कथावाचक और हरिहर काका के बीच क्या संबंध है और इसके क्या कारण हैं?
कथावाचक मिथिलेश्वर प्रस्तुत कहानी के कथाकार हैं। वे इस कहानी के मुख्य पात्र हरिहर काका के पड़ोसी रहे हैं। कथावाचक और हरिहर काका के बीच काफी आत्मीय संबंध रहे हैं। इस संबंध का इतिहास बहुत पुराना है। यह तब की बात थी जब कथावाचक अपनी बाल्यावस्था में हरिहर काका के कंधों पर झूला करते थे। ऐसी बात कथावाचक की मां उन्हें बताती आईं हैं कि किस प्रकार उन्हें बचपन में हरिहर काका अपने कंधों पर बैठा कर घुमाया करते थे। हरिहर काका का कथावाचक से कोई रक्त संबंध या खून का रिश्ता नहीं था। कहने का अर्थ है कथावाचक हरिहर काका से भावनात्मक तौर पर जुड़े थे। उनका बचपन से ही काका के घर जाना-आना था। वे काका के शुभचिंतक थे यानि वे काका का हमेशा भला सोचते थे और उनके सुख-दुख में वैचारिक भागीदारी को इच्छुक रहते थे।
हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी के क्यो लगने लगे?
कथावाचक हमें बताते हैं कि महंत और उनके भाई किस प्रकार हरिहर काका के जमीन के टुकड़े की लालच में उनके साथ क्रूरतापूर्वक व्यवहार करते हैं। वास्तव में हरिहर काका की चार भाइयों की सम्मिलित 60 बीघे की जमीन में 15 बीघा जमीन उनके अपने हिस्से में आती है। हरिहर काका अपनी कोई संतान नहीं होने और अपनी दोनों पत्नियों के मर जाने के उपरांत अपने भाइयों और उनके परिवार के बीच ही रहते हैं। उनके भाईयों का तो उनके प्रति प्रेम का भाव रहता है पर भाइयों की अनुपस्थिति में उनकी पत्नियां उनका वैसा ख्याल खासकर खाने के मामले में नहीं रखतीं। काका के रुष्ट होने पर इस स्थिति का ठाकुरबारी के महंत अनुचित लाभ लेना चाहते हैं। उनके भाई भी यह सोचकर आशंकित रहते हैं कि पारिवारिक संपत्ति काका से कहीं महंत और उनके सहयोगी अपने नाम न करा लें| इस फेर में तीनों भाई काका पर शीघ्रताशीघ्र जमीन तीनों भाइयों के नाम पर करा देने का दबाव डालते हैं। इस उपक्रम में काका को पहले महंत और उनके आदमी शारीरिक क्षति पहुंचाते हैं और उनके अपने भाई इस मामले में यानि काका पर बल प्रयोग करने के मामले में महंत से कहीं आगे निकल जाते हैं। इन्हीं कारणों से हरिहर काका को महंत और उनके अपने भाई एक ही श्रेणी के लगते हैं।
ठाकुरबारी के प्रति गाँव वालो के मन मे अपार श्रृद्धा के जो भाव है उससे उनकी किस मनोवृत्ति का पता चलता है?
