कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती-पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है?
लेखक के कई साथी अलग-अलग राज्य से थे। उनके अधिकतर साथी हरियाणा या राजस्थान से आकर मंडी में व्यापार के लिए आए परिवारों में से थे। इसलिए सब अलग-अलग भाषा बोलते थे। जब लेखक छोटे थे तो उनकी बोली बहुत कम समझ पाते थे। यहां तक कि उन लोगों के कुछ शब्द सुनकर लेखक को हंसी भी आ जाती लेकिन खेलते समय सब एक-दूसरे की भाषा समझ लेते थे। उनके व्यवहार में कोई अंतर ना था। लेखक के अनुसार, बच्चे जब मिलकर खेलते हैं तो उनका व्यवहार और भाषा अलग होते हुए भी एक ही जैसा लगता है। ज्यादातर खेलते समय सभी का व्यवहार एक सा हो जाता है। इसलिए भाषा अलग होने से भी मेल-मिलाप में कोई बाधा नहीं आती।
पी.टी. साहब की ‘शाबाश’ फ़ौज के तमगों-सी क्यों लगती थी? स्पष्ट कीजिए|
पीटी साहब को अनुशासन में रहना और अन्यों को अनुशासन में रखना बहुत पसंद था। बच्चों की छोटी सी गलती भी उन्हें सहन ना थी। प्रार्थना सभा के समय जहां सभी मास्टर लड़कों की तरह ही कतार बांधकर उनके पीछे खड़े होते वहीं पीटी साहब लड़कों की कतार के पीछे खड़े ये यह देखते रहते कि कौन सा लड़का कतार में ठीक नहीं खड़ा है। उनके डर की वजह से सभी लड़के कतार में सीधे खड़े रहने का प्रयत्न करते। अगर कोई लड़का अपना सिर भी इधर उधर हिला लेता या पांव से दूसरी पिंडली तक खुजलाने लगता तो वे उसकी ओर बाघ की तरह झपट पड़ते। लेकिन स्काउंटिंग का अभ्यास करवाते समय जब बच्चे एक भी गलती ना करते तो पीटी साहब उनकी तारीफ करने से भी पीछे ना रहते। इसलिए जब कभी भी वे बच्चों को शाबाशी देते तो बच्चों को यह किसी फोजी तमगों से कम नहीं लगती थी।
नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था?
नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों व पुरानी किताबों से आती गंध से लेखक का बालमन इसलिए उदास हो जाता था क्योंकि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण उनके लिए हेडमास्टर एक बच्चे की पुरानी किताब लेकर आते थे। उन किताबों की गंध लेखक को बिलकुल पसंद ना आती और उनका मन उदास होने लगता था। इसके अलावा उन्हें लगता था कि आगे की श्रेणियों में पढ़ाई मुश्किल होती जाती है और नए मास्टरों की मार-पीट का भय उनके भीतर बैठ गया था। उनके अंदर कुछ ऐसी भावना भी थी कि अधिक अध्यापक एक साल में ऐसी अपेक्षा करने लगते हैं कि जैसे हम पढ़ाई में माहिर हो गए हो। अगर उनकी आशाओं पर खरे नहीं उतर पाए तो चमड़ी उधड़ने को तैयार रहेंगे। इन्हीं कुछ कारणों से केवल वही गंध ही नहीं बल्कि बाहर के बड़े गेट से दस-पंद्रह गज दूर स्कूल के कमरों तक रास्तों के दोनों ओर अलिआर के जो झाड़ उगे थे उनकी गंध भी लेखक का मन उदास किया करती। यही कुछ कारण थे कि लेखक का मन नयी कक्षा में जाने से कतराता था।
स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्वपूर्ण ‘आदमी’ फौजी जवान क्यों समझने लगता था?
