झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?
प्रस्तुत दसवीं कक्षा का पाठ प्रसिद्ध यात्रा वृतांत लेखिका मधु कांकरिया जी के हिमालय पर्वत क्षेत्र की यात्रा के दौरान सिक्किम की राजधानी गंगतोक और आसपास के सौंदर्य स्थल के उनके संस्मरण पर आधारित है। सितारों की रोशनी में नहाये वे पर्वतीय प्राकृतिक स्थल लेखिका के मन को अपने सौंदर्य से अद्भुत रूप से सम्मोहित कर रहे थे।
लेखिका को लग रहा था जैसे कि आसमान उलट पड़ा हो और आसमान के तारे जमीन पर आ गए हों| इस प्रकार से प्रकाश एवं ख़ूबसूरती से सुसज्जित गंतोक लेखिका को सम्मोहित कर रहा था|
गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ क्यों कहा गया?
गंगतोक शहर या यूं कहें पूरा सिक्किम प्रदेश पर्वतों से भरा है। वहां पर रहने वाले लेपचा और भुटिया लोग पर्वतों की ही तरह दृढ और काफी मेहनती स्वभाव वाले होते हैं। हम यों भी कह सकते हैं कि मेहनत करना गंगतोक वासियों का वंशानुगत गुण है जो उन्हें उनके पूर्वजों और पहाड़ी परिवेश से मिला है। पहाड़ों जैसा दृढ निश्चय उन्हें कड़ी से कड़ी मेहनत करने पर मजबूर करता है और इसी कारणवश लेखिका द्वारा भी गंगतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ कहा गया।
कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
गंगतोक में यूमथांग के आसपास भी श्वेत पताकाओं के फहराने का कमोबेश वही अर्थ है जो अन्य जगहों पर माना गया है अर्थात यह अवसर शोक प्रकट करने का होता है। वास्तव में सिक्किम में बौद्ध अनुयायी बहुतायत में रहते हैं। अपनों में से किसी बौद्ध की मृत्यु हो जाने पर व़हां के निवासी शोक प्रकट करने हेतु प्रतीक स्वरूप सफेद रंग की ध्वजा लगा देते हैं। इनकी संख्या गिनती में 108 होती है और इन्हें स्वयं नष्ट हो जाने तक छोड़ दिया जाता है। यानि गंगतोक के निवासियों द्वारा इसका विध्वंस नहीं किया जाता है।
वहीं गंगतोक में कोई नया कार्य करने के पूर्व चटख रंग के ध्वज वहाँ यूमथांग के पास लगाए जाते हैं। यानि रंग-बिरंगी पताकाएँ अन्य स्थानों की तरह गंगतोक में भी खुशी और उत्साह का प्रतीक मानी जाती हैं और इसी खुशी को प्रकट करने हेतु गंगतोक में किसी कार्य को शुरु करने से पूर्व रंग-बिरंगी पताकाओं का फहराना शुभ माना जाता है।
जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए।
जितेन नार्गे नेपाल से सिक्किम में आया एक जानकार गाइड था। उसने लेखिका की आंखों के सामने सिक्किम की प्रकृति का एक मनोहारी चित्र खींचा। उसने बताया की आगामी कुछ दिनों में घाटियाँ फूलों से लद जाएंगी और पूरा क्षेत्र फूलों की सेज में परिवर्तित हो जाएगा।
वहाँ की भौगोलिक स्थिति के बारे में गाइड ने बताया कि यह पूरा क्षेत्र पर्वतों, झीलों, झरनों से घिरा हुआ है। एक खूबसूरत झरने सेवन सिस्टर्स वाटर फाल के दृश्य का लेखिका ने बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है। गाइड ने कवी-लोंग-स्टाक के बारे में लेखिका को बताया और यह भी बताया कि यहाँ देवानन्द और वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म गाइड की सूटिंग हुई थी।
गाइड ने लेखिका को वहाँ के आमलोगों का जनजीवन तमाम प्राकृतिक चकाचौंध के बीच किस प्रकार से कष्टपूर्ण है के बारे में बताया| उसने उनलोगों के जीवनयापन हेतु काफी कठिन परिश्रम का कार्य करना जैसे सङक निर्माण, परिवहन एवं आम जन-जीवन से संबंधित अन्य कठिनाइयों के बारे में लेखिका को बताया| इस प्रकार वहाँ के लोगों की जिंदगी के बारे में मूलभूत बातों के बारे में लेखिका ने गाइड से जाना |
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?
