कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
कवि गिरिजा कुमार माथुर ने यथार्थ (सच्चाई) पूजन की बात इसलिए कही है, क्यों कि यथार्थ कड़वा परन्तु सत्य होता है। सत्य ही जीवन का आधार है और भविष्य निर्माण में सहायक भी। प्रायः मनुष्य वर्तमान की यथार्थ परिस्थितियों में रहकर भी अतीत की सुखद-स्मृतियों या फिर दुःखद स्मृतियों में डूबकर कल्पना लोक में विचरण करता है। जिसका कोई विशेष महत्व नहीं होता और न ही कोई उपयोगिता। अतीत की स्मृतियों में डूबे रहने से वर्तमान परिस्थितियाँ अधिक भयावह हो जाती हैं। अतीत की स्मृतियों में डूबकर हमें अपनी तरक्की नहीं रोकनी चाहिए। वर्तमान परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, हमें उनसे संघर्ष करते हुए अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करना चाहिए। सत्य को स्वीकार करने की क्षमता सभी में होनी चाहिए। सत्य ही हमारा सच्चा मार्गदर्शक होता है।
भाव स्पष्ट कीजिए
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
इन पंक्तियों द्वारा कवि गिरिजा कुमार माथुर जी ने यह बताया है कि मनुष्य आजीवन मान-सम्मान, धन-दौलत और प्रसिद्धि आदि पाने के लिए परेशान रहता है। जब सत्य यह है कि ये सब केवल भ्रम है। जिस प्रकार मृग रेगिस्तान में पानी की आस में सूर्य की किरणों की चमक को जल मानकर उसके पीछे भटकता रहता है, ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी अपने मान सम्मान को प्राप्त करने के लिए मृगतृष्णा के समान के लिए हमेशा दौड़ता ही रहता है। कवि का मानना है कि हर चमकती चीज के पीछे अन्धकार होता है। मनुष्य को इस यथार्थ को स्वीकार कर लेना चाहिए कि जिस प्रकार चाँदनी रात के बाद काली रात का अस्तित्व होता है, ठीक उसी प्रकार सुख का समय बीत जाने पर दुखों का सामना करना पड़ेगा।
‘छाया’शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है?
छाया शब्द से तात्पर्य जीवन की बीती हुयी स्मृतियों से है। कवि के अनुसार हमारे जीवन में सुख और दुःख कभी भी हमेशा के लिए नहीं होता परन्तु उनकी मधुर व कड़वी यादें हमारे दिमाग में स्मृति स्वरुप सुरक्षित रहती हैं। जीवन में सुखद क्षणों की स्मृतियाँ मनुष्य को दिग्भ्रमित करती हैं। ये मधुर स्मृति हमें कमजोर बना कर हमारे दुःख को और ज्यादा कष्टदायक बना देती हैं। कवि ने यह समझाने का प्रयास किया है कि जितना अतीत के सुखद क्षणों को याद करेंगे, उतना ही वर्तमान की विषमताओं को मजबूत करेंगे और जीवन बोझिल होता चला जाएगा। अतः कवि ने ऐसी छाया को छूने के लिए पुरजोर तरीके से मना किया है।
कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ। कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
जिस प्रकार अलंकारों के प्रयोग से काव्य में सुंदरता आ जाती है, उसी प्रकार विशेषणों के प्रयोग से शब्द के यथार्थ अर्थ में विशिष्टता और गंभीरता आ जाती है। ऐसे शब्द कविता में कई स्थानों पर प्रयुक्त हुए हैं। जैसे-
(क) दुख-दूना - यहाँ दुख-दूना में 'दूना' शब्द के द्वारा, जो कि विशेषण है, दुख की प्रबलता को व्यक्त किया गया है।
(ख) सुरंग-सुधियाँ - यहाँ ‘सुरंग’ विशेषण शब्द मधुर- स्मृतियों को और अधिक मधुर बनाने के संदर्भ मेंप्र युक्त हुआ है।
(ग) जीवित क्षण - ‘जीवित’ विशेषण शब्द जीवन के प्रत्येक क्षण में जीवंतता प्रदान करता है।
(घ) रात-कृष्णा - ‘कृष्णा’ विशेषण शब्द रात के अंधकार में गहनता प्रदान करता है।
(ड़) दुविधा-हत साहस - ‘दुविधा-हत’ विशेषण मलिन हुए साहस को अधिक हतप्रभ कर देता है।
(च) रस बसंत - यहां 'रस' विशेषण शब्द बसंत को और अधिक मनमोहक, रसीला और मधुर बना रहा है।
(छ) शरद रात - यहां 'शरद' विशेषण शब्द रात की रंगीनी और मोहकता को उजागर कर रहा है।
‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