स्कूल के आम दिनों में लेखक ज्यादा साफ सुथरे कपड़े पहन कर स्कूल नहीं जा पाता था लेकिन स्काउट परेड में उनको साफ-सुथरे धोबी से धुले कपड़े पहन कर जाना होता था। इसके अलावा परेड में वे पॉलिश किए हुए जूते और जुराबें पहन कर जाते। इन कपड़ों और जूतों में लेखक ठक-ठक करके चलते थे और इस समय वे आपने आपको फौजी से कम नहीं समझते थे। इसके अलावा जब पीटी मास्टर परेड करवाया करते तो उनके आदेश पर लेफ्ट-राइट या अबाउट टर्न को सुनकर वे छोटे-छोटे बूटों की एड़ियों पर दाएं-बाएं या एक कदम पीछे मुड़कर बूटों की ठक ठक करते अकड़कर चलते थे। इसलिए उन्हें ऐसा लगता कि वे आम इंसान नहीं बल्कि बहुत महत्वपूर्ण आदमी हो जैसे कि कोई फौजी जवान।
हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअत्तल कर दिया?
एक दिन पीटी साहब ने चौथी कक्षा के बच्चों को (जिसमें लेखक भी शामिल थे) फारसी के शब्द रूप याद करने के लिए दिए। बच्चों को उर्दू का तो तीसरी कक्षा तक अच्छी तरह अभ्यास हो गया था लेकिन फारसी उनके लिए नई थी और अंग्रेजी भाषा से भी कठिन थी। इसलिए उसे याद करना उन सभी के लिए मुश्किल हो रहा था। यहां तक कि फारसी पढ़े बच्चों को एक सप्ताह भी नहीं हुआ था और पीटी साहब ने उन्हें शब्द रूप याद करने के लिए दे दिए थे। हालांकि बच्चों ने उसे याद करने का पूरा प्रयत्न किया लेकिन असफल रहे। इस पर पीटी साहब ने उन्हें मुर्गा बना दिया। बच्चों से यह सहन ना हो पाया और कुछ ही देर में लुढ़कने लगे। जैसे ही लेखक और उनके एक मित्र की बारी आई तो हेड मास्टर जी ने पीटी साहब की ये बर्बरता देख ली जिसे वो शायद पहली बार सहन नहीं कर पाए। इसलिए उन्होंने पीटी साहब को डांटा और उन्हें तुरंत मुअत्तल कर दिया।
लेखक एक अनुसार उन्हें स्कूल ख़ुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?
लेखक को स्कूल जाना बिलकुल पसंद नहीं था। उन्हें बस उस समय स्कूल जाना अच्छा लगता जब स्काउटिंग का अभ्यास करवाते समय पीटी साहब नीली-पीली झंडियाँ हाथों में पकड़ाकर वन-टू-थ्री कहते और झंडियां ऊपर नीचे, दाएं-बाएं करवाते तो हवा में लहराती और फड़फड़ाती झंडियों के साथ खाकी वर्दियों और गले में दो रंगे रूमाल लटकाए अभ्यास करते। इसके बाद पीटी साहब जब उन्हें शाबाशी देते तो लेखक को पूरे साल में मिले गुड्स से भी ज्यादा अच्छा लगता था और इसलिए लेखक को स्कूल जाना अच्छा लगने लगा।
लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भांति ‘बहादुर’ बनने की कल्पना करता था?
छुट्टियों के समय लेखक को स्कूल से जो काम मिलता था उसके लिए वो एक समय सारणी तैयार करते थे। लेकिन छुट्टियां शुरू होते ही लेखक का सारा समय तालाब में नहाने और दोस्तों के साथ खेल कूद में निकल जाता फिर जैसे-जैसे छुट्टियां बीतने लगती उनका डर बढ़ने लगता। वे अपनी सभी मस्ती भूलकर मास्टरजी द्वारा दिए गए काम का हिसाब लगाने लगते। जैसे मास्टर जी दो सौ से कम सवाल कभी ना बताते। लेखक मन में हिसाब बैठाता कि अगर दस सवाल रोज निकाले जाएँ तो बीस दिन में काम पूरा हो जाएगा। जब ये मन बनता तो फिर खेल कूद शुरू हो जाता और दस दिन यूं ही निकल जाते। इसके बाद एक दिन में पंद्रह सवाल करने का हिसाब बनने लगता लेकिन जब यह हिसाब बनता तो दिन छोटे होने लगते और पिटाई का डर बढ़ने लगता। वहीं लेखक के ऐसे बहुत से साथी थे जो काम पूरा करने की जगह मास्टर की पिटाई खाना ज्यादा सस्ता सौदा समझते थे। हालांकि लेखक पिटाई से बहुत डरते थे लेकिन फिर वो भी उन बहादुरों की तरह की सोचने लगते और उस समय उनका बड़ा नेता ‘ओम’ हुआ करता जिसकी भांति वह बहादुर बनने का सोचने लगते।
पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए|
पीटी सर बहुत ही अनुशासन प्रिय थे। यदि वह किसी भी बच्चे को कोई शरारत या गलती करते पकड़ लेते तो उसे दंड सहना पड़ता।
• वे बहुत ही कठोर स्वभाव के थे। बाल और खाल खींचना, घुड़की और ठुड्डे मारना उनकी आदत थी।
• वे स्वाभिमानी भी थे। नौकरी से निकाले जाने पर भी वे हेडमास्टर जी के सामने गिड़गिड़ाए नहीं बल्कि शांति से चले गए।
• पीटी सर को अपने तोतों से काफी लगाव था। वे रोज़ उन्हें भिगोकर रखे हुए बादाम खाने के लिए देते थे।
विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गयी युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए|
यहां बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए कठोर दंड और मार पीट जैसी युक्तियां अपनाई गई हैं। हालांकि ये युक्तियां पीटी सर की थी और हेडमास्टर शर्मा जी इसके बिलकुल उलट स्वभाव के थे। उनका मानना था कि बच्चों से प्यार से पेश आना चाहिए। शर्मा जी की यही युक्ति आज के समय में भी लागू की जाती है। आज के समय में शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता है कि वे बच्चों की भावनाओं, उनके कामों के कारण को समझें, उन्हें मारने की बजाय उन्हें उनकी गलती का एहसास करवाएं और उनके साथ ममता व मित्रता का व्यवहार रखें। ऐसा करने से बच्चे भी स्कूल खुशी खुशी जाएंगे।
बचपन की यादें मन को गुदगुदाने वाली होती हैं विशेषकर स्कूली दिनों की| अपने अब तक एक स्कूली जीवन की खट्टी-मीठी यादों को लिखिए|
मुझे बचपन में स्कूल जाते वक्त रास्ते में आइसक्रीम खाना बहुत पसंद है| आइसक्रीम की वह दुकान मेरे स्कूल जाने के रास्ते में पड़ती थी और स्कूल जाते समय प्रतिदिन में उस दुकान से आइसक्रीम लेकर खाया करता था| ऐसा करने पर मुझे घर पर डांट पड़ती थी लेकिन मुझे ऐसा करना बहुत पसंद था और यह मेरे स्कूल की सबसे खूबसूरत स्मृतियों में से एक है|
प्रायः अभिभावक बच्चों को खेल कूद में ज्यादा रूचि लेने पर रोकते हैं और समय वर्वाद न करने की नसीहत देते हैं| बताइए-
(क) खेल आपके लिए क्यों जरूरी हैं?
(ख) आप कौनसे ऐसे नियम-कायदों को अपनाएंगे जिससे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो?
(क) खेल मनोरंजन का साधन है लेकिन आज के समय में बच्चे मोबाइल या घर में ही रहकर खेलना ज्यादा पसंद करते हैं। उनके माता पिता को उन्हें बाहर खेलने वाले खेलों के महत्व को समझाना चाहिए। खेल खेलने से आप स्वस्थ्य और अनुशासित बने रहते हैं। इससे प्रेम और सहयोग की भावना बढ़ती है। बच्चों को प्रतिस्पर्धा की भावना भी समझ में आती है और वे आपस में मिलजुल कर रहना भी सीख लेते हैं।
(ख) जिस तरह पढ़ाई भविष्य बनाने के लिए जरूरी है उसी तरह खेल हमारे स्वास्थ के लिए जरूरी है। ये बात अभिभावक भी समझते हैं लेकिन कुछ बच्चे इस बात का गलत फायदा उठाने लगते हैं। ऐसे में बच्चों के ध्यान रखना चाहिए कि खेल के साथ-साथ पढ़ाई को भी बराबर बल्कि उससे थोड़ा ज्यादा ही समय दें| जिससे अभिभावकों को भी उनके खेलने से कोई आपत्ति ना हो। अगर बच्चे अपना काम समय पर पूरा कर लेंगे तो उनके खेल पर किसी तरह की रोक टोक ना रहेगी।