बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
कवि शिशु की मधुर मुसकान को देखकर प्रफुल्लित हो उठता है| शिशु की मुसकान को देखकर उसकी उदासी, गंभीरता तनाव सब आनंद में परिवर्तित हो जाते हैं और वह हर्षोल्लास से भर उठता है| कवि को उस मुसकान को देखकर ऐसा लगता है मानो यह मुसकान तो मृतक में जान फूँक सकती है। कवि को लगता है कि यह मुसकान तो निष्ठुर, पाषाणवत हृदय में स्नेह की धारा प्रवाहित कर सकती है| इस प्रकार से शिशु की दन्तुरित मुसकान को देखकर कवि के हृदय में अप्रत्याशित परिवर्तन आ गया है।
बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
बच्चे की मुसकान में स्वभाविकता, निश्छलता, सहजता, सत्यता और मधुरता होती है। उसका ह्रदय स्नेह और माधुर्य से परिपूर्ण होता है| जबकि बड़े व्यक्ति की मुसकान कृत्रिम, बनावटी एवं उद्देश्य से परिपूर्ण होती है| वह परिस्थिति एवं स्थान को देखकर अपने फायदे नुकसान को देखकर मुस्कुराता है कि कहीं कोई बुरा न मान जाए और उसका कहीं नुकासन न हो जाए| बच्चों के साथ ऐसा नहीं है वे दिल खोलकर मुस्कुराते हैं और उनकी मुसकान सच्ची होती है, उनकी मुसकान में कृत्रिमता नहीं होती, स्वार्थ नहीं होता|
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है?
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को निम्न बिंबों के द्वारा इस पाठ में व्यक्त किया है-
(क) कवि कहता है कि बच्चे की मुसकान मृतक में प्राण फूँक सकती है|
(ख) कवि लिखता है कि बच्चे की मुसकान देखकर ऐसा लगता है कि कमल नामक पुष्प अपने मूल स्थान तालाब को छोड़कर झोंपड़ी में खिल रहा हो।
(ग) बच्चे की मुसकान को देखकर पाषाण अथवा पत्थर भी पिघल सकता है|
(घ) बबूल और बांस जिनमें अकसर फूल नहीं लगते, बच्चे की मुसकान देखकर जैसे उनसे फूल झरने लगे हों|
उक्त कविता में कवि ने अनेक बिंबों से बच्चे की मुसकान की तुलना की है|
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात।
(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल?
(क) शिशु की मधुर मुसकान कवि के अंतःकरण को छू गई है| शिशु की मुसकान कवि को इतना भाव बिभोर कर देती है कि उसे ऐसा लगने लगता है जैसे कमल का फूल तालाब में न खिलकर उसकी झोपड़ी में खिल गया हो|
(ख) कवि अपने आपको बबूल और बाँस की तरह निष्ठुर अथवा कठोर हृदय का मानता है। उसका निष्ठुर ह्रदय भी शिशु का स्पर्श पाकर सिहर उठता है और उसके जैसे कठोर ह्रदय वाले व्यक्ति में भी शिशु के स्पर्श से आनंद का संचार हो उठता है| उसे ऐसा लगता है जैसे बबूल और बाँस से शेफालिका के फूल झरने लगे हों|
मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