ठाकुरबारी के प्रति गांव वालों के मन में अपार श्रद्धा का भाव है। इसका एकमात्र कारण उनकी कृष्ण भगवान के प्रति आस्था से उपजी भक्ति के भाव का होना है। यह अलग बात है कि महंत, पुजारी और उनके लोग गांव के भोले-भाले लोगों की ईस आस्था का लाभ उठाकर उन्हें भांति-भांति प्रकार से ठगने का काम करते हैं। भोले-भाले लोग इनके ‘मुंह में राम बगल में छुरी’ वाली नियत को आसानी से भांप नहीं पाते हैं। ग्रामीण लोग इस प्रकार अपनी भक्ति भावना से ठाकुरबारी में दान देते हैं। ऐसा ये प्रायः महंत के द्वारा इनके पारिवारिक यज्ञ के संपन्न हो जाने पर करते हैं। वैसे भी मुख्य अवसरों पर जैसे कि किसी के घर में पुत्र का जन्म होता है या फिर उनकी लङकी का विवाह तय हो जाता है या फिर जब वे मुकदमा जीत जाते हैं तब इन कार्यों के सफलतापूर्वक संपन्न हो जाने का कारण वह ठाकुरजी की कृपा को ही मानते हैं। लोग भक्ति भाव में आकर कभी-कभी अपनी जमीन का छोटा टुकड़ा भी ठाकुरबारी के नाम पर दान कर देते हैं। इस प्रकार गांव के लोग की ठाकुरबारी के प्रति भक्तिभाव की भावना से उनकी आस्तिक और भोली-भाली प्रवृत्ति का ही पता चलता है।
अनपढ़ होते हुए भी हरिहर काका दुनिया की बेहतर समझ रखते हैं| कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
हरिहर काका हालांकि अनपढ़ हैं फिर भी वे दुनिया की बेहतर समझ रखते हैं। ऐसा वे अपने अनुभव के आधार पर कर पाने में सक्षम होते हैं। उन्होंने भली प्रकार से अपने परिवार में देख लिया कि उनके भाई की पत्नी उनको अच्छा भोजन भी नहीं परोसती है। जबकि उन्होंने अपने संयुक्त परिवार में रहने की अपनी इच्छा के कारण स्वयं की जमीन पर क्लेम छोड़ दिया था। पर यह त्याग उनके किसी काम न आया और उनके भाइयों ने इनके साथ जमीन के लालच में बुरा से बुरा बर्ताव किया और फिर बाहर के लोगों जैसे महंत और उनके आदमियों द्वारा उदारता की अपेक्षा कैसे की जा सकती थी? उन्होंने तो हरिहर काका के घर में जन्मी फूट का अनुचित लाभ लेने का ही प्रयास किया। वे तो बाहर वाले थे लेकिन घर वाले तो उनके अपने थे। इसलिए हरिहर काका ने अपनी जमीन के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। उन्होंने निर्णय लिया कि अपनी इस जमीन को अपने जीवनभर किसी अन्य के नाम नहीं करेंगे और अपने व्यवहारिक ज्ञान से उन्होंने निडरतापूर्वक ऐसा करने का निर्णय लिया। इस प्रकार प्रस्तुत कहानी से यह स्पष्ट है कि अनपढ होते हुए भी हरिहर काका अपने व्यवहारिक ज्ञान के बल पर दुनिया की अच्छी समझ रखते थे और इसी ज्ञान एवं समझ के आधार पर वे अपने विवेक से सही निर्णय लेने में सक्षम हो पाए|
हरिहर काका को जबरन उठा ले जाने वाले कौन थे? उन्होंने उनके साथ कैसा बर्ताव किया?
हरिहर काका को जबरन उठा ले जाने वाले लोग महंत और उनके आदमी थे। महंत ने जब देखा कि हरिहर काका किसी भी प्रकार अपनी जमीन को ठाकुरबारी के नाम करने को तैयार नहीं और वे अपने भाईयों के मोह में फंसते जा रहे हैं। तब इस आशंका से कि कहीं काका अपने हिस्से की जमीन अपने भाइयों के नाम न कर दें। इस परिस्थिति में जमीन हाथ से निकल जाने की संभावना के कारण से महंत और उनके लोगों ने हरिहर काका का अपहरण कर लेना ही उचित समझा। ये लोग हरिहर काका को जबरदस्ती उठाकर ले गये और इनलोगों ने उन्हें बलपूर्वक ठाकुरबारी के एक कमरे में उनके हाथ पैर बांधकर बंद कर दिया। साथ में इनलोगों ने काका के मुंह में कपड़ा भी ठूंस दिया ताकि वो चिल्ला कर आदमियों को न जुटा लें और महंत एवं उनके साथियों के इस बुरे काम का परदाफाश समाज में लोगों के सामने न हो जाए। इस प्रकार इनलोगों ने हरिहर काका के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया।
हरिहर काका के मामले मे गाँव वाले की क्या राय थी और उसके क्या कारण थे?
