्यार करने के कारण उसने इफ्फ़न से दादी बदलने की बात कही।
पूरे घर मे इफ्फ़न को अपनी दादी से ही विशेष स्नेह क्यो था?
इफ्फ़न की अम्मी (माँ) तथा बीजी (बड़ी बहन) कभी-कभार उसे डांट दिया करती थीं। उसके अब्बू भी घर को कचहरी समझकर फ़ैसला सुनाने लगते थें, बात-बात पर डांटने लगते थे। उसकी छोटी बहन नुज़हत मौका मिलने पर उसकी कांपियों पर तस्वीरें बनाने लगती थी। अर्थात् सभी उसको थोड़ा बहुत दुख पहुंचाते रहते थे। पूरे घर में इफ्फ़न को अपनी दादी से ही विशेष स्नेह था। यद्यपि प्यार तो उसे अपने अब्बू, अम्मी और बाजी से भी था तथापि दादी से उसे विशेष लगाव था। अब्बू तो कभी-कभी डॉट भी दिया करते थे परंतु एकमात्र दादी ही ऐसी थीं जिन्होंने उसका दिल कभी नहीं दुखाया था। दादी रात में इफ़्फ़न को प्यार से तरह-तरह की कहानियाँ जैसे बेरहम डाकू, अनारपरी, बारह बुर्ज, अमीर हमजा, गुलाब कावली, हाातिमताई, पंच फ़ुल्ला रानी आदि की कहानियाँ सुनाया करती थीं। दादी की भाषा भी इफ्फ़न को अच्छी लगती थी। यही कारण था कि इफ्फन अपनी दादी से बहुत प्यार करता था।
इफ्फ़न की दादी के देहांत के बाद टोपी को उसका घर खाली सा क्यो लगा?
इफ़्फ़न की दादी स्नेहमयी थीं। वह टोपी को बहुत प्यार दुलार करती थीं। टोपी को भी स्नेह व अपनत्व की जरूरत थी क्योंकि यही प्रेम उसे अपनी दादी से नहीं मिल पाता था। इफ्फ़न की दादी टोपी को कई बार खाने की चींज देना चाहती थी, किंतु वह दादी के हजार कहने के बाद भी कुछ न लेता। टोपी जब भी इफ्फन के घर जाता था, वह अधिकतर उसकी दादी के पास बैठने की कोशिश करता था क्योंकि उस घर में वही उसे सबसे अच्छी लगती थीं। वे दोनों अपने घरों मे अकेलापन महसूस करते थे। एक-दूसरे के प्रति लगाव ने दोनों का अकेलापन मिटा दिया था। दादी के देहांत के बाद टोपी के लिए वहाँ कोई न था। टोपी को वह घर खाली लगने लगा क्योंकि इफ्फ़न के घर का केवल एक आकर्षण था जो टोपी के लिए खत्म हो चुका था। इसी कारण टोपी को इफ्फन की दादी के देहांत के बाद उसका घर खाली-खाली-सा लगने लगा।
टोपी और इफ्फ़न की दादी अलग-अलग मजहब और जाति के थे पर एक अनजान रिश्ते से बँधे थे। इस कथन के आलोक मे विचार लिखिए।
प्रेम आत्मा और विचारों के मिलन का नाम है। प्रेम मजहब और जााति से ऊपर की वस्तु है। यह इन बातो का पाबंद नही होता। जो व्यक्ति प्रेम के सागर में गोते लगाता है, वह रहन- सहन, खान- पान, रीति- रिवाज और सामाजिक हैसियत का घ्यान नहीं रखता। लेखक ने बताया है कि टोपी कट्टर हिंदू परिवार से संबंध रखता था। लेकिन वह अपने परिवार से आत्मीय संबंध नहीं बना सका। उसे अपने परिवार से कभी भी भरपूर प्यार नहीं मिल सका। इस कारण कई बार घर में लड़ाई का वातावरण बन जाता था। तथा इफ़्फ़न की दादी मुसलमान थीं किंतु फिर भी टोपी और इफ्फन की दादी में एक अटूट मानवीय रिश्ता था। टोपी को दादी का प्यार अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। उसके घर वालों के मना करने और पीटने पर भी वह इफ्फ़न के घर जाने की जि़द पर अड़ा रहता है। दोनों आपस में स्नेह के बंधन में बंधे थे। टोपी को इफ्फ़न के घर में अपनापन मिलता था। दादी के आँचल की छाँव में बैठकर वह स्नेह का अपार भंडार पाता था। इसके लिए रीति-रिवाज़, सामाजिक हैसियत, खान-पान आदि कोई महत्व नहीं रखता था। इफ्फन की दादी भी घर में अकेली थीं, उनकी भावनाओं को समझने वाला भी कोई न था। अतः दोनों का रिश्ता धर्म और जाति की सीमाएँ पार कर प्रेम के बंधन में बँध गया। दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे थे। लेखक ने हमें समझाया है कि जब दिल से दिल मिल जाते हैं तो मज़हब और जाति के बंधन बेमानी हो जाते हैं। अतः स्पष्ट हो जाता है कि टोपी व इफ्फ़न की दादी अलग-अलग मज़हब और जाति के होने पर भी वे दोनों आपस में प्रेम व स्नेह की अदृश्य डोर से बँधे हुए थे।
टोपी नवीं कक्षा में दो बार फ़ेल हो गया। बताइए।-
(क) जहीन होने के बावजूद भी कक्षा में दो बार फेल होने के क्या कारण थे?