क्रोध एवं मुसकान दो परस्पर विपरीत भाव हैं| मुसकान की मधुरता में चित्त की प्रसन्नता या कहें आंतरिक ख़ुशी अभिव्यक्त होती है| हम किसी दूसरे व्यक्ति की प्रसन्नता देखकर स्वयं भी खुश हो जाते हैं| सरल भाषा में कहें तो मुसकान मन की प्रसन्नता, लोगों के प्रति प्रेम एवं अपनत्व को प्रकट करने का एक तरीका है जबकि क्रोध इसके विपरीत अप्रसन्नता, अशांति को प्रकट करने का एक तरीका है| क्रोध से आपसी संबंध तनावपूर्ण हो जाते हैं, हम दूसरों को अप्रसन्न कर देते हैं, उन्हें दुःख पहुँचाते हैं|
इस प्रकार से कहें तो मुसकान एवं क्रोध दो विपरीतार्थक भाव हैं और इनकी अभिव्यक्ति से विपरीतार्थक माहौल का निर्माण होता है|
दंतुरित मुसकान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
शिशु के दाँत नौ माह से एक बर्ष की उम्र के बीच निकलते हैं| कभी कभार इससे थोड़ा कम अथवा ज्यादा समय भी लग जाता है| इस पाठ में बच्चे की दंतुरित मुसकान की बात की गयी है तो इसस संभव है इस बच्चे की उम्र 8 से 9 महीने के बीच रही होगी|
बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
कवि एवं शिशु दोनों एक दूसरे से अपरिचित थे जब उनकी मुलाकात हुई तो बच्चा कवि को एकटक देखने लगा और मुस्कुराने लगा| इसी मनोहारी मुसकान पर कवि आत्म मुग्ध एवं रोमांचित हो रहा है| कवि अपनी प्रसन्नता को व्यक्त करते हुए कह रहा है मानो मेरी झोपड़ी में कमल के फूल खिल रहे हों|
कवि बालक की मुसकान से इतना प्रभावित हो गया है कि वह उस बालक को एकटक देखे जा रहा है और बालक भी कवि को लगातार देखे जा रहा है| शिशु की मुसकान को देखकर वह अपने दुखों, परेशानियों एवं अप्रसन्नताओं को भूल जाता गया है| कवि उस मुसकान से अभिभूत होकर उस बालक की माँ को धन्यवाद दे रहा है और लगातार उसकी मुसकान से आनंद का अनुभव प्राप्त कर रहा है|
आप जब भी किसी बच्चे से पहली बार मिलें तो उसके हाव-भाव, व्यवहार आदि को सूक्ष्मता से देखिए और उस अनुभव को कविता या अनुच्छेद के रूप में लिखिए।
कविता-शिशु
फिर भी तुम कितने सुंदर हो,
कि सुंदरता की प्रति-मूरति हो।
धूल-धूसरित अंग तुम्हारे
वस्त्र-हीन अंग तुम्हारे
निश्छल हो, तुम ऐसे लगते
सौम्यता की प्रति-मूरति हो। (1)
किलकारी भरते आँगन में
प्रसन्नता भरते हर कोने में
घुटरुन चलते ऐसे लगते
तुम कृष्णा की प्रति-मूरति हो। (2)
पानी में तुम छप-छप करते
रजकणों से तुम खेला करते
देख छवि, खुश हो माँ कहती
तुम चंचलता की प्रति-मूरति हो। (3)
एन-सी-ई-आ-टी- द्वारा नागार्जुन पर बनाई गई फिल्म देखिए।
नागार्जुन का जन्म बिहार में दरभंगा जिले में हुआ था| वे हिंदी के महानतम कवियों में से एक हैं| नागार्जुन हिंदी साहित्य की प्रगतिशील विचारधारा के कवि हैं| वे अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे और उन्होंने सिर्फ हिंदी में ही नहीं अन्य भाषाओं में भी कई रचनाएँ रचीं| मैथिली भाषा में वे यात्री उपनाम से लिखा करते थे| उन्हें उनकी साहित्यिक विशिष्टता के लिए साहित्य अकादमी पुरुष्कार से भी नवाजा गया| उनके प्रमुख कविता संग्रह- युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, प्यासी पथराई आँखें तालाब की मछलियाँ आदि|
कवि के अनुसार फसल क्या है?