लोंग स्टाक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक सी इसलिए दिखाई दी क्योंकि उन्होंने पाया की वहां भी शेष भारत की ही तरह लोग पौराणिक मान्यताओं में जकड़े हूए थे चाहे हम कितने ही आधुनिक क्यों न हो गये हों। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण उन्होंने लोंग स्टाक में उपस्थित घूमते हुए चक्र को देखकर पाया। वह यह सोचने पर विवश हो गयी कि शेष भारत में भी पाप मुक्ति हेतु कई उपाय किए जाते हैं और वहां भी इस हेतु लोग प्रेयर व्हील की ही तरह किसी न किसी माध्यम का उपयोग करते हैं| जितेन की इस प्रकार की बातें सुन लेखिका को लगा-चाहे मैदान हो या पहाड़, तमाम वैज्ञानिक प्रगतियों के बावजूद इस देश की आत्मा एक जैसी है। लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास, पाप-पुण्य की आवधारणाएँ और कल्पनाएँ एक जैसी हैं।
जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं?
इस बात में कोई शक नहीं कि जितेन एक कुशल गाइड है। उसने अपने आप को एक कुशल पेशेवर गाइड के रूप में प्रस्तुत किया है जो अपने ग्राहक के पर्यटन संबंधी सभी प्रश्नों को उसके मुख पर घिर आये प्रश्नचिन्हों से ही ज्ञात कर लेता है और विस्तार पूर्वक पर्यटक की जिज्ञासा शान्त करता है। एक कुशल गाइड में इन्हीं गुणों का होना जरुरी माना गया है।
जितेन नार्गे लेखिका का ड्राइवर कम गाइड था। वह नेपाल से कुछ दिन पहले आया था जिसे नेपाल और सिक्किम की अच्छी जानकारी थी। वह इस क्षेत्र एवं पहाड़ों से सुपरिचित था। वह ड्राइवर के साथ-साथ गाइड का कार्य भी कर रहा था। उसमें प्रायः गाइड के वे सभी गुण विद्यमान थे जो अपेक्षित होते हैं-
(क) एक कुशल गाइड में उस स्थान की भौगोलिक, प्राकृतिक और सामाजिक जानकारी होनी चाहिए| वह नार्गे में सम्यक रूप से थी।
(ख) गाइड के साथ-साथ नार्गे ड्राइवर भी था| अतः कहाँ रुकना है, यह निर्णय वह स्वयं ही करने में समर्थ था। उसे कुछ सलाह देने की आवश्यकता नहीं होती है।
(ग) गाइड में सैलानियों को प्रभावित करने की रोचक शैली होनी चाहिए जो उसमें थी। वह अपनी वाक्पटुता से लेखिका को प्रभावित करता था। जैसे- ‘मैडम, यह धर्म चक्र है या प्रेअर व्हील है इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं।
(घ) एक सुयोग्य गाइड क्षेत्र के जन-जीवन की गतिविधियों की भी जानकारी रखता है और संवेदनशील भी होता है।
(ड़) वह पर्यटकों में इतना घुल-मिल जाता है कि स्वयं गाने के साथ नाच उठता है और सैलानी भी नाच उठते हैं। इस तरह वह आम लोगों एवं पर्यटकों के साथ आत्मीय संबंध बना लेता है।
इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
इस यात्रा के दौरान लेखिका ने हिमालय के प्रत्येक रूप को देखा और उसी प्रकार से उसका वर्णन किया है| हिमालय तो पर्वतराज के रुप में विख्यात है। हिमालय का सौंदर्य कभी-कभी अलौकिक अर्थात इस संसार से परे जान पङता है। वास्तव में हम हिमालय के जितना नजदीक जाते हैं हम उसे उतने ही अधिक अलौकिक रूप में पाते हैं। हमें हिमालय की गोद में स्वर्ग की अनुभूति होती है। सेवन सिस्टरर्स जलप्रपात तो प्रकृति का जैसे एक अद्भुत चमत्कार है। उंचाई से देखने पर नदी पर पङती सूर्य की किरणों को देखने पर हमें वह दृश्य बङा ही मनोहारी दिखाई पङता है। इस प्रकार से लेखिका ने अपनी यात्रा के दौरान हिमालय के कई रूपों को देखा एवं उन सभी दृश्यों, नजारों का वर्णन अपने यात्रा वृतांत में किया है|
प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?
प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को पहली बार अहसास हुआ कि प्रकृति हमें कितनी सुखद अनुभूतियों को प्रदान करने में सहायक सिद्ध होती है। लेखिका के चारों ओर स्वर्गिक आनंद अनुभूत कराने वाली वस्तुएं बिखरी पङी थीं और वो इन वस्तुओं को अपने आप में समेट लेना चाहती थीं। वह उन अलौकिक क्षणों में संसार के सारे भौतिक सुखों से पार जाना चाहती थीं और प्रकृति में एकाकार होकर अपने आप को उस प्रकृति में लीन कर देना चाहती हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?
