कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने के लिए कहता है, क्यों?
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित यह कविता एक आह्वाहन गीत है। निराला क्रांतिकारी स्वभाव के कवि थे। वे समाज में बदलाव के पक्षधर थे। प्रस्तुत कविता में कवि बादल से भीषण गर्जना के साथ घनघोर बारिश की अपील कर रहा है, जिसके स्वर में ओज है, क्रांति है। क्रांतिकारी कवि होने के नाते वह हमेशा क्रांति की ही अपेक्षा करता है और ऐसी अपेक्षा जिसकी गरजना सुनकर उत्साह का संचार हो जाये। दूसरी ओर बादलों की फुहार और रिमझिम वर्षा से व्यक्ति के मन में कोमल भावों का जन्म होता है, शांति का अनुभव होता है। ऐसे भावों से कवि के मन्तव्य को गति नहीं मिलती है। जन-मानस में चेतना और जोश जागृत करने के लिए, कवि बादल से फुहार या रिमझिम बारिश के लिए न कहकर 'गरजने' के लिए कहता है। गर्जना शब्द क्रांति एवं बदलाव को दर्शाता है।
कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है?
निराला जी आह्वाहन गीत के माध्यम से लोगो को उत्साहित करना चाहते हैं, उनके अंदर क्रांति का भाव जगाना चाहते हैं। इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए कवि बादलों से गरजने की अपील कर रहा है, और ऐसी गर्जना की जन-मानस में चेतना का अभूतपूर्व संचार हो जाये। उदासीन लोग भी अपनी उदासीनता को छोड़ उत्साहित हो जाये। बादल की गर्जना से लोगो में उत्साह की अपेक्षा करते हुए कवि ने कविता का शीर्षक उत्साह रखा है।
कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
'उत्साह’ कविता में बादल निम्नलिखित अर्थों की ओर संकेत करता है-
(क) बादल अपनी गर्जना के माध्यम से मानव-जीवन में क्रांति लाने की ओर संकेत करता है।
(ख) बादल से होने वाली बरसात मानव-जीवन की पीड़ाओं को दूर करने की ओर संकेत करती है।
(ग) जीवन को उत्साह और संघर्ष के लिए प्रेरित करता है।
(घ) जीवन में नवीनता और परिवर्तन लाने की ओर संकेत करता है।
शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
निम्नलिखित पंक्तियों में नाद-सौंदर्य दर्शनीय है-
(क) घेर-घेर घोर गगन, धाराधर ओ।
(ख) विकल विकल, उन्मन थे उन्मन।
(ग) तप्त धरा, जल से फिर
(घ) शीतल कर दो-बादल गरजो।
(च) ललित ललित, काले घुंघराले, बाल कल्पना के-से पाले,
(छ) विधुत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले।
जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही किसी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।
सूखते खेत, अनमने मन
उद्विग्न मन, चिंतातुर कृषक
कैसे होगी, धान की रोपाई।
आकाश की ओर ताकते
सूखते धान-पौधे को देखते
छोटी बालिका।
कृषक पिता से है पूछती।
बादल क्यों नहीं बरस रहे ?
क्या चातक ने व्रत तोड़ दिया है?
