हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?
हमारी आजादी की लङाई मे हर धर्म, जाति और वर्ग के लोगों ने मिलजुलकर भाग लिया था। इस कहानी में लेखक ने टुन्नू व दुलारी जैसे पात्रों के माध्यम से उस वर्ग जोकि उपेक्षित माना जाता है और उनके आजादी में योगदान को महत्व नहीं दिया जाता, के योगदान को उभारने की कोशिश की है| ये पात्र समाज के बीच हमेशा से ही हीन एवं उपेक्षित रहे लेकिन उसके वावजूद इन्होंने हमारे देश(भारत) की आजादी की लड़ाई में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया| टुन्नू व दुलारी दोनों ही कजली गायक थे और कजली दंगल जैसे स्थानीय लोक आयोजनों में भाग लिया करते थे| टुन्नू ने आजादी के लिए निकाले गए जुलूस मे भाग लेकर अपने प्राणों की बलि देकर सिद्ध किया कि वह सिर्फ नाचने या गाने के लिए पैदा नहीं हुआ। उसके मन में भी आजादी पाने का जोश है और वह भी आजादी की लड़ाई में अन्य वर्गों जिन्हें महत्वपूर्ण माना जाता की ही तरह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता हैं|
इन पात्रों के माध्यम से लेखक ने समाज के उपेक्षित लोगों के स्वतंत्रता संघर्ष में योगदान को उभारा है| लेखक के द्वारा इस बात का सन्देश भी दिया गया है कि स्वतंत्रता संघर्ष में सिर्फ बड़े नेताओं एवं समाज के महत्वपूर्ण वर्गों का ही योगदान नहीं है बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग, समूह, जाति के लोगों का भी उतना ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है|
कठोर ह्रदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?
दुलारी अपने कठोर व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थी लेकिन दुलारी का हृदय एकदम मोम जैसा था। वह एक अकेली औरत थी। इसलिए वह अपनी रक्षा के लिए सबके साथ कठोर व्यवहार करती थी। परन्तु अंदर से वह बहुत नरम दिल महिला थी। टुन्नू जो उसे बहुत प्यार करता था। उसके लिए दुलारी के दिल में बहुत खास जगह थी लेकिन वह हमेशा टुन्नू पर झुझुलाती, गुस्सा करती उसे दुत्कारती|
दुलारी इसलिए भी टुन्नू पे झुझुलाती थी क्योंकि वह दुलारी से उम्र मे छोटा था लेकिन दुलारी के मन मे टुन्नृ के लिए एक अलग ही जगह थी। उसने जान लिया था कि टुन्नू उसके शरीर का नहीं , बल्कि उसकी गायन कला का प्रेमी था। टुन्नू की मृत्यु का समाचार सुनकर उसका ह्रदय दर्द से फटने लगा। किसी के लिए नहीं पिघलने वाला दुलारी का कठोर ह्रदय आज टुन्नू के मरने पर विचलित हो उठा और दुलारी ने टुन्नू की दी हुई खादी की धोती पहन ली।
कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ और परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख कीजिए।
कजली दंगल जो पहले जमाने मे केवल मनोरंजन का साधन हुआ करता था साथ ही पुराने जमाने में लोग इसके साथ अपनी प्रतिष्ठा का सवाल भी जोड़ लेते थे| कजली दंगल में हार-जीत को वे अपने सम्मान एवं अपमान की तरह देखते थे| इस प्रकार के स्थानीय आयोजन भारत की सांस्कृतिक पहचान के रूप में जाने जाते हैं| कजली आयोजन भी इन्हीं लोक आयोजनों में से एक है| इसमें हाथी, गाय एवं दो लठे्धारियों को बुलाकर कजली दंगल समारोह का आयोजन करवाया जाता था| वहाँ के लोग इस मनोरंजन मे अपनी प्रतिष्ठा को भी जोङ देते थे और साथ ही कजली दंगल जैसे अन्य समारोह भी वहाँ साथ-साथ आयोजित किये जाते थे| कजली दंगल मुख्य समारोह होता था जिस पर सबकी नजर होती थी|
भाग लेने वालों की हार जीत पर सबका मन टिका हुआ होता था। भारत में कई स्थानों पर इस प्रकार के आयोजान अलग-अलग रूप में लोक समारोहों के रूप में मनाये जाते हैं। कजली दंगल का प्रमुख कार्य लोगों मे उत्साह बढ़ाना और दंगल का प्रचार प्रसार करना था।
भारत में आयोजित होने वाले अन्य लोक आयोजन इस प्रकार हैं- बृज क्षेत्र में आयोजित होने वाला रसिया दंगल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा में रागिनी दंगल, उत्तर भारत में पहलवानी या कुश्ती का आयोजन, राजस्थान में पशु मेले का आयोजन, दक्षिण भारत में बैल या भैंसा दौड़|
दूलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