लेखिका ने हिमालय की अपनी यात्रा के दौरान एक स्थान पर उस अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य के बीच कुछ महिलाओं को पत्थर तोङते देखा और यह दृश्य उन्हें एक पल को झकझोर गया। दूसरे दृश्य में वे बालक थे जो नीचे तराई क्षेत्र में स्कूलों में पढने जाते थे और फिर शाम को वे बच्चे अपनी मां के कामों में हाथ बंटाते थे। एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले यह दृश्य भी लेखिका को झकझोर गया।
(ग) सूरज ढ़लने के समय कुछ पहाड़ी औरतें गायों को चराकर वापस लौट रही थीं। कुछ के सिर पर लकड़ियों के भारी-भरकम गट्ठर भी थे।
(घ) चाय के बागानों में बोकु पहने युवतियाँ चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं।
उपर्युक्त दृश्य लेखिका को झकझोर गए।
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव कराने में निम्न लोगों का योगदान सराहनीय होता है-
(क) वे सरकारी लोग जो व्यवस्था में संलग्न होते हैं।
(ख) वहाँ के स्थानीय गाइड जो उस क्षेत्र की सर्वथा जानकारी रखते हैं।
सैलानियों को प्राकृतिक छटा का अलौकिक अनुभव कराने में सर्वप्रथम और सबसे बङा हाथ सरकारी व्यवस्था का होता है। ये लोग व्यवस्थापक के रुप में अपनी भूमिका का निर्वहन करते हैं। इसके बाद दक्ष टूरिस्ट गाइड अपनी भूमिका निभाते हैं। वे लोग जितने ज्यादा स्थानीय हों सैलानियों के हित में होते हैं। अंत में सकारात्मक सोच वाले सहयात्री आते हैं जिनकी उपस्थिति मात्र ही हमें यात्रा के दौरान विपरीत परिस्थितियों में भी सहज बनने पर मजबूर कर देती है।
‘‘कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती है।’’ इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
आम जनता वास्तव में ये काफी कम लेकर समाज को काफी अधिक लौटा देती है। इसे हम स्पष्ट रूप से पहाङिनों के द्वारा पर्यटकों के लिए रास्ता बनाने के उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। पहाड़ों में रास्ता बनाना एक दुसाध्य कार्य है| वे कितना अधिक मेहनत करती हैं और वास्तव में उन्हें समाज से कितना कम मिलता है। यही हाल जंगलों में पत्ते तोड़ने वाली महिलाओं का भी है। वे जंगल में घूम-घूमकर पत्ते तोड़कर लाती हैं|
इस आधार पर कहा जा सकता है कि देश की प्रगति, विकास में इन्हीं आम लोगों का योगदान है लेकिन बड़े शहरों में रहने वाले लोगों में इनके प्रति आत्मीय भावना भी नहीं होती जबकि यही आम लोग हैं जोकि देश की प्रगति के आधार हैं| अतः हम सबको इनके कार्य के महत्व को समझना चाहिए एवं उनका सम्मान करना चाहिए|
आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।
आज की पीढी द्वारा प्रकृति के साथ सचमुच में खिलवाड़ किया जा रहा है। हम प्रकृति के अनुपम घटक पहाङों का किस प्रकार गलत ढंग से दोहन कर रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है। हमें लगता है जैसे प्रकृति से जन्मजात दुश्मनी हो कम से कम हमारे द्वारा पहाङों को तोङने, नदियों में कचरा बहाने उन पर कई जगहों पर बाँध बनाकर उनके बहाव को रोकने, वृक्षों की लगातार कटाई से तो यही प्रतीत हो रहा है। साथ में हम वायुमंडल में जहर फैलाकर प्रकृति के क्रोध को निमंत्रित कर रहे हैं। इस प्रकार से मानव प्रकृति के प्रत्येक घटक को हानि पहुँचा रहे है जबकि प्रकृति का प्रत्येक घटक हमारे जीने के लिए मूलभूत है| किसी भी घटक के समाप्त हो जाने अथवा उपयोग करने योग्य न रहने की स्थिति में मानव समाज का जीवन खतरे में पड़ जाएगा| इसे रोकना बहुत आवश्यक है| हम में से प्रत्येक व्यक्ति को इसमें अपना योगदान देना चाहिए| क्योंकि हम में से प्रत्येक इन घटकों का दोहन करता है साथ ही प्रकृति को नुकसान पहुँचाने में भी हमारा बराबर का योगदान है|
प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है? प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।
