लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?
लेखिका के व्यक्तित्व पर मुख्य रूप से दो लोगों का प्रभाव पड़ा
(क) लेखिका के पिताजी का प्रभाव -
लेखिका मन्नू भंडारी जी के व्यक्तित्व पर उनके पिताजी के व्यक्तित्व की खुबिया एवं खामियाँ दोनों का ही प्रभाव पड़ा। पिताजी द्वारा अपनी बड़ी बहन से तुलना और उसकी प्रशंसा से उनके मन में हीनता की ग्रंथि बन गई जिससे वह कभी उबर नहीं पाई। यह कुंठा लेखिका के मन को और आत्मविश्वास को हिलाकर रख देती थी। वह किसी अन्य व्यक्ति पर आसानी से विश्वास भी नहीं कर पाती थी। पिता जी के द्वारा ही उनमें देश प्रेम की भावना का भी निर्माण हुआ था।
(ख) प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का प्रभाव -
प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने लेखिका के लेखकीय व्यक्तित्व के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने ही लेखिका का प्रवेश साहित्य की दुनिया में करवाया और उनमें आत्मविश्वास जगाया। लेखिका उनकी जोशीली बातों से बेहद प्रभावित हुई एवं इसके चलते उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में भी अपनी भागीदारी दी।
इस आत्मकथा में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है?
पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर इसलिए संबोधित किया है क्योंकि उनका मानना था की वहाँ काम करके आप अपनी क्षमता एवं प्रतिभा पर ध्यान नहीं दे सकते है। वहाँ आप बस पूरा दिन भट्टी की तरह सुलगते रहते हैं अर्थात वहाँ हर समय कुछ न कुछ काम चलता रहता है और अपनी प्रतिभा और शिक्षा के लिए व्यक्ति समय नहीं दे पाता। आप पकाने-खाने तक ही सीमित रह जाते हैं और अपनी सही प्रतिभा का विकास और उपयोग नहीं कर पाते।
वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?
वह घटना कुछ इस प्रकार है-एक बार कॉलेज से प्रिंसिपल का पत्र आया उसमें लिखा था की लेखिका के पिताजी आकर मिले और बताए की लेखिका की गतिविधियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए या नहीं। यह पत्र पढ़कर लेखिका के पिताजी बेहद गुस्सा हुए इससे लेखिका भयभीत हो गयी थी परन्तु जब पिताजी को पूरी बात का पता चला कि सभी लड़कियाँ लेखिका की बात का बहुत सम्मान करती हैं और उनके एक इशारे पर उपस्थित हो जाती है तो उनका गुस्सा गर्व में बदल गया। इसको देखकर लेखिका को अपनी आँखों पर विश्वास न हो पाया और न अपने कानों पर।
लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।
लेखिका की अपने पिताजी से वैचारिक टकराहट निम्नलिखित कारणों से होती रहती थी-
लेखिका के पिता यद्यपि स्त्रियों की शिक्षा के विरोध में नहीं थे लेकिन उनका मानना था की स्त्रियों का दायरा चार दीवारी के अंदर ही सीमित रहना चाहिए या अन्य शब्दों में कहें तो जो कार्य लड़के करते हैं उन कार्यों में लड़कियों को भाग नहीं लेना चाहिए जैसे कि स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेना।
(क) लेखिका के पिता जी लेखिका को घर की चारदीवारी में रखकर देश और समाज के प्रति जागरूक तो बनाना चाहते थे, किंतु एक निश्चित सीमा तक।
(ख) वे नहीं चाहते थे लेखिका स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग ले।
(ग) लेखिका का हड़ताल में भाग लेना या लड़कों के साथ सड़क पर भाषण देना पिताजी को पसंद न था।
इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।