दुलारी बिशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी वह अतिविशिष्ट है| वहाँ के समाज के प्रतिष्ठित लोगों द्वारा इन प्रतिभावान व्यक्तियों और इनकी कलाओ को ठीक-ठाक मान-सम्मान नहीं दिया जाता था लेकिन इस प्रकार के समाज में भी दुलारी ने अपना कुछ अलग ही स्थान बना लिया था। वह जहाँ भी जाती उसे जीत ही हासिल होती था। दुलारी की मुख्य चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
स्वाभिमानी- दुलारी बहुत ही स्वाभिमानी महिला थी। वह अपने स्वाभिमान का समझौता किसी के भी सामने एवं किसी भी स्थिति में नहीं करती थी|
निडर स्त्री- दुलारी एक बहुत ही निडरस्त्री थी। अकेली स्त्री होने के कारण उसने स्वयं की रक्षा हेतु खुद को निडर बना लिया था। अपनी निडरता के कारण ही दुलारी ने फेंकू की दी हुई साड़ी को जूलूस मे फेंक दिया था। वह किसी से भी नहीं डरती थी| निडरता से पूरे समाज का सामना अकेले करती थी|
सच्ची प्रेमीका- दुलारी एक सच्ची प्रेमीका थी। वह टुन्नू से बहुत प्रेम करती थीं। लेकिन वह कभी भी अपने प्रेम को टुन्नू के सामने बयान नहीं करती थी लेकिन टुन्नू की मृत्यु के पश्चात उसने टुन्नू के प्रति अपने प्रेम को खुलकर व्यक्त किया|
प्रबुद्ध गायिका : दुलारी मधुर स्वर में गाती थी| उसमें गाने एवं तुरंत सवाल-जवाब करने की अनोखी प्रतिभा थी| वह दंगल में जिस पक्ष में खड़ी होती, जीत उसी पक्ष की होती थी|
दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?
टुन्नू और दुलारी का परिचय भादों मास में तीज के अवसर पर खोजवाँ बाजार में आयोजित कजली दंगल के दौरान हुआ था| यहाँ दुलारी एवं टुन्न दोनों गाने के लिए आये हुए थे| दुलारी खोजवाँ वालों की तरफ थी जबकि टुन्नू कजरदीहा वालों की ओर था| दुलारी की दुक्कड़ पर गाने वालियों में कुछ ख़ास ही ख्याति थी| उसने काव्य मे सवाल-जवाब करने मे महारत हासिल की थी और इसीलिये खोजवाँ वाले दुलारी के अपने पक्ष में होने के कारण अपनी जीत के प्रति आश्वस्त थे| इसी कजली दंगल के दौरान दुलारी एवं टुन्नू का सामना हुआ एवं उनका परिचय हो गया|
दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था-‘‘तैं सरबउला बोल जिन्नगी में कब देखले लोट?---!’’ दुलारी के इस आपेक्ष में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
कजली दंगल के दौरान प्रतियोगी एक दुसरे को ललकारकर एक दूसरे को चुनौती देते थे| इसी दौरान 16 वर्षीय टुन्नू ने दुलारी को ललकारते हुए कहा ‘‘रनियाँ ले --- {--- {--- परमेसरी लोट’’ (प्रामिसरी नोट) तो उत्तर में दुलारी ने कहा- तै सर बउला बोल जिन्नगी में कब देखले लौट? दुलारी के ऐसा कहने के पीछे यह कारण था कि टुन्नू अभी 16 वर्ष का था और उसने अभी दुनिया नहीं देखी थी| दुलारी यह कहना चाहती थी कि टुन्नू बढ़-चढ़कर मत बोल, तूने लोट(पैसे) कहाँ देखें हैं अभी तो तूँ 16 वर्ष का ही है| टुन्नू के पिताजी भी यजमानी करते थे और बड़ी मुश्किल से अपनी गृहस्थी चला पाते थे| उसके ऐसा कहने के पीछे यही कारण था|
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?
दुलारी और टुन्नू ने स्वाधीनता की लड़ाई में अपनी सामर्थ्य से अधिक योगदान दिया| वे दोनों ही समाज के निम्न वर्ग से आते थे और सामान्य जन थे उसके पश्चात भी उन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| स्वंत्रता संघर्ष के दौरान जब विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जा रही थी तब दुलारी ने गरीब होते हुए भी मैंनचेस्टर एवं लंकाशायर की मिलों में बनी सूत की मखमली किनारों वाली नई कोरी धारियों वाली साड़ियों के बण्डल को बिना सोच विचार के आग में फेंककर आन्दोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया| साथ ही स्वतंत्रता की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए टुन्नू ने अपनी जान गँवा दी| इस प्रकार से इन दोनों ने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में अपने सामर्थ्य एवं सोच से अधिक योगदान दिया|
दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी? यह प्रेम दुलारी को देश प्रेम तक कैसे पहुँचाता है?