प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का ठीक ही जिक्र किया गया है। ऐसा लेखिका ने हिमालय क्षेत्र के भ्रमण के दौरान पाया भी। उन्हें वहाँ बताया गया कि बर्फ सिर्फ ‘कटाओ’ क्षेत्र में दिखने को मिलेगा जबकि अन्य क्षेत्रों में प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में काफी कमी आ गयी है। कटाओ क्षेत्र में बर्फ दिखने का कारण यह था की वहाँ न तो दुकानें हैं, न अन्य व्यावसायिक माध्यमों की उपस्थिति| उस क्षेत्र में मानव के कम दखल होने के कारण वहाँ प्रकृति का मूल स्वरुप बना हुआ है इसीलिये वहाँ पर्याप्त मात्रा में बर्फवारी होती है|
प्रदूषण के कई और भयंकर परिणाम जैसे- अंटार्कटिका क्षेत्र में वर्फ पिघलने से समुद्र तल की उंचाई बढने पर पृथ्वी के तटीय इलाकों के डूबने जैसी स्थिति लगातार बन रही है। जल स्त्रोतों के प्रदूषित होने के कारण पीने योग्य स्वच्छ जल की कमी, वायु प्रदुषण के कारण स्वच्छ हवा की कमी आदि दुष्परिणाम भी सामने आये हैं| प्रदुषण मानव के अस्तित्व के लिए ख़तरा है अतः इसे गंभीरता से लेना आवश्यक है| अगर समाज इसे गंभीरता से नहीं लेता तो भविष्य में इसके भयानक परिणाम सामने आ सकते हैं|
‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए?
‘कटाओ’ को अपनी स्वच्छता और सुंदरता के कारण हिंदुस्तान का स्विट्जरलैंड कहा जाता है या कहें तो यह स्थान उससे भी अधिक सुंदर। यह बिल्कुल सत्य है कि कटाओ पर किसी दुकान अथवा अन्य व्यावसायिक माध्यमों का ना होना उस स्थान के लिए वरदान है। अगर वहाँ पर भी दुकानें एवं अन्य व्यावसायिक माध्यमों की उपस्थिति होती तो उसका हाल भी हिमालय के अन्य क्षेत्रों की ही तरह होता| वहाँ पर भी भारी मात्रा में कूड़ा, कचरा, प्लास्टिक हर जगह फैला होता| इसलिए हम कह सकते हैं कि कटाओ में किसी भी दुकान का न होना उस स्थान के लिए वरदान है और इसी कारण उस स्थान का प्राकृतिक सौन्दर्य बना हुआ है|
प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
प्रकृति ने जल संचय की बड़ी ही उत्तम व्यवस्था की है। जाङे के दिनों में जहाँ हिम ग्लैशियर जम जाते हैं वहीं गर्मी के मौसम में वे पिघल कर जल प्रदान करते हैं| यह जल फिर नदियों में जल की मात्रा को बढ़ाकर हमारे किसानों को खेती योग्य आवश्यक जल उपलब्ध कराता है। साथ ही जल में परिवर्तित हिम नदियों के माध्यम से देश के अन्य भागों में पहुँचकर आम लोगों को पीने एवं अन्य कार्यों के लिए आवश्यक जल उपलब्ध कराता है| फिर जाङे में यह जल पुनः जम जाता है और यह चक्र निरंतर चलता ही रहता है।
देश की सीमा पर बैठे फौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?
देश की सीमा पर बैठे सैनिक मुख्यत: सियाचिन ग्लैशियर में तैनाती होने वहाँ की विपरीत मौसम वाली चुनौतीपूर्ण कठिनाइयों से जूझते हैं। वहाँ का तापमान सर्दी के मौसम में शून्य से काफी नीचे चला जाता है। हमारे देश की उत्तरी सीमा यानि हिमालय क्षेत्र में सियाचीन के अलावा अन्य सेक्टरों पर भी मौसम विपरीत ही होता है और इन स्थानों पर भी हमारे सैनिक कमोबेश समान कठिनाईयों से गुजरते हैं। पश्चिमी सीमा पर एकदम उलट स्थिति होने से यहाँ गर्मियों में हमारे सैनिकों का बुरा हाल रहता है। इस प्रकार की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी अपने स्थान पर डंटे रहते हैं और हर एक परिस्थिति में देश की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं| वे देश की रक्षा करते हैं और इसी कारण से देश के भीतर हम पूर्णतः सुरक्षित एवं शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर पाते हैं|
इसलिए उनके प्रति हमारा काफी दायित्व बनता जिस प्रकार से वे हमारे देश एवं हमारी सुरक्षा में तत्पर रहते हैं उसी प्रकार से हमें भी उनकी मदद ल के लिए तत्पर रहना चाहिए और देश के प्रति अपने कर्तव्यों को ईमानदारी एवं तत्परता से निभाना चाहिए|