सन् 1946-47 में पूरे देश में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ पूरे उफान पर था। हर तरफ़ जुलूस और नारे बाज़ी हो रही थी। स्वाधीनता आंदोलन के समय लोगों में इतना उत्साह था कि ऐसे माहौल में घर में बैठना संभव नहीं हो रहा था। इसी समय प्राध्यापिका शीला अग्रवाल की जोशीली बातों से लेखिका को प्रेरणा मिली। देश के प्रति अपने प्रेम के कारण वो खुदको नहीं रोक सकी और चल पड़ीं उसी आंदोलन की रहा पर। सभी कॉलेजों, स्कूलों, दुकानों के लिए हड़ताल का आह्वान किया। जो-जो हड़ताल नहीं कर रहे थे, छात्रों का एक बहुत बड़ा समूह वहाँ जाकर हड़ताल करवाता। लेखिका ने सबको जागरूक करने के लिए भाषण दिए, हाथ उठाकर नारे लगवाये एवं हड़ताले करवाने आदि में लेखिका ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई।
लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किंतु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए।
नहीं, आज लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी नहीं हैं अपितु बदल गई हैं। आज लड़कियाँ, लड़को के कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैं। हर क्षेत्र में लड़कियों की बराबर की भागीदारी है। उन्हें समान अवसर दिए जा रहे है। आज लड़कियाँ प्रतिस्पर्धात्मक खेल खेलती हैं जिसके लिए परिवार प्रोत्साहित करता है। परिणाम यह है कि लड़कियाँ खेल के क्षेत्र में लड़कों से आगे हैं। टेबिल-टेनिस, हॉकी, दौड़ आदि खेलों में बिना किसी संकोच के लड़कियाँ रुचि ले रही हैं।
मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं इस बारे में अपने विचार लिखिए
आस-पड़ोस का जीवन में बहुत अधिक महत्व होता है। हर छोटी से बड़ी विपदा में पड़ोसी ही सबसे पहले काम आता है। हर सुख दुःख की घडी में साथ देता है। कोई व्यक्ति अकेले होने का अनुभव नहीं करता है। परन्तु आज की इस व्यस्त दुनिया में ‘पड़ोस कल्चर’ कहीं गुम होता जा रहा है हम खुद में इतने व्यस्त होते जा रहे हैं कि आस पास की दुनिया में क्या हो रहा है इसका हमे अंदाजा भी नहीं रहता। मनुष्य आत्मकेन्द्रित होता जा रहा है। यही कारण है की आज के समाज में पड़ोस कल्चर लगभग लुप्त होता जा रहा है। लोगों के पास समय का अभाव होता जा रहा है। मनुष्य के सर्वांगीण विकास में पड़ोस की जितनी भूमिका होती है उतनी अन्य किसी की नहीं।
लेखिका द्वारा पढ़े गए उपन्यासों की सूची बनाइए और उन उपन्यासों को अपने पुस्तकालय में खोजिए।
पाठ के अनुसार लेखिका द्वारा पढ़े गए उपन्यास निम्नलिखित हैं-
(क) सुनीता
(ख) शेखर एक जीवनी
(ग) नदी के द्वीप
(घ) त्याग-पत्र
(ङ) चित्रलेखा
आप भी अपने दैनिक अनुभवों को डायरी में लिखिए।
लेखन के लिए अनुभव सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। कहते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है और साहित्यकार समाज की अच्छाइयों एवं बुराइयों को अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यक्त करते हैं। वे अपनी रचनाओं में जो भी लिखते हैं इस समाज के बारे में लिखते हैं और अपने लेखन में वे अपने अनुभवों को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि समाज को समझने के लिए उनके अनुभव सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। वे अपनी जिंदगी के अनुभवों के आधार पर ही समाज के अच्छे एवं बुरे चरित्र को समझ पाते हैं और फिर उसे अपनी रचनाओं में उतार देते हैं। अतः लेखन के लिए अनुभव बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। अनुभवों के द्वारा किसी भी व्यक्ति चाहे वह साहित्यकार हो अथवा आम आदमी की समझ मजबूत होती है।