वह व्रत रखे हमारे लिए
कृषक पिता ने कहा
बादलों ने सुना
बादल घुमड़-घुमड़ आए
गरजे खूब, बरसे खूब
कृषक-मन हरसे खूब
वाह! चातक-तपस्या।
छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
प्रस्तुत कविता में निराला जी ने फाल्गुन मास का मानवीकरण किया है। फाल्गुन यानि फरवरी-मार्च का महीना। इसी महीने में बसंत ऋतु का आगमन होता है। पुराने पत्तों का झड़ना, नये पत्तो का आना। ये सब बसंत में ही होता है। रंग बिरंगे फूलो से सारा वातावरण सुगन्धित हो उठता है। कवि को ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे फाल्गुन के सांस लेने पर सभी जगह सुगंध फ़ैल गयी हो। घर-घर सुगन्धित हो गया हो और इन सब से मन प्रसन्नचित हो उठता है। कविता की निम्न पंक्तियाँ इस बात का इशारा करती हैं।
कहींसाँसलेतेहो,
घर-घरभरदेतेहो।
कवि प्राकृतिक सौंदर्य का भी वर्णन इस कविता के माध्यम से करता है। सभी पेड़-पौधे नए पत्तो से लद गए हैं। कहीं लाल रंग तो कहीं हरे रंग के फूल प्रकृति की सुंदरता में चार चाँद लगा रहे हैं। कवि का प्रकृति के साथ इतना लगाव हो जाता है कि वह उसे देखे बिना रह नहीं पाता। प्रकृति की सुंदरता कवि की आँखों पर अनंत काल के लिए रुक जाती है। कवि ने इसे इस प्रकार कहा है-
आँखहटाताहूँतो
हटनहींरहीहै।
इस प्रकार संपूर्ण कविता में फागुन की प्रसन्नता, ऋतु बसंत की प्रसन्नता मानव-मन के रूप में चित्रित हो रही है।
कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
मनुष्य का एक स्वभाव यह भी होता है कि जब वह किसी अत्यंत खूबसूरत चीज या व्यक्ति को देख लेता है तो उसकी सुंदरता अनंत काल के लिए मनुष्य की आँखों पर टिक जाती है। ठीक इसी प्रकार कवि भी फाल्गुन की सुंदरता, उसकी मादकता और उसके यौवन के अधीन हो जाता है। प्रकृति प्रेमी कवि अपनी रूचि के अनुसार प्राकृतिक सौंदर्य ढूंढ लेता है, और चाहते हुए भी फाल्गुन की सुंदरता को अपनी आँखों से नहीं हटा पाता।
प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है?
कविता “अट नहीं रही है” में निराला जी ने फागुन के सौन्दर्य और मादक रूप के प्रभाव को दर्शाया है जिसका वर्णन कवि ने निम्न रूपों में किया है-
(क) फागुन के प्राकृतिक सौंदर्य का प्रभाव सर्वत्र व्याप्त है, अर्थात घर-घर में फैला हुआ दिखाया है। जिसे विविध रंग के नव-पल्लवों, पुष्पों के रूप में पेड़ों पर देखा जा सकता है।
(ख) फागुन की प्रकृति का प्रभाव मनुष्यों के मन पर देखा जा सकता है। कवि तो प्रकृति के सौंदर्य से इतना प्रभावित है कि वह प्रकृति के दर्शन से तृप्त नहीं हो पा रहा है और अनंत काल के लिए प्रकृति की सुंदरता को अपनी आँखों में कैद कर लेना चाहता है।
(ग) फागुन का इतना प्रभाव है कि सर्वत्र उल्लास और उत्साह दिखाई देता है। प्रफुल्लता-ही-प्रफुल्लता दिखाई देती है।
(च) फागुन की इतनी अतिशय शोभा है कि कहीं भी समा नहीं रही है।
फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?