गर्मी की चिलचिलाती धूप में दूर रेगिस्तान में सूर्य की किरणों द्वारा उत्पन्न चमक से वहां पर पानी होने का अहसास होता है परन्तु होता कुछ नहीं। गर्मी में प्यास से व्याकुल मृग जल के आभास मात्र को यथार्थ समझ उसके पीछे भागता रहता है। वहाँ जाकर देखने से उसे कुछ नहीं मिलता। प्रकृति के इस भ्रामक रूप को ही मृग तृष्णा कहा जाता है। कविता में मृग तृष्णा शब्द मृग के लिए न होकर मानव के लिए प्रयुक्त हुआ है। मानव भी इस तृष्णा में फसकर अयथार्थ को यथार्थ मानकर मृग की तरह यश, वैभव, सम्मान जैसी मृगतृष्णा के लिए जीवन भर भटकता रहता है। इस भटकाव में मनुष्य जीवन भर परेशान रहता है।
‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
इस संदर्भ में कवि की यह पंक्ति साम्य-भाव प्रकट करती है-
"क्याहुआजोखिलाफूलरस-बसंतजानेपर
जोनमिलाभूलउसेकरतूभविष्यवरण”
अतः जो बीत चुका है उसकी याद किए बिना आगे आने वाले समय को सँवारने का प्रयास करना चाहिए।
कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
कविता में दुख के अनेक कारणों की चर्चा की गई है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
(क) बीते हुए सुखमय दिनों को याद करने से वर्तमान का दुख बढ़ जाता है।
(ख) धन-दौलत, मान-सम्मान, यश तथा प्रतिष्ठा के पीछे मनुष्य जितना भागता है उतना ही दुखी होता है।
(ग) प्रभुत्व प्राप्ति की आकांक्षा मृग तृष्णा के समान है जिसे व्यक्ति हासिल करना चाहता है।
(घ) मनुष्य को समय पर उपलब्धियाँ न मिलने से दुख मिलता है।
(ड़) मनुष्य वर्तमान का यथार्थ नहीं स्वीकार कर पाता है और दुखी होता है।
(छ) कामनाओं और आकांक्षाओं के पीछे भागने की प्रवृति हमेशा दुखदायी होती है।
‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी’से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियाँ से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौन सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं?
हर किसी के जीवन में कई मधुर स्मृतियाँ होती है। उदाहरण के लिए मै अपने बचपन के उन दिनों को याद करता हूँ जब मै अपनी कक्षा में हमेशा प्रथम या द्वितीय स्थान प्राप्त किया करता था। जीवन में घटित कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो बरबस स्मृति-पटल में कौंधती रहती हैं। दिन तो बीत जाते हैं, किंतु घटनाएँ अपने अस्तित्व को हमेशा बनाए रखती हैं। फूल के मुरझा जाने पर उसकी सुगंध पर्यावरण में महकती रहती है। ऐसी घटनाएँ भी होती हैं जो पीछा नहीं छोड़ती हैं और कुछ ऐसी सुखद घटनाएँ होती हैं जिनका चित्रण बार-बार करते हैं और उनके चित्रण में आनंदानुभूति होती है।
प्राथमिक विद्यालय स्तर पर खेले जाने वाले खेल, अभिभावक-सम्मलेन, शिशु-शिविर, स्वच्छंद घूमना, घर लौटने पर पिताजी की अप्रत्याशित फटकार, ये सब कुछ ऐसी यादें हैं जिन्हे भुलाया नहीं जा सकता। वर्षा ऋतु में छोटी-सी नदी में नहाते समय डूबने से बचना आदि यादें सिहरन पैदा करने के साथ बचपन की यादें ताजा कर देती हैं।
‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।
यद्यपि समयानुसार प्राप्त उपलब्धि का महत्व विशेष ही होता है, किंतु उपलब्धि समय पर न मिलकर देर से मिलती है तो सांत्वना अवश्य प्रदान करती है। उपलब्धियों का मानव मन पर समयानुसार अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। कभी कभी देर से मिली उपलब्धि हमारे जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालती हैं और हमारे संघर्ष को सफल बनती हैं। दूसरी तरफ कभी-कभी ऐसा भी होता है कि देर से मिली उपलब्धि उपहास का कारण बन जाती है क्यों कि उसका किंचित भी औचित्य नहीं होता है। वह साँप निकल जाने पर लकीर पीटने जैसे होती है। ‘‘का वर्षा जब कृषि सुखाने” जैसा रोना होता है। अर्थात ऐसी बारिश का क्या फायदा जब खेत सूख गए हो, फसल बेकार हो चुकी हो। विवाह-उत्सव के पूर्ण हो जाने पर बाजे वालों का आना उपहास का कारण बनता है। वहीं निर्दोष व्यक्ति को दोषी ठहराए जाने पर जीवन के अंत में न्यायालय द्वारा दोष-मुक्त किया जाना उसे सांत्वना प्रदान करता है। स्वतंत्रता-सेनानियों ने जीवन के अंत में स्वतंत्र-भारत में अंतिम-साँसें लीं, तब उन्हें प्रसन्नता की पूर्ण अनुभूति हुई। ज्यादातर उपलब्धियां हमेशा मनुष्य को आनंद ही देती हैं।