कवि ने इस पाठ में फसल के बारे में बात की है| कवि कहता है कि नदियों के पानी का जादू, मनुष्यों के श्रम का परिणाम, पानी, मिट्टी, धूप, हवा आदि का मिला-जुला रूप फसल है। फसल में वहाँ की स्थानीय मिट्टी के गुण, सूर्य की किरणों का रूपांतरण और हवा का वेग होता है| प्रकृति की इन सभी प्रक्रियाओं को मिलाकर कवि ने फसल की संज्ञा दी है|
कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
फसल उपजाने के लिए निम्न आवश्यक तत्व हैं-
(क) जल- नदियों का जल
(ख) किसान के द्वारा फसल को उगाने में किया गया श्रम
(ग) मिट्टी अथवा मृदा के गुण या तत्व
(घ) सूर्य का प्रकाश।
(च) बहती हुई हवा।
उक्त सभी की उपस्थिति से फसल का अस्तित्व अथवा उत्पत्ति होती है|
फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
फसल के अस्तित्व के लिए नदियों का शीतल जल, सूर्य का प्रकाश, हवा, एवं मिट्टी के गुणधर्म आवश्यक होते हैं लेकिन उसके वावजूद भी मनुष्य के परिश्रम के बिना फसल फल फूल नहीं सकती| फसल के बेहतर रूप में फलने-फूलने एवं बेहतर उत्पादन के लिए मानव का श्रम बहुत महत्वपूर्ण होता है| वह फसल के उगने, बढ़ने के लिए आवश्यक परिस्थितियों का निर्माण करता है जिनकी उपस्थिति में फसल फलती फूलती है| इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कवि ने मनुष्य के परिश्रम को फसल के अस्तित्व हेतु विशेष महत्व दिया है।
भाव स्पष्ट कीजिए-
रूपांतरण है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
यहाँ कवि का अभिप्राय यह है कि फसल सूरज के प्रकाश की उपस्थिति में प्राकृतिक क्रियाएँ पूर्ण कर अपने लिए भोजन का निर्माण करती है और पुष्ट होती है| इसी कारण से कवि ने फसल को सूरज की किरणों का रूपांतरण कहा है|
इसके साथ ही फसल के उगने और स्वस्थ्य रहने में हवा का भी बराबर का योगदान होता है| फसल हवा की उपस्थिति में ऑक्सीजन एवं कार्बन डाई ऑक्साइड ग्रहण करती है जो कि फसल के जीवित रहने एवं वृद्धि के लिए आवश्यक है|
कवि ने फसल को हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है-
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है?
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
(क) मिट्टी में विभिन्न प्रकार के तत्व होते हैं जो उसकी पोषक क्षमता या उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं| इन आवश्यक पोषक तत्वों को फसल मृदा से ग्रहण कर लेती है| फसल द्वारा ग्रहण किये गए पोषक तत्व उसकी वृद्धि में सहायक होते हैं| मिट्टी फसल को जल एवं अन्य आवश्यक पदार्थ भी उपलब्ध कराती है| फसल के फलने फूलने एवं वृद्धि के लिए मृदा अति आवश्यक पदार्थ है|
(ख) वर्तमान में अति उपयोग(उपभोक्ताकरण) वाली जीवन शैली मिट्टी के गुणों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है| वर्तमान का मानव प्रत्येक बस्तु, संसाधन का आवश्यकता से अधिक उपयोग करता है एवं उपयोग के बाद संसाधनों को फेंक देता है| इससे एक तो उपयोगी संसाधन नष्ट हो जाते हैं दूसरा उनके बचे हुए भाग प्रदूषण भी उत्पन्न करते हैं| संक्षेप में कहें तो वर्तमान जीवन शैली मृदा पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है| हमें मृदा पर पड़ने वाले इस नकारात्मक प्रभाव के प्रति सजग रहना चाहिए क्योंकि मृदा जीवन के लिए मूलभूत है|
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में पृथ्वी पर किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि पृथ्वी पर जीवन के लिए मिट्टी बहुत आवश्यक है| अगर मिट्टी के मूलभूत गुण समाप्त हो जाते हैं तो पृथ्वी पर जीवन भी समाप्त हो जाएगा|
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हम अपनी भूमिका इस तरह प्रस्तुत कर सकते हैं कि-
