कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ कृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। जिस प्रकार से मंदिर में रखा दीपक अपने प्रकाश से चारो तरफ के अँधेरे को दूर करता है, अपनी पवित्रता से मंदिर को पवित्र करता है, ठीक उसी प्रकार श्री कृष्ण भी जगत रुपी मंदिर के दीपक हैं। और दीपक की ही भांति इस जगत रुपी मंदिर में ईश्वरीय आभा, दैवीय चमत्कार एवं पवित्रता का संचार कर रहें हैं। उत्तर प्रदेश में जन्मे कवि देव ने श्री कृष्ण को ब्रज के दूल्हे के रूप में सम्बोधित किया है।
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है?
पहले सवैये में शब्द और अर्था दोनों अलंकारों का प्रयोग हुआ है। शब्दा अलंकार के रूप में अनुप्रास अलंकार देखने को मिलेगा वहीँ अगर अर्थ अलंकार की बात की जाय तो रूपक अलंकार भी सवैया की शोभा बढ़ा रहा है।
1.अनुप्रास अलंकार
(क) ‘कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई’ (यहाँ ‘क’ वर्ण की आवृत्ति हुई है।)
(ख) 'साँवरे अंग लसै पट-पीत' (पट-पीत में ‘प’ वर्ण की आवृत्ति हुई है।)
(ग) ‘हिये हुलसै बनमाल सुहाई’ (यहाँ पर ‘ह’ वर्ण की आवृत्ति हुई है।
2.रूपक अलंकार
(क) हँसी मुखचंद जुन्हाई (चन्द्रमा के समान मुख)
(ख) जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर (संसार रूपी मंदिर के दीपक)
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि के धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
ऊपर लिखी गयी पंक्ति में कवि देव ने शुद्ध साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग करते हुए श्री कृष्ण की सुंदरता का चित्रण किया है। कवि देव बता रहे है कि श्री कृष्ण के पैरों की पैजनी और कमर में बंधी करधनी की मधुर ध्वनि सबको कर्णप्रिय लग रही है। उनके सांवले शरीर पर पीला वस्त्र सुशोभित हो रहा है। श्री कृष्ण का हृदयस्पर्श पाकर उनके गले में विराजमान सुन्दर बनमाला भी उल्लासित हो रही है।
शिल्प-सौंदर्य
1. भाषा: ब्रज
2. छंद: सवैया
3. अलंकार: अनुप्रास (‘कटि किंकिनि’, ‘पट पीट’, और ‘हिये हुलसै’)
4. नूपुर और कर्धनी की ध्वनि में नाद-सौंदर्य है।
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है।
अन्य कवियों से इतर कवि देव जी ने ऋतुराज बसंत को कामदेव का पुत्र मानकर दूसरे कवित्त को लिखा है। प्रायः बसंत का वर्णन चारों ओर की हरियाली, शीतल हवाओं का बहना, मौसम की अद्भुत छटा, नायक-नायिकाओं के मिलाप और फूलों का खिलना आदि से किया जाता है, परन्तु दूसरे कवित्त में ऋतुराज बसंत को कामदेव के पुत्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है। पुत्र बसंत के लिए डालियों का पालना, नव-पल्लवों का बिछौना, मोर-शिशु संवाद, कोयल के द्वारा शिशु को प्रसन्न करने का प्रयास करना, नायिका द्वारा शिशु की नजर उतारना, गुलाब के द्वारा प्रातः चुटकी बजाकर जगाना आदि रूप अन्य कवियों की सोच का परिष्कृत रूप है। कवि देव ने समस्त प्राकृतिक उपादानों को बालक बसंत के लालन-पालन में सहायक बताया है। इस प्रकार इसमें दो राय बिलकुल भी नहीं होनी चाहिए कि कवि देव द्वारा ऋतुराज बसंत का बाल रूप में वर्णन परंपरागत बसंत से सर्वथा भिन्न है।