इस आत्मकथ्य में मुहावरों का प्रयोग करके लेखिका ने रचना को रोचक बनाया है। रेखांकित मुहावरों को ध्यान में रखकर कुछ और वाक्य बनाएँ-
(क) इस बीच पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लू उतारी।
(ख) वे तो आग लगाकर चले गए और पिता जी सारे दिन भभकते रहे।
(ग) बस अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थू-थू करके चले जाए।
(घ) पत्र पढ़ते ही पिता जी आग-बबूला हो गए।
(क) लू उतारी– समय पर काम पूरा न करने पर मालिक ने अच्छी तरह से नौकर की लू उतारी ।
(ख) आग लगाना-कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो घर में आग लगाने का काम करते हैं।
(ग) थू-थू करना-रमेश के फेल होने पर सब लोग थू-थू कर रहे थे।
(घ) आग-बबूला–मेरे स्कूल नहीं जाने से पिताजी आग-बबूला हो गए।
इस आत्मकथ्य से हमें यह जानकारी मिलती है कि कैसे लेखिका का परिचय साहित्य की अच्छी पुस्तकों से हुआ। आप इस जानकारी का लाभ उठाते हुए अच्छी साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने का सिलसिला शुरू कर सकते हैं। कौन जानता है कि आप में से ही कोई अच्छा पाठक बनने के साथ-साथ अच्छा रचनाकार भी बन जाए।
लेखक बनने के लिए अच्छा पाठक होना बहुत आवश्यक होता है। किसी भी व्यक्ति के लेखक बनने की प्रक्रिया में सबसे पहले वह एक अच्छा पाठक बनता है, साहित्य पढ़ता है और अपनी पसंद के अनुसार और साहित्य पढ़ता है। साहित्य की भाषा, लेखन आदि के बारे में भी पाठक बनकर ही समझ सकता है, साहित्य के विशिष्ट क्षेत्र में अपनी रूचि विकसित कर सकते है। उसके पश्चात जब वह साहित्य के बारे में सारी जानकारियाँ एकत्रित कर लेता है तब वह एक अच्छा लेखक या रचनाकार बन सकता है।
लेखिका के बचपन के खेलों में लँगड़ी टाँग, पकड़म-पकड़ाई और काली-टीलो आदि शामिल थे। क्या आप भी यह खेल खेलते हैं। आपके परिवेश में इन खेलों के लिए कौन-से शब्द प्रचलन में हैं। इनके अतिरिक्त आप जो खेल खेलते हैं उन पर चर्चा कीजिए।
हम भी इस प्रकार के खेल खेलते हैं जैसे-लुका छुपी, कबड्डी, पिट्ठूल, गुल्ली डंडा इस प्रकार के अन्य स्थानीय खेल भी जिन्हें अधिकतर ग्रामीण परिवेश में खेला जाता है। ग्रामीण संस्कृति में आज के खेलों जैसे क्रिकेट, फुटबाल से अधिक लोकप्रिय स्थानीय खेल हैं और वर्तमान दौर में भी ग्रामीण बच्चों को स्थानीय खेलों को खेलते हुए देख सकते हैं।
स्वतंत्रता आन्दोलन में महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी रही है। उनके बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए और उनमें से किसी एक पर प्रोजेक्ट तैयार कीजिए।
भारत के ब्रिटिश सत्ता से आजाद होने की प्रक्रिया में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई है। ऐसी कई महिलाएँ हैं जिन्होंने पुरुषों के बराबर या कहें तो उनसे भी महत्वपूर्ण योगदान भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में दिया। उदाहरण के तौर पर 1857 की क्रान्ति में झांसी में क्रांतिकारियों का नेतृत्व करने वाली महारानी लक्ष्मीबाई को ही ले लें। एक महिला होने के वावजूद भी उन्होंने उस दौर में अंग्रेजो के दांत खट्टे कर दिए थे और क्रान्ति की एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में उभरी थी।