टुन्नू एक सोलह साल का युवक था जबकि दुलारी एक वयस्क महिला थी| दोनों के बीच एक ही समानता थी जो उन्हें जोडती थी और जो उनके बीच में प्रेम उत्पन्न होने का कारण बनी वह समानता थी दोनों का काव्य एवं गायन के प्रति लगाव| दुलारी एवं टुन्नू दोनों ही कजली गायक थे| दुलारी एवं टुन्नू दोनों को कला से बहुत प्रेम था और एक बार कजली दंगल के दौरान उनकी मुलाक़ात हुई और उस मुकाबले में उन दोनों ने एक दूसरे के ह्रदय को भीतर तक प्रभावित किया| टुन्नू एवं दुलारी का एक दूसरे के प्रति लगाव शारीरिक न होकर कला आधारित था| दोनों ही एक दूसरे की कला का बहुत सम्मान करते थे और उनके बीच प्रेम जगाने में कला ने सेतु का कार्य किया|
जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे परंतु दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है?
आजादी के दीवानों की एक टोली जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह कर रही थी। विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार आन्दोलन के दौरान अधिकाँश लोग अपने फटे-पुराने एवं उपयोग किये हुए वस्त्रों को इस टोली के हवाले कर रहे ताकि विरोध स्वरुप विदेशी वस्त्रों की सार्वजनकि होली जलाई जा सके| परन्तु दुलारी ने बिना किसी मोह/लालच के महंगे विदेशी वस्त्रों को इस सार्वजनिक होली में फेंक दिया| उसने उन्हें फेंकने से पहले एक बार भी नहीं सोचा की वे बहुत महंगे हैं अथवा बहुत सुन्दर हैं| दुलारी के मन में देशप्रेम की भावना घर कर गयी थी और वह तन-मन और धन से आजादी के आन्दोलन में शामिल हो गयी थी| इस आजादी के आन्दोलन में शामिल होने एवं इसमें अपना पूर्ण योगदान देने के सामने उन साड़ियों का कोई मोल नहीं था|
“मन पर किसी का बस नहीं; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।“ टुन्नू के इस कथन मे उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ हैं परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोङा?
“मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।“ इस कथन में टुन्नू के किशोर मन की अभिव्यक्ति है| टुन्नू सोलह साल का लड़का है जबकि दुलारी प्रौढ़ अवस्था की महिला है उसके बावजूद भी टुन्नू दुलारी से बहुत प्रेम करता था। दुलारी टुन्नू के प्रेम को उसकी सोलह वर्षीय किशोर उम्र की नादानी समझती थी और इसी कारण वह हमेशा उसे दुत्कारती, गुस्सा करती रहती थी| जबकि टुन्नू का कहना यह था कि वह दुलारी के रूप, रंग अथवा उम्र से नहीं बल्कि उसकी कला से प्रेम करता है और इसीलिये उसके टुन्नू से उम्र में बड़े होने से कोई समस्या नहीं होनी चाहिए| टुन्नू के मन में दुलारी के प्रति जो प्रेम था वह शारीरिक न होकर, कला के प्रति था| वह दुलारी की कला का बहुत सम्मान करता था|
दुलारी द्वारा टुन्नू के प्रेम को लगातार उपेक्षित करते रहने के कारण उसका दुलारी के प्रति प्रेम देश प्रेम में परिवर्तित हो गया और वह देश को आजादी दिलाने के उद्देश्य से आजादी के दीवानों के साथ कार्य करने लग गया| विदेशी वस्त्रों की होली के आन्दोलन में तन्मयता से शामिल हो गया और इसी देशी प्रेम में उसने अपनी जान अनादी के लिए न्यौछाबर कर दी|
‘एही ठैयाँ झुलनी हैरानी हो रामा।‘ का प्रतीकार्थ समझाए।
इस कथन का शाब्दिक अर्थ है- इसी स्थान पर मेरी नाक की झुलनी(लौंग) खो गई है| दुलारी के इस कथन का अभिप्राय यह है कि थाने में आकर मेरी नाक की लौंग खो गयी है इसके माध्यम से वह यह कहने की कोशिश कर रही है कि थाने में आकर मेरी प्रतिष्ठा खो गयी है अथवा प्रतिष्ठा को ठेस पहुँची है| थाने वालों ने दुलारी की इच्छा के विपरीत उसे थाने में आकर गाने के लिए मजबूर किया था| इसी कारण उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँची|
जबकि इसका दूसरा अर्थ यह है- लौंग को पारंपरिक रूप से सुहाग की निशानी समझा जाता है| दुलारी ने मन से टुन्नू को अपने सुहाग के रूप में स्वीकार कर लिया था| थाने में अली सगीर द्वारा टुन्नू पर बूट से प्रहार करने पर टुन्नू की मृत्यु हो गयी थी तो इसके माध्यम से दुलारी यह भी कहना चाह रही थी कि मेरा सुहाग टुन्नू यहीं पर मार दिया गया है अब मैं उसे कहाँ ढूँढूं|