गांव वाले हरिहर काका के मामले में उनके भाइयों के उनके प्रति क्रूरतापूर्ण व्यवहार के बारे में अपनी विभक्त या बंटी हुई राय रखते थे। ऐसा उनका अपने-अपने परिवारों में अपनी अलग-अलग स्थिति होने के कारण था। कई परिवारों में हरिहर काका जैसे वृद्ध सदस्य थे। ऐसे परिवारों के बहुसंख्यक सदस्य काका के प्रति किये गये उनके भाइयों के व्यवहार को उचित मानते थे। उनकी ऐसी सोच का कारण स्पष्ट रूप से हमारी समझ में आता है। ऐसे लोग भी काका के भाइयों की तरह अपने-अपने परिवार में उपस्थित काका की तरह के सदस्यों के प्रति काका के साथ हुए व्यवहार को दोहराने के समर्थक थे और उनके प्रति वैसे ही व्यवहार करने के इच्छुक थे। इसी कारण वे लोग काका के प्रति उनके भाइयों के व्यवहार को उचित मान रहे थे।
महंत और उनके लोगों द्वारा काका के प्रति क्रूरतापूर्ण व्यवहार के मामले में भी हम गांव के लोगों की राय को बंटा हुआ पाते हैं| इस प्रकरण में भी लोग दो तरह की राय रखते थे पहला कुछ लोग महंत एवं उसके आदमियों के द्वारा काका से साथ किये गए व्यवहार का समर्थन करते थे जबकि एक दूसरा वर्ग भी था जो महंत एवं उसके आदमियों द्वारा काका के साथ किये गए व्यवहार को गलत मानता था|
कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि लेखक ने ये क्यो कहा, “अज्ञान की स्थिति मे ही मनुष्य मृत्यु से डरते हैं| ज्ञान होने के बाद तो आदमी आवश्यकता पडने पर मृत्यु को वरण करने के लिए तैयार हो जाता है।“
प्रस्तुत कहानी में लेखक का ऐसा कहना उचित है। हम काका के इस ज्ञान को उनकी सांसारिक मोह माया से घिरा हुआ होने पर पाते हैं। वास्तव में कहानी के मुख्य पात्र हरिहर काका की कोई संतान नहीं है। उनकी दोनोँ पत्नियों के गुजर जाने के बाद वे अपने भाइयों के परिवार में ही घुलमिल कर रहने को इच्छुक हैं। काका इस हेतु अपने हिस्से की जमीन की उपज का कोई हिसाब अपने भाइयों से नहीं मांगते हैं। वहीं दूसरी ओर उनके भाइयों का परिवार खाने तक के मामलों में काका की अवहेलना करता है और समय-समय पर उनकी अनदेखी करता है। ठाकुरबारी का महंत काका के सहयोग के बदले काका की जमीन को मंदिर के नाम करने का सुझाव देता है। जमीन के लोभ में काका के भाई और ठाकुरबारी के महंत काका को काफी शारीरिक और मानसिक क्षति पहुंचाते हैं। वे अपने क्रूरतापूर्ण व्यवहार से काका के मन में बैठे मोहरूपी अज्ञान की हत्या कर देते हैं। अब हमारे सामने नये काका अवतरित होते हैं। यह नया काका संसार के मोहरूपी बंधन से बिल्कुल स्वतंत्र हो चुका है। उन्हें अब दुनियादारी की पूरी समझ आ गयी है और इसी कारण से सभी प्रकार के बंधनों से आजाद होकर काका के मन से मृत्यु का भय भी निकल जाता है। अब संसार के बारे में वास्तविक ज्ञान होने पर काका इस संसार, समाज एवं पारिवारिक बंधनों से काफी निराश हो जाते हैं। अब काका को अंततः ज्ञान ही गया है कि इस दुनियादारी एवं मोह-माया रुपी जिंदगी से बेहतर तो मृत्यु का वरण करना है|
समाज मे रिश्तों की क्या अहमियत है? इस विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
समाज में रिश्तों की अहमियत काफी है। यह रिश्तों की ही डोर है जो हमें समाज में स्थापित करती है। मनुष्य की प्रथम पहचान उसके माता-पिता संसार से कराते हैं। शायद ही कोई ऐसा मनुष्य होगा जो अपने माता-पिता से अलग पहचान रखकर इस धरती पर आया हो। साथ में संतान अपने माता-पिता के गुणों की विरासत अपने व्यक्तित्व में उपस्थित पाता है। वास्तव में रिश्तों के बंधन में बंधने का प्रारंभ यहीं से प्रारंभ होता है। हम आंखें खोलने पर अपने आसपास रिश्तों की भरमार पाते हैं। वास्तव में हममें से अधिकांश लोग इन्हीं रिश्तों को खुश करने का प्रयास जीवन भर करते हैं और बदले में हमारे यही रिश्तेदार हमें वही खुशी लौटाने का प्रयास करते हैं। हम अपनी उन्नति का प्रयास भी इन्हीं रिश्तों के बीच हमारी लाज या हमारा मान सुरक्षित रखने हेतु ही करते हैं। हम कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते हैं जिससे कि हमारा नाम इन रिश्तों के बीच बदनाम हो। कभी-कभी हमारी अपनी गलती या किसी अन्य की गलती से पारिवारिक या सामाजिक रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है। कभी-कभी लोग अपने कुकृत्य मे रिश्तों की परवाह नहीं करते और रिश्तों की मर्यादा को लांघ जाते हैं पर इस प्रकार के कार्य से समाज में रिश्तों की अहमियत कम नहीं होती। समाज में रिश्ते हमेशा पुल बनकर सामाज के लोगों को आपस में जोड़ने का काम करते हैं। जिस देश में सामाजिक रिश्ते जितने अधिक सौहाद्रपूर्ण होंगे वहां उतना ही अधिक शांतिपूर्ण माहौल होगा और वह देश उतना ही अधिक प्रगतिशील होगा।
यदि आपके आसपास हरिहर काका जैसी हालत में कोई हो तो आप उसकी किस प्रकार मदद करेंगे?