(ख) एक ही कक्षा में दो बार बैठने से टोपी को किन भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
(ग) टोपी की भावात्मक परेशानियों को मद्देनजर रखते हुए शिक्षा व्यवस्था में आवश्यक बदलाव सुझाइए?
(क) टोपी ज़हीन अर्थात् बहुत तेज़, होशियार व मेहनती लड़का था किंतु फिर भी वह नवीं कक्षा में दो बार फेल हो गया था। उसे कोई पढ़ने ही नहीं देता था और जब वह पढ़ने बैठता तो मुन्नी बाबू को कोई काम निकल आता या रामदुलारी को कोई ऐसी चीज मँगवानी पड़ जाती जो नौकरो से नहीं मँगवाई जा सकती थी। इसके अलावा भैरव उसकी कापियों के हवाई जहाज उड़ा डालता था। इसलिए वह पहले साल फेल हो गया था। दूसरे साल उसे टाइफाइड हो गया इस कारण वह पास न हो पाया था।
(ख) एक ही कक्षा में दो-दो बार बैठने से टोपी को अनेक भावात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उसे अपने से छोटे बच्चों के साथ बैठना अच्छा नहीं लगता था। वह अपनी कक्षा में अच्छा-खासा बूढ़ा दिखाई देता था। मास्टर जी भी लड़को को समझाते हुए व्यंग्यात्मक शैली में उसकी मिसाल देते थे। जब मास्टर जी कक्षा में कोई सवाल पूछते तो वह भी अपना हाथ ऊपर उठाता। इस पर एक दिन अंग्रेजी-साहित्य के मास्टर साहब ने कहा कि वह तीन वर्ष से वही किताब पढ़ रहा है। उसे तो सारे जबाव जबानी याद हो गए होंगे। इन लड़को को अगले वर्ष हाईस्कूल की परीक्षा देनी है। इस पर टोपी बहुत शर्मिंदा हुआ। उसकी कक्षा के बच्चें भी उसके साथ खेलना नहीं चाहते थे। वे भी उसे अपनी कक्षा से पीछे के छात्रों से मित्रता करने के लिए कहते। वह अकेला पड़ गया था क्योंकि उसके दोस्त दसवीं कक्षा में थे और इसमें उसका कोई नया दोस्त नहीं बन पाया। वह शर्म के कारण किसी के साथ अपने दिल की बात न कर पाता था। वह अध्यापकों की हँसी का पात्र होता था क्योंकि कक्षा में आने पर अध्यापक कमज़ोर लड़कों के रूप में उसका उदाहरण देते और उसे अपमानित करते हुए व्यंग्य करते थे। कक्षा के छात्र भी उसका मज़ाक उड़ाते थे।
(ग) किसी भी छात्र को एक ही कक्षा में दो बार फेल नहीं करना चाहिए, दूसरी बार उसे अगली कक्षा में बैठा देना चाहिए। छात्र जिस विषय में पास न हो रहा हो, उसे उससे हटा दिया जाए। विषय चुनाव की छूट मिलनी चाहिए। बच्चों को अंकों के आधार पर नहीं अपितु ग्रेड के आधार पर अगली कक्षा में भेज देना चाहिए ताकि वह अपनी स्थिति पहचान कर मेहनत कर सके। अध्यापकों को कड़ा निर्देश देना चाहिए कि कक्षा में फेल होने वाले छात्रों को अपमानित न कर उनका हौसला बढ़ाते हुए उनकी मदद करें। बच्चों की शिक्षा व्यवस्था में पुस्तकीय ज्ञान की अपेक्षा व्यावहाारिक ज्ञान पर बल देते हुए उसके विकास की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। बच्चें की पारिवारिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए उपचारात्मक शिक्षण पद्वति पर बल देना चाहिए। बच्चे की सामाजिक और पारिवारिक गतिविधियो की जानकारी के लिए समय-समय पर अभिभावक-शिक्षक मीटिंग का आयोजन किया जाना चाहिए। पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ उसके शारीरिक विकास पर भी बल देना चाहिए।
इफ्फन की दादी के मायके का घर कस्टोडियन में क्यों चला गया?
कस्टोडियन का अर्थ ऐसे विभाग से है जो ऐसी संपत्ति को संरक्षण देता है जिस संपत्ति पर किसी का कोई मालिकाना हक नहीं होता। जब इफ्फ़न की दादी की मृत्यु निकट थी तो उनकी स्मरण-शक्ति समाप्त-सी हो गई। उन्हें यह भी याद न रहा कि अब उनका घर कहाँ है। उनके सारे घरवाले कराची में रह रहे थे। इसलिए जब उनके घर का कोई चारिस न रहा तो उनके मायके का घर कस्टोडियन में चला गया।