हर ऋतु की अपनी अलग विशेषता होती है। ठीक इसी प्रकार फागुन की भी अपनी अलग विशेषता है। बसंत का आगमन फागुन में ही होता है। पतझड़ के कारण वे सभी पेड़ जो स्नेहहीन उदासीन से खड़े रहते हैं, अनमने रहते हैं, नव-पल्लवित पुष्पित हो उठते हैं। फागुन में दृश्यपटल पर तरह तरह के रंग बिखरे हुए मिलते हैं। यह वह ऋतु होती है जब पेड़ों में नए पत्ते निकलते हैं और नाना प्रकार के फूल खिलते हैं। प्रकृति की सुंदरता अपने चरम पर होती है। हवा सुगन्धित हो उठती है। रूठी कोयलों के मधुर गान से फागुन उत्साहित हो उठता है। फागुन मास में तापमान भी अनिश्चित रहता है। कभी ठिठुरन तो कभी गर्मी इसी अनिश्चितता को दर्शाते हैं। ऐसा अन्य ऋतुओं में नहीं होता है। इसीलिए फागुन अन्य ऋतुओं से भिन्न होता है।
इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
निराला जी छायावाद के प्रमुख कवि माने जाते हैं। छायावाद की प्रमुख विशेषताएँ हैं-प्रकृति चित्रण और प्राकृतिक उपादानों का मानवीकरण। 'उत्साह' और 'अट नहीं रही है' दोनों ही कविताओं में प्राकृतिक उपादानों का चित्रण और मानवीकरण हुआ है। काव्य के दोनों पक्ष (भाव पक्ष और शिल्प पक्ष) सराहनीय हैं। छायावाद की अन्य विशेषताएँ जैसे गेयताछाया, प्रवाहमयता, अलंकार योजना आदि भी देखने को मिलती हैं। भाषा एक ओर जहाँ संस्कृतनिष्ठ, सामासिक और आलंकारिक है तो वहीं दूसरी ओर ठेठ ग्रामीण शब्दों का प्रयोग भी दर्शनीय है। भाषा सरल, सहज और प्रवाहमयी है। अतुकांत शैली का भी प्रयोग किया गया है। अन्य काव्य-शिल्प निम्नलिखित है-
(क) निराला की कविताओं में दूसरों से भिन्नता देखने को मिलती है। उनका शब्द-चयन ऐसा अनूठा है कि एक-एक शब्द में पूर्ण भाव की अभिव्यक्ति होती है।
(ख) प्रकृति के चित्रण में जीवंतता है। ‘उत्साह’ और ‘अट नहीं रही है’ दोनों कविताओं में मानवीकरण है। कवि ‘उत्साह’कविता में बादल को संबोधित करता है-
बादलगरजो!
घेर-घेरघोरगगन,धाराधरओ!
इसी प्रकार ‘अट नहीं रही है’कविता में कवि फागुन से वार्ता कर रहा है-
कहींसाँसलेतेहो,
घर-घरभरदेतेहो।
(ग) प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग किया गया है। यह छायावादी कवियों की परंपरा रही है कि प्रतीक-शब्दों के प्रयोग से भावों को रहस्यमयी (गूढ़) बना देते हैं।
(घ) तत्सम शब्दों की अधिकता देखने को मिलती है।
होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।
होली का त्यौहार फागुन मास में आता है। इस समय मादक हवायें चलती है और चारो ओर का वातावरण रंगो से भर जाता है। प्रकृति का सौंदर्य अत्यंत मनोहारी हो जाता है। शीत ऋतु का पलायन और ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो रहा होता है। जिससे लोगो में उत्साह देखने को मिलता है। गेहूं की फसल पक चुकी होती है उसकी कटाई की तैयारी हो रही होती है। आम के पेड़ों पर बौर आ चुकी होती है। सुबह हल्की सर्दी और दिन में गर्मी का अहसास होने लगता है। भौंरों का गुंजार-स्वर जोर पकड़ने लगता है। अब तक मौन बैठी कोयल पंचम स्वर से गान कर उठती है। मंद-मंद वायु का प्रवाह पुष्पों के स्पर्श से पर्यावरण को सुगंधित कर देता है। मधुमक्खियाँ अपने छत्तो में शहद का संचय करने लगती है। तितलियाँ भी फूलों पर मडराने लगती है। एक अलग ही प्रकार की अनुभूति होने लगती है जिसे शायद शब्दों में उतनी अच्छी तरह से ना पिरोया जा सके। इस परिवर्तन को सिर्फ महसूस किया जा सकता है।
फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों के बारे में जानिए।
निराला जी ने फागुन सौंदर्य पर कविता लिखी है। इस कविता में भी निराला फागुन के सौंदर्य में डूब गए हैं। उनमें फागुन की आभा रच गई है, ऐसी आभा जिसे न शब्दों से अलग किया जा सकता है, न फागुन से।
फूटे हैं आमों में बौर
भौंर वन-वन टूटे हैं।
होली मची ठौर-टौर,
सभी बंधन छूटे हैं।
फागुन के रंग राग,
बाग-वन फाग मचा है,
जनों के मन लूटे हैं।
माथे अबीर से लाल,
गाल सेंदुर के देखे,
आँखें हुई हैं गुलाल,
गेरू के ढेले कूटे हैं।