मेरे आसपास हरिहर काका जैसी हालत में रहने वाले लोगों की भलाई के लिए पहले तो मैं उस व्यक्ति से अकेले में मिलना चाहूंगा। मैं उसके साथ उसके घरवालों के द्वारा किये जा रहे बुरे बर्ताव के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी लूंगा। मैं उसे उसके घर के जो भी लोग उसके साथ सहानुभूति रखते हों उनसे उस व्यक्ति के द्वारा बेहतर संबंध बनाने की बात करूंगा ताकि वे शुभचिंतक ऐसी परिस्थितियों में उसका बचाव कर सकें। वे शुभचिंतक उसके घर के छोटे बच्चे भी हो सकते हैं क्योंकि बच्चों का मन सच्चा होता है और उनके मन में उनके परिवार के वृद्धों एक प्रति दुर्भावना नहीं होती| फिर मैं उसके घर वालों से मिलकर ऐसा न करने के प्रति उन्हें आगाह करूंगा। मैं उन्हें इस संबंध में कानून सम्मत कार्रवाइयों के प्रति भी आगाह कराउंगा। हालात न सुधरने पर मैं समाज के लोगों के बीच इस मसले को उठाउंगा। इसके साथ ही साथ मैं पुलिस और मीडिया में उस व्यक्ति के साथ उसके परिवार वालों द्वारा किये जा रहे बुरे बर्ताव की जानकारी दूंगा और उस व्यक्ति को अपने ही परिवार के लोगों द्वारा दिये जा रहे कष्ट से मुक्ति दिलाने का प्रयास करूंगा।
हरिहर काका के गाँव में यदि मीडिया की पहुँच होती तो उनकी क्या स्थिति होती? अपने शब्दों में लिखिए।
हरिहर काका के गांव में मीडिया की पहुंच होने पर बात ही कुछ और होती। ऐसा होने पर पहले तो उनके परिवार वाले उनके साथ बुरा व्यवहार करने से डरते क्योंकि उनका काका के साथ इस प्रकार का कृत्य मीडिया समाज के सामने ला सकता था| हम सभी जानते हैं कि मीडिया की पहुंच विश्वव्यापी होती है। मीडिया को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में भी जनमानस की स्वीकृति मिल चुकी है। निष्पक्ष मीडिया जरूरतमंद लोगों को न्याय दिलाने में अक्सर सफल रहता है। ऐसा इसिलिए होता है क्योंकि मीडिया के पीछे जनमानस की आवाज होती है। इसिलिए काका के गांव में मीडिया के मौजूद रहने पर यह मामला काफी दिनों तक घर की चारदीवारी में छुप कर नहीं रह सकता था। घर का ही कोई व्यक्ति या कोई पडोसी या कोई आगंतुक ही कभी न कभी काका जैसे लोगों के द्वारा उनके ही परिवार द्वारा किये जा रहे बुरे व्यवहार की जानकारी मीडिया को दे देने में अवश्य ही कामयाब हो जाता। ऐसा हो जाने पर मामला फिर पारिवारिक या स्थानीय न होकर बौद्धिक, प्रशासनिक और न्यायिक हो जाता। ऐसी स्थिति में काका को न्याय मिलने में देर नहीं लगती।