(1) ऐसे कारक जो मिट्टी पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं उनके बारे में पता लगाएँ और उन पर प्रतिबन्ध लगाएँ|
(2) अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें क्योंकि वृक्ष मृदा को उपजाऊ बनाए रखने में बहुत महत्वपूर्ण हैं|
(3) प्रदूषण के कारणों का पता लगाएँ एवं उसे रोकने में अपना सहयोग दें|
इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया द्वारा आपने किसानों की स्थिति के बारे में बहुत कुछ सुना, देखा और पढ़ा होगा। एक सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए आप अपने सुझाव देते हुए अखबार के संपादक को पत्र लिखिए।
लखनऊ, उत्तर प्रदेश।
15 सितंबर, 2018
संपादक
दैनिक भास्कर
नई दिल्ली
विषय- सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के संबंध में अपना सुझाव देने बावत्|
महोदय,
निवेदन है कि मैं आपके प्रतिष्ठित समाचार-पत्र के माध्यम से देश की निरंतर चरमराती कृषि-व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए सुझाव देना चाहता हूँ। जैसा की आप जानते ही होंगे की हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है| किसान हमारे देश की रीढ़ की हड्डी माने जाते हैं लेकिन उसके वावजूद हमारे देश के किसानों की हालत वर्तमान समय में बहुत ही खराब है| किसान हम सबके लिए भोजन का उत्पादन करते हैं| अतः इससे साफ़ तौर पर स्पष्ट है कि हमारे देश का भविष्य कृषि एवं किसानों के हाथ में है|
वर्तमान में अगर हम किसानों की हालत देखें तो बहुत ही खराब है| उन्हें फसल का उचित दाम भी नहीं मिल पा रहा, प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में सरकार की ओर से उन्हें आर्थिक मदद भी ठीक प्रकार से नहीं मिलती| इन्हीं सब कारणों की वजह से हमारे देश का अन्नदाता दरिद्रता में अपना जीवन व्यतीत कर रहा है|
हमें अर्थात समाज एवं सरकार को चाहिए कि हम अपने अन्नदाता जो हमारे लिए भोजन उगाता है एवं जिसकी वजह से हमें कम कीमत पर बेहतर भोजन उपलब्ध हो पाता है उसके योगदान को समझें और उसके प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाएँ| सरकार को चाहिए की किसानों को उनकी फसल का उचित दाम सुनिश्चित करें और प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाले हानि की भरपाई भी सरकार सही वक्त पर करे| यह किसानों पर कोई उपकार नहीं है बल्कि यह करके तो हम अपने अन्नदाता का कर्ज ही अदा कर रहें हैं| हमारे देश का किसान वर्षों से हमारे लिए अन्न उगा रहा है यह उसी की भरपाई होगी|
मैं पूर्ण आशान्वित हूँ कि आप अपने समाचार-पत्र में इस पत्र को प्रकाशित कर मुझे अनुग्रहीत करेंगे।
भवदीय
अरुण भार्गव
फसलों के उत्पादन में महिलाओं के योगदान को हमारी अर्थव्यवस्था में महत्व क्यों नहीं दिया जाता है? इस बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।
भारत में किसान शब्द का अर्थ पुरुष किसान से लगाया जाता है जबकि खेतों में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएँ भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देती हैं लेकिन उसके वावजूद उनके परिश्रम को भारतीय समाज महत्त्व नहीं देता| इसके पीछे अनेक कारण हैं| सबसे पहले तो वो पुरुषवादी मानसिकता जो महिला को पुरुष की संपत्ति समझती है| उसके कार्य को पुरुषों के कार्य से कमतर समझा जाता है इसी कारण से खेतों में महिला कृषकों द्वारा किये गए परिश्रम को महत्व नहीं दिया जाता बल्कि उन्हें तो सिर्फ पुरुष कृषक के सहयोगी के रूप में देखा जाता है| दूसरा महत्वपूर्ण कारण यह है कि भारत में भूमि के मालिक अकसर पुरुष ही होते हैं इस कारण से भी खेतों में काम करने वाली महिला कृषकों के परिश्रम को ज्यादा महत्त्व नहीं दिया जाता|