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी है’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
इस पंक्ति में कवि देव ने बसंत ऋतु की सुबह के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है। बसंत ऋतु में जब गुलाब के फूल पर सूर्य की किरणे पड़ती है तो उसकी पंखुड़ियां खिल उठती हैं और ऐसा लगता है कि ये पंखुड़ियां बालक बसंत को बड़े ही स्नेह से जगा रहीं हो। ठीक वैसे ही जैसे घर के सदस्य बच्चो के बालों में ऊँगली से कंघी करके या उनके कानों के पास धीरे से चुटकी बजाकर उन्हें जागते हैं।
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
कवि ने पूर्णिमा की चाँदनी रात में धरती और आकाश की सुंदरता को निम्नलिखित रूपों में देखा है-
(क) स्फटिक शिलाओं से निकलने वाली दूधिया रोशनी में
(ख) चारों ओर फैलती चाँदनी को दही रुपी समुद्र की तरह देखा है जो चारों ओर से हिलोरे ले रहा है।
(ग) आँगन में उमड़ते हुए दूध के झाग के रूप में देखा है। धरती पर फैली चांदनी की रंगत आँगन की फर्श पर फैले दूध के झाग की तरह सफ़ेद है।
(घ) चाँदनी को नायिका के रूप में देखा है जो तारों से सुसज्जित है।
(च) अंबर-रूपी दर्पण के रूप में चाँदनी को देखा है। जिसमे राधारानी का मुख प्रतिबिंबित हो रहा है।
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’- इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ
कि इसमें कौन-सा अलंकार है?
कवि देव की कल्पना में आकाश एक दर्पण के समान है और आकाश में चमकते हुए चाँद में उन्हें राधारानी का प्रतिबिम्ब दिखता है। राधारानी का सौंदर्य, चाँद के सौंदर्य से कहीं ज्यादा अधिक है। कवि के अनुसार चाँद भी राधारानी के सुंदरता के सामने फीका नजर आ रहा है। यहां पर राधारानी की तुलना चांद से की तो गयी है परन्तु राधारानी को चाँद से ज्यादा सुन्दर बताया गया है। अतः यहां पर व्यतिरेक अलंकार है, न की उपमा।
व्यतिरेक अलंकार- जहाँ प्रस्तुत (उपमेय) की तुलना अप्रस्तुत (उपमान) से की जाती है, किंतु उपमेय, उपमान से अपेक्षाकृत हीन हो तो व्यतिरेक अलंकार होता है।
उपमा अलंकार- जब किसी दो वस्तुओं के गुण, आकृति, स्वभाव आदि में समानता दिखाई जाए या दो भिन्न वस्तुओं कि तुलना कि जाए, तब वहां पर उपमा अलंकर होता है।
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
कवि देव ने कविता में निम्नलिखित उपमानों का प्रयोग किया है-
1. स्फटिक - शिला (रात की उज्जवल रोशनी का वर्णन)
2. सुधा - मंदिर
3. उदधि - दधि (दही का सागर)
4. दूध को - सो फेन (दूध का झाग)
5. तारों से
6. आरसी से अम्बर (आकाश मानो स्वच्छ दर्पण हो)
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर प्रदेश के इटावा में जन्मे कवि देव रीतिकाल के प्रभावशाली कवियों में से एक थे। इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। अलंकारिता एवं श्रृंगारिता का सम्यक प्रस्तुतीकरण इनके काव्य की प्रमुख विशेषता है।
पठित कविताओं के आधार पर स्पष्ट है कि इनमें नवीन कल्पनाओं के नए आयाम हैं। इनके आधार पर उनकी काव्यगत विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(क) कविताओं में रीतिकालीन कवियों की स्पष्ट छाप है। रीतिकालीन दरबारी कवियों की तरह कवि ने वैभव-सौंदर्य का वर्णन किया है।
(ख) भाषा में मधुरता दिखती है।
(ग) कवि ने प्रकृति-सौंदर्य वर्णन में नए-नए उपमान दिए हैं।
(घ) उनके काव्य में ब्रज भाषा की मंजुलता है, उसमें परिमार्जित शब्दों का भी यथा-स्थान प्रयोग देखने को मिलता है।
(च) तत्सम शब्दों का प्रयोग काव्य की शोभा को बढ़ाता है।
(छ) मानवीकरण, अनुप्रास, रूपक एवं उपमा अलंकारों का प्रयोग काव्य की सुंदरता में चार-चाँद लगा देता है।
(ज) प्रकृति का वर्णन परंपरा से हटकर देखने को मिलता है। ऋतुराज बसंत को शिशु के रूप में प्रस्तुत करना इसका उदाहरण है।
(झ) उनका काव्य सवैया और कवित्त में है, जिसमें स्वर प्रकट हैं।
(ट) वर्णित नायिका के सौंदर्य पर उपमानों की बौछार करके भी कवि को लगता है कि नायिका का वर्णन अभी अधूरा है। जल्दी में ये भूल जाता है और व्यतिरेक कर बैठता है जिससे वर्णित नायिका की तुलना में उपमान प्रभावी हो गया है।
आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से
शब्दबद्ध कीजिए।
पूर्णिमा की रात, चाँद पूरे यौवन पर, दिन की तपिस के बाद रात की शीतलता का अनुभव, एकांत, नीरव छत। ये सब हिंदी फिल्मों में नायक नायिका में मिलन को दिखाने के लिए ज्यादा प्रयोग किया जाता है लेकिन फिर भी आप कभी मध्य रात्रि में छत पर जाइये। एक अलग ही सुकून मिलेगा आपको। दिन भर के धक्के, शोर-शराबे के बाद आप अपने लिए समय निकाल पाएंगे। रात का सन्नाटा आपको डरायेगा भी और कहीं न कहीं सुकून भी देगा। सिर्फ चन्द्रमा को देखकर आप उसकी सुंदरता का वर्णन बिलकुल भी नहीं कर सकते। हाँ उसकी सुंदरता का वर्णन करने के लिए आपको अपनी नायिका की भी जरूरत होगी। फिर चाहे वो कोरी कल्पना ही क्यों न हो। हिंदी फिल्मो में ऐसे तमाम गानें आपको मिल जाएंगे जिसमे चन्द्रमा को आधार बनाकर नायिका की सुंदरता का वर्णन किया गया है। कुछ पुरानी और बचपन की यादें भी ताजा हो जाएँगी, जैसे की छत पर सोना, चाँद को देखते रहना, तारे गिनना, भाई-बहन के साथ इस बात के लिए लड़ाई करना की ध्रुव तारा किधर निकलता है। इन सब यादों के बीच नींद कब आ गयी आपको पता भी नहीं चलेगा।
भारतीय ऋतु चक्र में छह ऋतुएँ मानी गई हैं, वे कौन-कौन सी हैं?
छह ऋतुएँ क्रमशः इस प्रकार हैं-
1. ग्रीष्म
2. पावस (वर्षा)
3. शरद
4. शिशिर
5. हेमंत
6. बसंत
‘ग्लोबल वार्मिंग’ के कारण ऋतूओं में क्या परिवर्तन आ रहे हैं? इस समस्या से निपटने में आपकी क्या भूमिका हो सकती है?
ग्लोबल वार्मिंग एक पर्यावरणीय प्रक्रिया है जिसके कारण पृथ्वी के वातावरण में CO2एवं अन्य ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता बढ़ने से वातावरण का का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है| पृथ्वी के वातावरण का तापमान लगातार बढ़ने से अनेक वातावरणीय समस्याएँ पैदा हो रही हैं जिनमें से एक ऋतू परिवर्तन भी है| हम आवश्यक रूप से इस दिशा में अपने प्रयास कर सकते है| हम अपने दैनिक जीवन में उन सभी पदार्थों एवं प्रक्रियाओं को कम कर सकते हैं अथवा उन पर रोक लगा सकते हैं जिनसे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है क्योंकि पृथ्वी के वासी ही इन गैसों के उत्सर्जन के लिए उत्तरदायी हैं|